कुशग्रहणी
( मदनत्न ) -
यह भाद्रपद कृष्ण अमावस्याके पूर्वाह्णमें मानी जाती है । शास्त्रमें - ' कुशाः काशा यवा दूर्वा उशीराश्च सकुन्दकाः । गोधूमा ब्राह्मयो औञ्जा दश दर्भाः सबल्वजाः ॥' - दस प्रकारका कुश बतलाया है । इनमें जो मिल सके उसीको ग्रहण करे । जिस कुशाका मूल सुतीक्ष्ण हो, उसमें सात पत्ती हों, अग्रभाग कटा न हो और हरा हो, वह देव और पितृ दोनों कार्योंमें बर्तने योग्य होती हैं । उसके लिये अमावास्याको दर्भस्थलमें जाकर पूर्व या उत्तर मुख बैठे और ' विरञ्चिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज । नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव ॥ हुँ फट् ।' यह मन्त्र उच्चारण करके कुशाको दाहिने हाथसे उखाड़े ( और इस प्रकार जितनी चाहिये, ले आवे ) ।