खल बल अंध कबंध बस परे सुबंधु समेत ।
सगुन सोच संकट कहब, भूत प्रेत दुख देत ॥१॥
श्रेष्ठ भाई लक्ष्मणके साथ प्रभु बलके गर्वसे अंधे दुष्ट कबन्धके चंगुलमें पड़ गये ( उसने दोनों भाइयोंको पकड़ लिया ) । मैं कहूँगा कि यह शकुन शोक, विपत्ति तथा भूतप्रेतकी पीडा़का सूचक है ॥१॥
पाई नीच सुमीचु भलि, मिटा महा मुनि साप ।
बिहँग मरन सिय सोच मन, सगुन सभय संताप ॥२॥
नीच मारीचने उत्तम एवं श्लाघ्य मृत्यु पायी, महामुनि अगस्त्यजीका शाप* दूर हो गया । पक्षी ( जटायु ) की मृत्यु और सीताजी ( के वियोग ) का शोक (प्रभुके) मनसें है । यह शकुन भय तथा क्लेशकी प्राप्ति बतलाता है ॥२॥
काहि सबरी सब सीय सुधि, प्रभु सराहि फल खात ।
सोच समयँ संतोष सुनि सगुन सुमंगल बात ॥३॥
शबरीने (प्रभुसे) सीताजीका सब समाचार कहा । प्रभु प्रशंसा करके ( उसके दिये ) फल खाते हैं । यह शकुन कहता है कि चिन्ताके समय श्रेष्ठ कल्याणकारी बात सुनकर सन्तोष होगा ॥३॥
पवनसुवन सन भेंट भइ, भुमि सुता सुधि पाइ ।
सोच बिमोचन सगुन सुभ मिला सुसेवक आइ ॥४॥
(प्रभुकी) श्रीहनुमान्जीसे भेंट हुई । श्रीसीताजीका समाचार भी उन्होंने पाया ॥ (स्वामी श्रीरामको ) उत्तम सेवक आ मिला । यह शकुन शुभ हैं, शोकको दूर करनेवाला है ॥४॥
राम लखन हनुमान मन, दुहूँ दिसि परम उछाहु ।
मिला सुसाहिब सेवकहि, प्रभुहि सुसेवक लाहु ॥५॥
श्रीराम-लक्ष्मणके तथा हनुमान्जीसे भी मनमें दोनों ओर परम उत्साह है । इधर तो सेवक ( हनुमान्जी ) को उत्तम स्वामी मिला और उधर प्रभुको उत्तम सेवक प्राप्त हुआ ॥५॥
(स्वामी-सेवक-सम्बन्धी प्रश्नका फल शुभ है । )
कीन्ह सखा सुग्रीव प्रभु, दीन्हि बाँह रघुबीर ।
सुभ सनेह हित सगुन फल, मिटइ सोच भय भीर ॥६॥
सुग्रीवने प्रभुको मित्र बनाया और श्रीरघुनाथजीने उन्हें ( सुग्रीवको ) अपनी ( अभय ) भुजाका आश्रय दिया । इस शकुनका फल मित्रताके लिये शुभसूचक हैं; चिन्ता, भय और विपत्ति दूर होगी ॥६॥
बली बालि बलसलि दलि, सखा कीन्ह कपिराज |
तुलसी राम कृपाल को बिरद गरिब निवाज ॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं-(प्रभुने) अत्यन्त बलवान् बालीको नष्ट करके मित्र सुग्रीवको वानरोंका राजा बनाया । कृपामय श्रीरामका यही व्रत है कि वे दीनोंपर कृपा करनेवाले हैं ॥७॥
(प्रश्न - फल शुभ है । )
* सुन्द नामक यक्षके द्वारा ताड़काके गर्भसे मारिच उत्पन्न हुआ था । महर्षि अगस्त्यके शापसे सुन्द भस्म सुन्द भस्म हो गया । उस समय ताड़्का अपने पुत्र मारीचके साथ महर्षिको खाने दौडी़, तब महर्षि अगस्त्यजीने दोनोंको शाप दे दिया-'तुम राक्षस हो जाओ ।' श्रीरामद्वारा मारे जानेपर दोनों इस शापसे छूटे ।