आओ नन्द-नन्दना, आओ मन-मोहना ।
गोपीजन प्राण-धन राध उर-चन्दना ॥१॥
कैसे तुम द्वारिका में, द्रोपदीकी टेर सुनी ।
कैसे तुम गजराज-काज नंगे पाँव धाये हो ॥२॥
कैसे तुम गणिकाके, औगुन निवारे नाथ ।
कैसे तुम भीलनीके, मीठे बेर खाये हो ॥३॥
कैसे तुम भारतमें, भीषमको प्रण राख्यो ।
कैसे तुम वसुदेवजीके, बन्धन छुटाये हो ॥४॥
करुणा-निधान श्याम, मेरी बेर मुँदे कान ।
अशरण -शरण श्याम,सूर मन भाये हो ॥५॥