सप्तर्षि n. सात ऋषियों का एक समुदाय, जिनका निर्देश ऋग्वेद सर्वानुक्रमणी, महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त है । पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट मन्वन्तरों की तालिका में हर एक मन्वन्तर के लिए विभिन्न सप्तर्षि बताये गये है । इस प्रकार चौदह मन्वन्तरों के लिए ९८ सप्तर्षियों की नामावलि पुराणों में दी गयी है (मनु आदिपुरुष देखिये) । विभिन्न मन्वन्तरो के सप्तर्षियों के संबंध में विभिन्न पुराणों में भी एकवाक्यता नहीं है । इस प्रकार पौराणिक साहित्य में अनेकानेक सप्तर्षियों के नाम प्राप्त होते हैं।
सप्तर्षि n. पौराणिक साहित्य में मन्वंतर कल्पना के विकास के साथ साथ सप्तर्षि कल्पना का विकास हुआ, जो विभिन्न मन्वन्तरों के मनु, देव, इंद्र, अवतार आदि के साथ मन्वन्तरों के प्रमुख अधियंता-गण माने गये हैं। इन सप्तर्षियों की संख्या प्रारंभ में केवल सात ही थी, बल्कि आगे चल कर उनमें अनेकानेक नये नाम समाविष्ट किये गये। इससे प्रतीत होता है कि, उत्तरकालीन सप्तर्षि आद्य सप्तर्षियों के वंशज थे । विभिन्न मन्वन्तरों में प्रजोत्पादन का कार्य इन ऋषियों पर निर्भर रहता था
[ब्रह्मांड. ३६] ;
[ह. वं. १.७] ;
[मार्क. ५०] ;
[विष्णु. ३.१] ;
[ब्रह्म. ५] ; मनु आदिपुरुष देखिये । पौराणिक साहित्य में इन्हें द्वापरयुग के ऋषि कहा गया है, एवं इनका निवासस्थान शनैश्र्वर ग्रह से एक लाख योजन दूरी पर बताया गया है
[वायु. ५३.९७] ;
[विष्णु. २.७.९] । इनकी कालगणना मनुष्यप्राणियों से विभिन्न थी, एवं इनके एक वर्ष में मानवीय ३०३० वर्ष समाविष्ट होते थे ।
सप्तर्षि n. इस ग्रंथ में, ऋग्वेद के निम्नलिखित सूक्तद्रष्टा ऋषियों को सप्तर्षि कहा गया हैः-- १. भारद्वाज बार्हस्पस्त्य; २. कश्यप मारीच; ३. गोतम राहुगण; ४. अत्रि भौम; ५. विश्वामित्र गाथिन; ६. जमदग्नि भार्गव; ७. वसिष्ठ मैत्रावरुणि
[ऋ. सर्वानुक्रमणी. ९. १०७.१-२६, १०.१३७.१-७] । ऋग्वेद सर्वानुक्रमणी में दो स्थानों पर सप्तर्षियों की नामावलि प्राप्त है, एवं उनमें संपूर्णतया एकवाक्यता है ।
सप्तर्षि n. इस ग्रंथ में सप्तर्षियों की दो नामावलियाँ प्राप्त है, जो निम्नप्रकार हैः--(१) नामावलि क्रमांक---१. कश्यप; २. अत्रि; ३. भरद्वाज; ४. विश्वामित्र; ५. गौतम; ६. जमदग्नि; ७. वसिष्ठ
[म.श.४७.२८७*] ;
[अनु. १४.४] ।(२) नामावलि क्रमांक---१. मरीचि; २. अत्रि; ३. अंगिरस्; ४. पुलस्त्य; ५. पुलह; ६. क्रतु; ७. वसिष्ठ
[म.शां.३२२.२७] ।
सप्तर्षि n. महाभारत में अन्यत्र सप्तर्षियों को दिशाओं के स्वामी कहा गया है, एवं पूर्व, दक्षिण, पश्चिम एवं उत्तर दिशाओं के सप्तर्षियों की नामावलि वहाँ निम्नप्रकार दी गयी हैः-- (१) पूर्वदिशा के सप्तर्षिः-- १. यवक्रीत; २. अर्वावसु; ३. परावसु; ४. कक्षीवत्; ५. नल; ६. कण्व; ७. बर्हिपद्। (२) दक्षिणा दिशा के सप्तर्षि---१. उन्मुच; २. विमुच्, ३. वीर्यवत्; ४. प्रमुच्; ५. भगवत्; ६. अगत्स्य; ७. दृढवत्। (३) पश्चिम् दिशा के सप्तर्षि---१. रुषद्गु; २. कवप; ३. धौम्य; ४. परिव्याध; ५. एकत-द्वित-त्रित; ६. दुर्वासस्; ७.सारस्वत । (४) उत्तर दिशा के सप्तर्षि---१. आत्रेय; २. वसिष्ठ; ३.कश्यप; ४. गौतम; ५. भरद्वाज; ६. विश्वामित्र; ७. जमदग्नि
[म.शां.२०१.२६] ।