अभिलाषा - थे तो आरोगोजी दीनदयाल ...

’अभिलाषा’के अंतर्गत भगवत्प्रेमी संतोंकी सुमधुर कल्याणमयी कामनाओंका दिग्दर्शन करानेवाले पदोंकी छटा भाव-दृष्टिके सामने आती है ।


थे तो आरोगोजी दीनदयाल ! करमाबाईरो खीचड़लो ॥ टेर॥

प्रभुजी ! थारो प्रेम पुजारी, गयो तीरथाँ न्हाण ॥१॥

जातो-जातो दे गयौ म्हानें, पूजारी भोलाण ।

जद मैं आई थाँरा मन्दरियामें चाल; करमाबाईरो ॥१॥

मैं छूँ दीन-अनाथनीजी, नहिं जाणूँ पूज फंद ।

नवों-नवादों धारियो, यो धंधो गोकुलचंद ।

तू ही राखणियों भंगतांरी बाजी भाल; करमाबाईरो ॥२॥

नहीं कर जाणूं षटरस भोजन, खाटा सों अनुराग ।

लूखो-सूखो राम खीचड़ो, ग्वाँरफल्याँरो साग ।

ल्याई बाटकी में मीठो दही घाल; करमाबाईरो ॥३॥

रुस्या क्यूँ बैठ्या हो राधा रुकमणजीरा स्याम ,

भूखा-मरताँ पटे न सोदो, मास-दिवसरो काम ।

थारा भूखाँरा चिपजासी बाला ! गाल; करमाबाईरो ॥४॥

समझ गई शरमाया ठाकुर, जाड़ी मोही नवाद ।

धावलियारो पड़दो कीन्हों, प्रगट लियो परसाद ।

हरष्यो हिवड़ा में मन लहरी मोतीलाल , करमाबाईरो ॥५॥

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Last Updated : January 22, 2014

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