शुक्लैकादशीव्रत
( भविष्योत्तरपुराण ) -
आषाढ़ शुक्ल एकादशीका नाम देवशयनी है । इस दिन उपवास करके सोना, चाँदी, ताँब या पीतलकी मूर्ति बनवाकर उसका यथोपलब्ध उपचारोंसे पूजन करे और पीताम्बरसे विभूषित करके सफेद चादरसे ढके हुए गद्दे - तकियावाले पलंगपर शयन करावे । उस अवसरके चार महीनोंके लिये अपनी रुचि अथवा अभीष्टके अनुसार नित्य व्यवहारके पदार्थोका त्याग और ग्रहण करे । जैसे मधुर स्वरके लिये ' गुड़ ' का, दीर्घायु अथवा पुत्र - पौत्रादिकी प्राप्तिके लिये ' तैल ' का, शत्रुनाशादिके लिये ' कडवे तैल ' का, सौभाग्यके लिये ' मीठे तैल ' का और स्वर्गप्राप्तिके लिये ' पुष्पादि ' भोगोंका त्याग करे । देह - शुद्धि या ' दूध ' का, कुरुक्षेत्रादिके समान फल मिलनेके लिये पात्रमें भोजन करनेके ' एकभुक्त, नक्तव्रत, अयाचित भोजन या सर्वथा उपवास ' करनेका व्रत ग्रहण करे । यदि इन चार महीनोंमें दूसरेके दिये हुए भक्ष्य - भोज्यादि सभी पदार्थेंकि भक्षण करनेका त्याग रखे और उपर्युक्त चार व्रतोंमें जो बन सके उसको ग्रहण करे तो महाफल होता है ।