अभिलाषा - आओ नन्द -नन्दना , आओ मन...

’अभिलाषा’के अंतर्गत भगवत्प्रेमी संतोंकी सुमधुर कल्याणमयी कामनाओंका दिग्दर्शन करानेवाले पदोंकी छटा भाव-दृष्टिके सामने आती है ।


आओ नन्द-नन्दना, आओ मन-मोहना ।

गोपीजन प्राण-धन राध उर-चन्दना ॥१॥

कैसे तुम द्वारिका में, द्रोपदीकी टेर सुनी ।

कैसे तुम गजराज-काज नंगे पाँव धाये हो ॥२॥

कैसे तुम गणिकाके, औगुन निवारे नाथ ।

कैसे तुम भीलनीके, मीठे बेर खाये हो ॥३॥

कैसे तुम भारतमें, भीषमको प्रण राख्यो ।

कैसे तुम वसुदेवजीके, बन्धन छुटाये हो ॥४॥

करुणा-निधान श्याम, मेरी बेर मुँदे कान ।

अशरण -शरण श्याम,सूर मन भाये हो ॥५॥

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Last Updated : January 22, 2014

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