श्रावण शुक्लपक्ष व्रत - श्रवणपूजन

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


श्रवणपूजन

( व्रतोत्सव ) -

श्रावण शुक्ल पूर्णिमाको नेत्रहीन माता -पिताका एकमात्र पुत्र श्रवण ( जो उनकी दिन - रात सेवा करता था ) एक बार रात्रिके समय जल लानेको गया । वहीं कहीं हिरणकी ताकमें दशरथजी छिपे थे । उन्होंने जलसे घड़ेके शब्दको पशुका शब्द समझकर बाण छोड़ दिया, जिससे श्रवणकी मृत्यु हो गयी । यह सुनकर उसके माता - पिता बहुत दुःखी हुए । तब दशरथजीने उनको आश्वासन दिया और अपने अज्ञानमें किये हुए अपराधकी क्षमा - याचना करके श्रावणीको श्रवणपूजाका सर्वत्र प्रचार किया । उस दिनसे सम्पूर्ण सनातनी श्रवणपूजा करते है और उक्त रक्षा सर्वप्रथम उसीको अर्पण करते हैं ।

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Last Updated : January 21, 2009

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