थे तो आरोगोजी दीनदयाल ! करमाबाईरो खीचड़लो ॥ टेर॥
प्रभुजी ! थारो प्रेम पुजारी, गयो तीरथाँ न्हाण ॥१॥
जातो-जातो दे गयौ म्हानें, पूजारी भोलाण ।
जद मैं आई थाँरा मन्दरियामें चाल; करमाबाईरो ॥१॥
मैं छूँ दीन-अनाथनीजी, नहिं जाणूँ पूज फंद ।
नवों-नवादों धारियो, यो धंधो गोकुलचंद ।
तू ही राखणियों भंगतांरी बाजी भाल; करमाबाईरो ॥२॥
नहीं कर जाणूं षटरस भोजन, खाटा सों अनुराग ।
लूखो-सूखो राम खीचड़ो, ग्वाँरफल्याँरो साग ।
ल्याई बाटकी में मीठो दही घाल; करमाबाईरो ॥३॥
रुस्या क्यूँ बैठ्या हो राधा रुकमणजीरा स्याम ,
भूखा-मरताँ पटे न सोदो, मास-दिवसरो काम ।
थारा भूखाँरा चिपजासी बाला ! गाल; करमाबाईरो ॥४॥
समझ गई शरमाया ठाकुर, जाड़ी मोही नवाद ।
धावलियारो पड़दो कीन्हों, प्रगट लियो परसाद ।
हरष्यो हिवड़ा में मन लहरी मोतीलाल , करमाबाईरो ॥५॥