प्रपंच n. कालोपरांत मनु राजा अपनी रानी के साथ कर्दम के यहां आया । उसने अपनी कन्या देवहूति बडे ठाठ बाट के साथ कर्दम को अर्पण की । कर्दम ने विष्णु के कहने के अनुसार, देवहूति को स्वीकार किया । परंतु उससे एक बार ही समागम करुंगा यह शर्त रखी, तथा समागम के बाद संन्यास लूंगा यह चेतावनी दी । तदनुसार दोनों लोग कालक्रमण करने लगे । पतिव्रता देवहूति की सेवा से संतुष्ट हो कर कर्दम ने उसे इच्छित वस्तु को मांगने को कहा । उसने संभोग की इच्छा प्रकट की । देवहूति की इच्छा मान कर इसने एक विमान तयार किया । उस विमान में समागम के ऐश्वर्ययुक्त साधन निर्माण किये, तथा लगातार सौ वर्षो तक देवहूति से समागम किया । तब देवहूति को कला, अनसूया श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुंधती, शांति आदि नौ कन्याएं हुई । ब्रह्माजी के कहने पर उन्हें क्रमशः मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, अथर्वा आदि को प्रजोत्पादन हेतु से दिया । देवहूति के उदर से विष्णु ने कपिल नाम से जन्म लिया । बाद में एकांत में कपिल को मिल कर, कर्दम ने उसे नमस्कार किया । उसके बाद, संन्यास ले कर तथा वन में जा कर विष्णुध्यान से यह वैकुंठलोक गया
[भा.३.२१-२४] ।
प्रपंच II. n. लक्ष्मीपुत्र।