आरति करो मन आरति करो ।
गुरु-प्रताप साधुकी संगति, आवागमन तें छूटि पड़ो ॥
अनहद ताल आदि सुध बानी, बिनु जिभ्या गुन बेद पढ़ो ।
आपा उलटि आतमा पूजो, त्रिकुटी न्हाइ सुमेर चढ़ो ॥
सारँग सेत सुरतिसो राखो, मन पतंग होइ अजर जरो ।
ज्ञानकै दीप बरि बनि बाती, कह 'यारी' तहँ ध्यान धरो ॥