दूर्वागणपति
( सौरपुराण ) -
यह व्रत श्रावण शुक्ल चतुर्थोको किया जाता है । इसमें मध्याह्नव्यापिनी चतुर्थी ली जाती है । यदि वह दो दिन हो या दोनों दिन न हो तो ' मातृविद्धा प्रशस्यते ' के अनुसार पूर्वविद्धा व्रत करना चाहिये । उस दिन प्रातःस्त्रानादि करके सुवर्णके गणेशजी बनवावे जो एकदन्त, चतुर्भूज, गजानन और स्वर्णसिंहासनस्थ हों । उनके अतिरिक्त सोनेकी दूर्वा बनवावे । फिर सर्वतोभद्र - मण्डलपर कलश स्थापन करके उसमें स्वर्णमय दूर्वा लगाकर उसपर उक्त गणेशजीका स्थापन करे । उनको रक्तवस्त्रादिसे विभूषित करे और अनेक प्रकारके सुगान्धित पत्र, पुष्पादिसे पूजन करे । बेलपत्र, अपामार्ग, शमीपत्र, दूब और तुलसीपत्र अर्पण करे । फिर नीराजन करके ' गणेश्वर गणाध्यक्ष गौरीपुत्र गजानन । व्रतं सम्पूर्णातां यातु त्वत्प्रसादादिभानन ॥ ' इससे प्रार्थना करे । इस प्रकार तीन या पाँच वर्ष करनेसे सम्पूर्ण अभीष्ट सिद्ध होते हैं ।