लगध n. एक ग्रंथकार, जो ‘ऋग्वेदी वेदांग ज्योतिष’ का कर्ता माना जाता है । इसके नाम के लिए कई ग्रंथो में ‘लगड’ पाठभेद भी प्राप्त हैं । किन्तु कै. शं. बा दिक्षित के अनुसार, ‘लगध’ पाठभेद ही स्वीकारणीय है
[दिक्षित, भारतीय ज्योतिष पृ. ७२] लगध n. वेदांगज्योतिष का समावेश छ: वेदांगों में सर्वतोपरि माना जाता है, जिस प्रकार मयुरों की शिखाएँ एवं नागों की मणियाँ सर्वोपरि रहती है --- यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा । तद्वद्वेदांगशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्धनि स्थतम् ॥
[वे. ज्यो. श्लोक ४] भारतीय ज्योतिषशास्त्र का मूल ग्रंथ ‘वेदांगज्योतिष’ माना जाता है, जिससे आगे चल कर, ज्योतिषशास्त्र ने संहिता, गणित एवं जातक इन तीन भागों मे अपना विकास किया । आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त एवं भास्काराचार्य जैसे ज्योतिर्विदों ने इस शास्त्र को अभिनव रूप प्रदान किया । ऐसे महान् शास्त्रों जन्म देनेवाले ‘ऋग्वेदी वेदांगज्योतिप’ ग्रन्थ में केवळ ३६ श्लोक हैं । इसी ग्रंथ का ‘यजुर्वेद वेदांगजोतिष’ नामक एक अन्य संस्करण प्राप्त है, जिसमें ४३ श्लोक प्राप्त हैं । उनमें से ३६ श्लोक ऋग्वेदवेदांगज्योतिष के, एवं ७ श्लोक नयें है । मेंक्स म्यूलर के अनुसार, इस छोटे ग्रन्थ का उद्देश्य ज्योतिष की शिक्षा देना नहीं हैं, बल्कि आकाशीय ग्रह आदि के बारे में वह ज्ञान प्रदान करना है, जो वैदिक यज्ञों के दिन एवं मुहुर्त के निश्चयार्थ आवश्यक है ।
लगध n. वेदांगज्योतिषशास्त्र का प्रणयन करनेवाला लगध एक भारतीय व्यक्ति था, या विदेशी, इसके बारे में निश्चित जानकारी अप्राप्य है । इस ग्रन्थ में लगध का जन्मस्थान ३४।४६ अथवा ३४।५५ अक्षांश पर निर्देशित है, जिससे प्रतीत होता है कि, यह उत्तर काश्मीर अथवा अफगाणिस्थान का निवासी था ।
लगध n. इस ग्रन्थ में बतायी गई विषुवस्थिति के आधार पर कै, शं. बा. दिक्षित ने इस ग्रन्थ का काल पाणिने एवं यास्क के पूर्व अर्थात् ई. पू. १४०० निश्चित किया है
[दिक्षित, भारतीय ज्योतिष पृ. ८८] ; पाणिनि देखिये किन्तु कई अन्य अभ्यासको के अनुसार, तारो के सापेक्ष सूर्य की स्थितिके आधार पर इस ग्रन्थ का रचनाकाल का अनुमान लगाना योग्य नहीं है । इसी कारण, कई अन्य अभ्यासकों ने इसका कालनिर्णय निम्न प्रकार दिया है---१ मँक्सम्युलर ई. पृ. ३ रीं शताब्दी; २. वेबर-ई. पू. ५ वी शताब्दी; ३. लोकमान्य तिलक-ई. पू. १२६९-११८१ (ओरायन, पू.३७-३८) ;४. विल्यम जोल्स-ई. पृ. ११८१;५. कोलब्रुक- ई. पू. १३८१;६. चिं वि. वैद्य-ई. पू. १२० । ऋखेद वेदांगज्योतिष का अंग्रेजी अनुवाद प्रो. थिबोके द्वारा. ई. स. १८८९ में प्रकाशित किया गया है । ऋग्वेद एवं यजुवेंद वेदांगज्योतिष का मराठी अनुवाद ई. स. १८८५ में प्रसिद्ध हो चुका है, जो कै. ज. बा. मोइक के द्वारा किया गया है ।