ऋषभ n. (स्वा. प्रिय.) नाभि तथा मेरुदेवी का पुत्र । माता का नाम सुदेवी भी था
[भा.२.७.१०] । राज नामक इंद्र ने इसे अपने कन्या जयंती दी थी तथा उससे इस राजा को सौ पुत्र हुये । उन में श्रेष्ठ भरत हैं । उन में से ८१ पुत्र कर्ममार्गाचरण करनेवाले ऋषि बने तथा कवि, हरि, अंतरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र, द्रुमिल, चमस तथा करभाजन नामक नौ पुत्र ब्रह्मनिष्ठ थे । ऋषभदेव ने भरत, कुशावर्त, इलावर्त, ब्रह्मावर्त, मलय, केतु, भद्रसेन, इंद्रस्पृश्, विदर्भ तथा कीकट नाम से अपने अजनाभवर्ष के नौ खंड करके उन्हें अधिपति बनाया तथा अवशेष भाग का सार्वभौमत्व भरत को दिया । इसने प्रजा को धर्मानुकूल बनाकर पुत्रों को ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया
[भा.५.३-६] । बाल्यावस्था से ही ऋषभदेव के हस्तपादादि अवयवों पर वज्र, अंकुश, ध्वज इ. चिह्र दीखने लगे थे । इसका ऐश्वर्य देखकर इंद्र के मन में असूया उत्पन्न होने लगी तथा उसने उसके खंड में वर्षा करना बंद कर दिया । तब उसका कपट ऋषभदेव पहचाना तथा अपनी माया के प्रभाव से अपने अजनाभखंड में वर्षा कर दी । तदनंतर यह कर्मभूमि है ऐसा ख्याल कर ऋषभदेव ने प्रथम गुरुगृह में वास्तव्य किया । तदनंतर गृहस्थाश्रम का स्वीकार किया तथा शास्त्रोक्तविधि से यथासांग आचरण किया । यह आत्मविवेक से बर्ताव करता था । यह ब्राह्मणों में अपने पुत्रों को उद्देशित करके संसार को इसने ज्ञानोपदेश दिया । उस समय यह घर में ही विक्षिप्त के समान दिगंबर तथा अस्ताव्यस्त रहता था । तदनंतर इसने संन्यास लिया तथा ब्रह्मावर्त से बाहर निकला । लोग उसे कैसा भी उपसर्ग देते थे तब वह उन्ही ओर ध्यान न देकर वह स्वस्वरुपमें स्थिर रहता था । ऐसी आनन्दमय स्थिति में यह पृथ्वी पर घूमता था । देहत्याग की इच्छा से इसने मुँह में पत्थर पकडा तथा दक्षिण में कटक पर्वत के अरण्य में घूमते समय दानावल से ऋषभदेव शरीर दग्ध हो गया
[भा.५.३-६] । स्वयं विरक्त हो कर वन में गया
[मार्क ५०.४०] तथा अपना श्वासोच्छ्वास मिट्टी की इँट से बंद कर देहत्याग किया
[विष्णु.२.१.३२] । यह भगवंत का आठवॉं अवतार था इसने परमहंस दीक्षा ली थी (भा.२.७.१०.अर्हत् देखिये) । इसका अनुयायी तथा नाती सुमति । इसके अनुयायी होने के कारण लोग सुमति दो देव मानने लगे ।
ऋषभ (याज्ञतुर) n. यह श्विक्न का राजा तथा अश्वमेध करनेवालों में एक था
[श.ब्रा. १२.८.३.७,१३.५.४.१५] ;
[सां. श्रौ.१६.९.८.१०] ; गौरवीति शाक्त्य देखिये ।
ऋषभ (वैराज शाक्कर) n. सूक्तद्रष्टा
[ऋ. १०.१६६] ।
ऋषभ II. n. ऋषभकूटशृंग पर रहनेवाला एक क्रोधी ऋषि । इसके पास अनेक लोग आने लगे तथा उसे कष्ट होने लगे । तब इसने पर्वत तथा वायु को आज्ञा दी कि, इधर अगर कोई आने लगे तो उनपर पाषाणवृष्टि कर के वापस कर दो
[म.व.१०९] । आशा कितनी सूक्ष्म तथा विशाल रहती है इसे कृश तनुवीरद्युम्नसंवादरुपी दृष्टांत देकर इसने सुमित्र राजा को समझाया है । इस ऋषि के इस संवाद को ऋषभगीता नाम है
[म.शां.१२५-१२८] ।
ऋषभ III. n. वाराहकल्प के वैवस्वत मन्वन्तर के नवम चौखाने में व्यास के निवृत्ति मार्ग का प्रसार करने के लिये ऋषभ नामक शिव का अवतार होनेवाला है । उसके अनुक्रम से १. पराशर, २. गर्ग, ३. भार्गव, ४.गिरीश शिष्य होगें । यह योगमार्ग का उद्धार करनेवाला है
[शिव. शत ५. ३६-४८] ; भद्रायु देखिये । भद्रायु के कथनानुसार यह प्रवृत्तिमार्गीय होगा ।
ऋषभ IV. n. स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ।
ऋषभ IX. n. एक वानर । राम के राज्याभिषेक के समय वह समुद्र का उदक लाया था तथा मत्त राक्षस का वध किया था
[वा.रा.यु.७०.५८.६३] ।
ऋषभ V. n. इन्द्र आदित्य का पुत्र
[भा.६.१८.७] ।
ऋषभ VI. n. एक असुर । इसका वध करने के बाद उसके चमडे की दुंदुभि बृहद्रथ राजा ने बनाई थी
[म.स.१९.१५] ।
ऋषभ VII. n. अंगिरावंश के धृष्णि का पुत्र । इसका पुत्र सुधन्वा
[ब्रह्मांड.३.१.१०७] । यह मंत्रकार था
[वायु.५९.९८-१०२] ।
ऋषभ VIII. n. (सो. अज.) भागवत के मतानुसार कुशाग्र राजाका पुत्र । इसका सत्यहित नामक पुत्र था ।
ऋषभ X. n. ०. (सू.इ.) राम तथा अयोध्यापुर निवासी सब जनों की मृत्यु के बाद पुनरपि शून्य हुये प्रदेश में निवास करनेवाला राजा
[वा.रा.उ. १११] ।
ऋषभ XI. n. १. (सो. वृष्णि.) वृष्णि का पुत्र
[पद्म. सृ.१३] ।
ऋषभ XII. n. २. कृष्ण के पुत्रों में से एक
[भा.१.१४.३१] ।
ऋषभ XIII. n. ३. एक गोप का नाम । यह रामकृष्ण का मित्र था
[भा.१०.२२] ।
ऋषभ XIV. n. ४. एक ऋषि । यह युधिष्ठिर की सभा में था
[म.स.११.१२५ पंक्ति६] ।
ऋषभ XV. n. ५. आयुष्मान् तथा अंबुधारा का पुत्र । दक्षसावर्णि मन्वन्तर में होनेवाला विष्णु का अवतार (मनु देखिये) ।
ऋषभ XVI. n. ६. विश्वामित्र का पुत्र
[ऐ. ब्रा. ७.१७.] ।