बंधु बिरोध न कुसल कुल कुसगुन कोटि कुचालि ।
रावन रबि को राहु सो भयो काल बस बालि ॥१॥
भाईसे विरोध करनेपर कुलका कुशल नहीं होता । वही ( भाई विभीषणका विरोध ) रावणरूपी सूर्यके लिये राहु हो गया और उसीसे वाली कालके वश हुआ ( मारा गया ) । यह अपशकुन करोडो़ कुचक्रोंका सूचक है ॥१॥
कीन्ह बास बरषा निरखि गिरिबर सानुज राम ।
काज बिलंबित सगुन फल होइहि भल परिनाम ॥२॥
वर्षा - ऋतु देखकर छोटे भाईके साथ श्रीरामने श्रेष्ठ पर्वतपर निवास किया । इस शकुनका फल है कि कार्यकी सफलतामें देर होगी, किंन्तु परिणाम अच्छा होगा ॥२॥
सीय सोध कपि भालु सब बिदा किए कपिनाथ ।
जतन करहु आलस तजहु नाइ राम पद माथ ॥३॥
वानरराज सुग्रीवने सीताजीका पता लगानेके लिये सब वानर-भालुओंको विदा किया । श्रीरामके चरणोंमें मस्तक झुकाकर प्रयत्न करो, आलस्य त्याग दो । ( कार्य सफल होगा ) ॥३॥
हनुमान हियँ हरषि तब राम जोहारे जाइ ।
मंगल मूरति मारुतिहि सादर लीन्ह बुलाइ ॥४॥
तब चित्तमें प्रसन्न होकर ( सम्मुख ) जाकर हनुमान्जीने श्रीरामको प्रणाम किया । मड्गलमूर्ति प्रभुने श्रीहनुमान्जीको आदरपूर्वक ( पास ) बुला लिया ॥४॥
( प्रश्न फल शुभ है । )
डाँटे बानर भालु सब अवधि गये बिन काज ।
जो आइहि सो काल बस कोपि कहा कपिराज ॥५॥
कपिराज सुग्रीवने क्रोध करके सब वानर भालुओंको डाँटते हुए कहा समय बीत जानेपर कार्य किये बिना जो आयेगा वह कालका शिकार होगा ( मारा जायगा ) ॥५॥
( प्रश्न फल अनिष्ट है । )
जान सिरोमनि जानि जियँ कपि बल बुद्धि निधानु ।
दीन्हि मुद्रिका मुदित प्रभु, पाइ मुदित हनुमानु ॥६॥
प्रभुने हृदयमें हनुमानजीको ज्ञानियोंमें शिरोमणि तथा बल-बुद्धिका निधान ( खजाना ) जानकर प्रसन्न होकर अपनी अँगूठी दी, उसे पाकर हनुमानजी प्रसन्न हुए ॥६॥
( प्रश्न फल शुभ है । )
तुलसी करतल सिद्धि सब, सगुन सुमंगल साज ।
करि प्रनाम रामहि चलहु. साहस सिद्ध सुकाज ॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीरामको प्रणाम करके चलो ( प्रस्थान करो ) । यह शकुन सुमंगल देनेवाला है, सब सिद्धियाँ ( सफलताएँ ) हाथमें ( प्राप्त ही ) समझो साहस करनेसे सब उत्तम कार्य सफल होंगे ॥७॥