नाथ हाथ माथे धरेल प्रभु मुदरी मूँह मेलि ।
चलेउ सुमिरि सारंगधर, आनिहि सिद्धि सकेलि ॥१॥
प्रभुने मस्तकपर हाथ रखा, ( उनकी) अँगूठी मुखमें रखकर उन शारंगधनुषधारीका स्मरण करके ( हनुमानजी ) चले, वे सफलताओंको समेट लायेंगे ॥१॥
( यात्राके लिये उत्तम प्रश्न फल है । )
संग नील नल कुमुद गद जामवंत जुबराज ।
चले राम पद नाइ सिर सगुन सुमंगल साज ॥२॥
साथमें नील, नल कुमुद गद जाम्बवान और युवराज अंगद श्रीरामके चरणोंमें मस्तक झुकाकर चले । यह शकुन कल्याण देनेवाल है ॥२॥
पैठि बिबर मिलि तापसिहि अँचइ पानि फलु खाइ ।
सगुन सिद्ध साधक दरस अभिमत होइ अघाइ ॥३॥
( हनुमानजी आदि वानर वीर ) गुफामें प्रविष्ट होकर तपस्विनीसे मिले, वहाँ जल पिया और फल खाये । इस शकुनका फल है कि किसी साधकका दर्शन होगा और अभीष्ट कार्य पूर्ण रूपसे सफल होगा ॥३॥
बनचर बिकल बिषाद बस, देखि उदधि अवगाह ।
असमंजस बढ़ सगुन गत, बिधि बस होइ निबाह ॥४॥
अथाह समुद्रको देखकर सभी वानर दुःखसे व्याकुल हो गये । शकुनका फल यह है कि जो भारी कठिनाई आयी है, वह बीत जायगी और भाग्यवश उससे छुटकारा हो जायगा ॥४॥
सब सभीत संपाति लखि हहरे हृदयँ हरास ।
कहत परस्पर गीध गति, परिहरि जीवन आस ॥५॥
सम्पाती गीधको देखकर सभी ( वानर ) डर गये; हृदयमें निराशासे खिन्न ह गये । जीवित रहनेकी आशा छोड़कर परस्पर जटायुकी सद्गतिका वर्णन करने लगे ॥५॥
( अकस्मात् भय प्राप्त होगा । )
नव तनु पाइ देखाइ प्रभु महिमा कथा सुनाइ ।
धरहु धीर साहस करहु मुदित सीय सुधि पाइ ॥६॥
नवीन शरीर पाकर प्रभुकी महिमा ( प्रत्यक्ष ) दिखलाकर तथा ( अपनी ) कथा * सुनाकर सम्पातीने कहा - धैर्य धारण करो । साहस बटोरो । सीताजीका समाचार पाकर प्रसन्न होगे ॥६॥
( कठिनाईसे पार होनेका मार्ग मिलेगा ।)
तुलसी राम प्रभाउ कहि मुदित चले संपाति ।
सुभ तीसर उनचास भल सगुन सुमंगल पाँति ॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीरामके प्रभावका वर्णन करके सम्पाती प्रसन्न होकर चले गये । तीसरे सर्गका यह उनचासवाँ दोहा उत्तम शकुन है, आनन्द-मंगलकी पंक्ति ( बहुत ही कल्याणकारी ) है ॥७॥
* गरुड़जीके बड़े भाइ अरुणके दो पुत्र थे- सम्पाती और जटायु ॥ ये दोनों भाई बालके गर्वसे सूर्यका स्पर्श करने ऊपर उडे़ । सूर्यका प्रचण्ड ताप सहन न होनेसे जटायु तो लौट आये; किन्तु उनके बड़े भाई सम्पाती ऊपर उड़ते ही गये । अन्तमें उनके पंख भस्म हो गये ॥ वे गिर पड़े । संयोगवश उन्हें एक चन्द्रमा नामके मुनिने देख लिया ॥ मुनिने उन्हें आश्र्वासन दिया कि श्रीरामके दूत जब सीताजीको ढूँढ़ते यहाँ आयेंगे तब उनके दर्शनसे तुम्हारे ये पंख फिर उग जायँगे, वानरोंके दर्शनसे सम्पातीके पंख उग आये ।