जय-जय रेवा तेरी करुँ सेवा अब होजा दीनदयाल री लाज रखो अब भक्तन की ।
अमरकंठ से चली माई रेवागढ़ मण्डला फिर आई,
गढ़ मण्डला की बावन राजा कन्या कर विमलाई, जय-जय रेवा०।
ब्रह्मपुरी से ब्रह्मा आये संग सखों को लाये ।
काशी से दो पंडित आये रेवा की करी सगाई । जय-जय रेवा० ।
भीतर से रेवा बाहर आई मन ही में भिग्य उठाई ।
अड़ बक आय तवा ने घेरी काहे जेहे अनब्याई । जय-जय रेवा० ॥
मारी है लात तबा भये रन बन छार-छार भये पानी ।
तुलसीदास आस रघुवर की हरि चरनन बलिहारी ॥ जय-जय रेवा० ॥