रामज्ञा प्रश्न - तृतीय सर्ग - सप्तक ४

गोस्वामी तुलसीदासजीने श्री. गंगाराम ज्योतिषीके लिये रामाज्ञा-प्रश्नकी रचना की थी, जो आजभी उपयोगी है ।


सकल काज सुभ सम‍उ भल, सगुन सुमंगल जानु ।

कीरति बिजय बिभूति भलि, हियँ हनुमानहि आनु ॥१॥

सभी कामोंके लिये उत्तम शुभ समय है । इस शकुनको कल्याणदायक समझो । हृदयमें श्रीहनुमान्‌जीका स्मरण करो; कीर्ति, विजय तथा श्रीष्ठ ऐश्वर्य प्राप्त होगा ॥१॥

सुमिरि सत्रुसूदन चरन चलहु करहु सब काज ।

सत्रु पराजय निज बिजय, सगुन सुमंगल साज ॥२॥

श्रीशत्रुघ्नजीके चरणोंका स्मरण करके चलो, सब काम करो । यह शकुन शत्रुकी पराजय एवं अपनी विजय तथा कल्याणकी सामग्री जुटानेवाला है ॥२॥

भरत नाम सुमिरत मिटहिं कपट कलेस कुचालि ।

नीति प्रीति परतीति हित, सगुन सुमंगल सालि ॥३॥

श्रीभरतजीके नामका स्मरण करते ही कपट, क्लेश और ( दुष्टोंकी ) कुचाल ( दुर्नीति ) मिट जाती है ॥ नीति-व्यवहार, प्रेम तथा विश्वासके लिये यह शकुन मंगलदायक है ॥३॥

राम नाम कलि कामतरु, सकल सुमंगल कंद ।

सुमिरत करतल सिद्धि जग, पग पग परमानंद ॥४॥

श्रीरामानाम कलियुगमें कल्पवृक्षके समान ( अभीष्टदाता ) है, समस्त श्रेष्ठ मंगलोंका मूल है, उसका स्मरण करनेसे संसारमें सब सिद्धियाँ हाथमें आ जाती हैं और पद-पदपर परम सुख प्राप्त होता है ॥४॥

( प्रश्‍न - फल शुभ है ।)

सीता चरन प्रनाम करि, सुमिरि सुनाम सनेम ।

सुतिय होहिं पतिदेवता, प्राननाथ प्रिय प्रेम ॥५॥

श्रीजानकीजीके चरणोंमे प्रणाम करके और उनके सुन्दर नामका नियमपूर्वक स्मरण करके उत्तम स्त्रियाँ पतिव्रता होती हैं और प्राणनाथ प्रियतम ( पति ) का प्रेम प्राप्त करती हैं ॥५॥

( स्त्रियोंको पतिप्रेमकी प्राप्तिका सूचकं शकुन है । )

लखन ललित मूरति मधुर सुमिरहु सहित सनेह ।

सुख संपति कीरति बिजय सगुन सुमंगल गेह ॥६॥

श्रीलक्ष्मणजीकी मधुरिमामयी सुन्दर मूर्तिका प्रेमपुर्वक स्मरण करो । यह शकुन सुख, सम्पति, कीर्ति, विजय आदि सुमंगलोंका घर ही है ॥६॥

तुलसी तुलसी मंजरीं, मंगल मंजुल मूल ।

देखत सुमिरत सगुन सुभ, कलपलता फल फूल ॥७॥

तुलसीदासजी कहते हैं कि तुलसीकी मजरीं उत्तम कल्याणकी जड़ है । उसका दर्शन और स्मरण शुभ शकुन है । वह कल्पलताके फलपुष्पके समान ( अभीष्ट फल देनेवाली ) है ॥७॥

( शकुन-फल श्रेष्ठ है । )

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Last Updated : January 22, 2014

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