अनन्त व्रत कथा माहात्म्य

इस अति पुनीत श्री अनन्त व्रत कथा के अनुष्‍ठान ही से समस्त पापों का विनाश होता है और मनुष्य सुख तथा समृद्धि को प्राप्‍त होता है ।


भादों मास में शुक्ल पक्ष की चौदस को यह अनन्त व्रत किया जाता है । इस अति पुनीत व्रत कथा के अनुष्‍ठान ही से समस्त पापों का विनाश होता है और मनुष्य सुख तथा समृद्धि को प्राप्‍त होता है । इस परम-पुनीत व्रत को स्त्री और पुरुष समान रुप से करते हैं । व्रत के दिन प्राणी को चाहिये कि ब्राह्ममुहूर्त में निद्रा को त्याग दे और अपने विस्तर से उठकर पहले नित्यकर्मों से निवृत हो । नदी, सरोवर, तालाब अर्थात् कुए के जल से स्नान करे और रेशमी वस्त्र धारण करे । यदि समीप ही गंगा नदी हो तो गंगाजल में स्नान करे । शुद्ध होकर अपने मन को अनन्त भगवान् के चरण-कमलों में लगावे और एकाग्रत मन से व्रत का निश्‍चय करे । मन से निश्‍चय करके समस्त सामग्री को लेकर जल के किनारे जावे । वहाँ जाकर स्थान को लीपकर स्वच्छ बनावे और वहाँ कदली के खम्भ स्थापित करके बीच में बाँस की टोकरी रखे । कुशा को लेकर उसकी शेषनाग की प्रतिमा बनावे और उसको उस टोकरी में स्थापित करे । पंचामृत से शेषनाग को स्नान करावे, फिर स्वच्छ जल से स्नान कराकर उनके शरीर को अच्छी तरह सुखा ले । कलश के समीप दीपक जलाकर रखे । चन्दन, अगर धूप आदि की गन्ध दे । रोली और चावल से पूजन करे और उनको पुष्पमाला धारण करावे । विभिन्न नामों से भगवान् शेष का आवाहन करे । अनन्त भगवान् को इस समस्त विश्‍व का उत्पत्ति, पालन व संहार कर्ता माने । भगवान् का ध्यान करे । एकाग्र चिन्तन करे । १०८ नामों से उनका स्तवन करे । तत्पश्‍चात् उनको नैवेद्य अर्पण करे । एक सेर चून का एक ही मालपूआ बनावे । उसी मालपूआ को भगवान् के सम्मुख रखे और उसके बाद उसमें से आधा पूआ काटकर ब्राह्मण को जिमावे और शेष मालपूआ अपने लिए रख ले । सूतको रोली में रंगकर उस में १४ गाँठ लगावे फिर उस डोरे को पुरुष अपनी दाहिनी भुजा पर तथा स्त्री बाईं भुजा पर धारण करे । भुजा पर धारण करते समय मन ही मन अनन्त भगवान् का ध्यान करके प्रार्थना करे । ’हे वासुदेव ! ’हे अनन्त देव ! इस संसार रुपी सागर से आप ही मुझे तारो’ । इस प्रकार अनन्त भगवान् के उस सूत्र को बाँध कर भगवान् को हृदय में धारण करे । दया का व्यवहार करे । कृपणता को त्यागकर दान दे । श्रेष्‍ठ ब्राह्मण को मालपूआ से जिमावे और उत्तम वस्‍त्र तथा दक्षिणा को देकर प्रसन्न करे । सन्ध्या से पहले ही व्रत कथा को श्रवण करे अथवा पढ़ कर सुनावे । भोजन के उपरान्त भगवत-लीलाओं का मनन करे, सत्य भाषण करे, ब्रह्मचर्य से रहे । इस प्रकार व्रत करने से अनन्त भगवान् अति प्रसन्न होते हैं और उस प्राणी को विपुल धन तथा धान्य देते हैं । उसको पुत्र और पौत्रों का अनन्त सुख प्रदान करते हैं । अनन्त भगवान् की कृपा को वर्णन करना अति दुर्लभ है ।

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Last Updated : January 06, 2008

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