कलिमलहर श्रीकृष्णव्रत
( सूर्यारुण ३०९ ) - जिस वर्षमें भाद्रपदकी कृष्णाष्टमी अर्धरात्रव्यापिनी हो और उसके साथ बुधवार, रोहिणी - नक्षत्र तथा शुभ योग हो, उस वर्षके उस पावन पर्वके दिन प्रातःकाल तीर्थादिके जलसे या कुएँके तुरंत निकाले हुए पानीसे स्त्रान करके संध्या - वन्दनादि नित्यकर्म करनेके पश्चात् उपवास करके
' ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय नमः ।'
इस मन्त्नका दिनभर मानस जप करता रहे और सायंकालमें श्रीकृष्णका उत्साहपूर्वक उत्सव करके गायन, वादन और नर्तन करके जागरण करे । फिर दूसरे दिन व्रतका विसर्जन करके पारणा करे तो इस व्रतके प्रभावसे भवसागरसम्भूत सम्पूर्ण बाधाएँ और पापसम्भूत सम्पूर्ण रोग - दोष शान्त होकर अपूर्व सुख - सौभाग्यादिकी प्राप्ति होती है ।
पापसम्भूतसर्वरोगार्तिहरव्रत समाप्त