पुलह n. ब्रह्माजी के आठ मानसपुत्रों में से एक, जो छः शकिशाली ऋषियों में गिना जाता था
[म.आ.६०.४] । स्वायंभुव मन्वंतर में यह ब्रह्माजी के नाभि से अथवा ‘व्यान’ से उत्पन्न हुआ
[भा.४.१.३८] । यह स्वायंभुव दक्ष का दामाद तथा शिवजी का साडू था । दक्ष द्वारा अपमानित होने पर, शिवजी ने इस दग्ध कर मार डाला । दक्षकन्या क्षमा इसकी पत्नी थी । भागवत् में इसके गति और एक पत्नी का निर्देश प्राप्त है । ब्रह्माजी के अन्य मानसपुत्रों के साथ, यह भी शिवजी के शाप से मृत हुआ
[मत्स्य.१९५] ।
पुलह n. अपने क्षमा नामक पत्नी से, इसे निम्नलिखित पुत्र उत्पन्न हुएः---(१) कर्दम---अत्रि ऋषि की आत्रेयी ‘श्रुति’ नामक कन्या से इसका विवाह हुआ था, जिससे इसे शंखपाद एवं काम्या नामक दो सन्ताने हुयीं । उनमें से शंखपाद दक्षिण दिशा का प्रजापति था । काम्या का विवाह स्वायंभुव मनु का पुत्र प्रियव्रत राजा से हुआ था, जिससे उसे दस पुत्र, एवं दो कन्यायें उत्पन्न हुयीं । उन दस प्रियव्रतपुत्रों ने आगे चल कर ,क्षत्रियत्त्व को स्वीकार किया, एवं वे सप्तद्वीपों के स्वामी बन गये
[ब्रह्मांड.२.१२.-३५] ; प्रियव्रत देखिये । (२) कनकपीठ---अपनी यशोधरा नामक पत्नी से, इसे सहिष्णु एवं कामदेव नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए । (३) उर्वरीवत, (४) सहिष्णु (५) पीवरी (कन्या)
पुलह n. अपने गति नामक पत्नी से, इसे कर्दम, उर्वरीवत एवं सहिष्णु नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए
[विष्णु १.१०.१०] ।
पुलह II. n. वैवस्वत मन्वन्तर में पैदा हुआ आद्य पुलह ऋषि का पुनरावतार । शिवजी के शाप से मरे हुये ब्रह्माजी के सारे मानसपुत्र, उसने वैवस्वत मन्वन्तर में पुनः उत्पन्न किये । उस समय, यह अग्नि के लंबे केशों में से उत्पन्न हुआ । इसे संध्या नामक एक पत्नी थी । इसके अतिरिक्त क्रोधा की बारह कन्यायें इसकी पत्नियॉं थीं, जिनके नाम इस प्रकार थे---मृगी, मृगमंद्रा, हरिभद्रा, इरावती, भूता, कपिशा, दंष्टा, रिषा, तिर्या, श्वेता सरमा तथा सुरसा
[ब्रह्मांड. ३.७.१७१] ।
पुलह II. n. महाभारत के अनुसार, पुलह की संतति मनुष्य न हो कर मृग, सिंह, रीछ, व्याघ्र, किंपुरुष आदि योनि की थीं
[म.आं.६०.७] । वायु के अनुसार, इसके पुत्रों में दानव, रक्ष, गंधर्व, किन्नर, भूत, सर्प, पिशाच आदि प्रमुख थे
[वायु.७०.६४-६५, ७३.२४.२५] । मार्कण्डेय के अनुसार, पुलह कें कर्दम, अर्ववीर एवं सहिष्णु नामक तीन पुत्र थे
[मार्क.५२.२३-२४] । ये पुत्र दुष्टचरित्र थे, अतएव पुलह ने अगस्त्य के पुत्र दृढास्य (दृढच्युत) को गोद लिया । पद्म में इसी अगस्त्यपुत्र का नाम दंभोलि दिया गया हैं । इसी कारण पुलह के वंश की दो शाखायें हो गयीं । इनमें से पुलह के निजी पुत्र ‘पौलह’ अमानुषी योनि के थे, एवं अगस्त्यशाखा के पुत्र ब्रह्मराक्षस योनि के थे
[मत्स्य.२०१.९-१०] ।
पुलह III. n. महाभारतकालीन एक ऋषि । यह अर्जुन के जन्मोत्सव में उपस्थित था
[म.आ.११४.४२] । शरशय्या पर पडे हुये भीष्म के पास आये हुये, ऋषियों में यह एक था
[म.अनु.२६.४] । अलकनंदा नदी के तट पर यह जप तप करता था
[म.व.परि.१.१६.१२] ।
पुलह IV. n. एक ऋषि. जो ब्रह्माजी के द्वारा पुष्करक्षेत्र में किये यज्ञ में ‘प्रत्युद्गाता’ था
[पद्म. सृ.३४] ।
पुलह V. n. वैशाख माह में अर्यमा नामक् सूर्य के साथ घूमनेवाला एक ऋषि
[भा.१२.११.३४] ।