पुनर्वसु n. (सो.कुकुर.) एक यादव राजा । भागवत के अनुसार यह दरिद्योत का, वायु तथा विष्णु के अनुसार अभिजित का, तथा मत्स्य के मतानुसार नल या नंदनोदरदुंदुभि का पुत्र था । इसके आहुक तथा आहुकी नामक दो पुत्र थे ।
पुनर्वसु (आत्रेय) n. एक प्राचीन आर्युवेदाचार्य । चरक संहितो के मूल ग्रंथ ‘अग्निवेशतंत्र’ के रचयिता अग्निवेश का तथा उसके सहपाठी भेल आदि का यह गुरु था । यह ब्रह्मा के मानसपुत्र देवर्षि अत्रि का पुत्र था । आत्रेय शब्द से ‘अत्रिपुत्र’ ‘अत्रिवंशज’ एवं ‘अत्रि-शिष्यपरम्परा’ का बोध होता है, किंतु यहाँ ‘आत्रेय’ शब्द पुत्र-वाचक ही है । क्योंकि, चरकसंहिता में विभिन्न स्थानों पर इसके लिये ‘अत्रिसुत’, ‘अत्रिनंदन’ आदि का स्पष्ट निर्देश है
[चरक. सू.३.२९,३०.५०] । इसके पिता अत्रि ऋषि स्वयं आयुर्वेदाचार्य थे । ‘काश्यपसंहिता’ के अनुसार, इंद्र ने कश्यप, वसिष्ठ, अत्रि एवं भृगु ऋषियों को आयुर्वेद की शिक्षा दी थी । अश्वघोष के अनुसार, आयुर्वेद चिकित्सातंत्र का जो भाग अत्रि ऋषि पूरा न कर सके, उसे उसके पुत्र पुनर्वसु आत्रेय ने पूर्ण किया
[अश्वघोष-‘बुद्धचरित’ १.४३] । इसकी माता का नाम चन्द्रभागा था, जिस कारण इसे ‘चान्द्रभागा’ अथवा चान्द्रभागी नामांतर भी प्राप्त है
[काश्यप. उपोद्घात पृ.७७] कृष्णयजुर्वेदाय होने के कारण इसे ‘कृष्णात्रेय’ भी कहते हैं
[चरक.सृ.११.६५] । अपने पिता अत्रि ऋषि तथा भरद्वाज से आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त कर, यह आयुर्वेदाचार्य बना । सामान्यतः यह भरद्वाज ऋषि का समकालीन माना जाता है । किन्तु एक तिब्बतीय कथा के अनुसार, सुप्रसिद्ध बौद्धभिक्षु जीवन की आयुर्वेदीय शिक्षा आचार्य आत्रेय द्वारा तक्षशिला में हुयी थी । पुनर्वसु आत्रेय यायावर ऋषि थे, एवं इनके रहने का कोई स्थान निश्चित था । यह पर्यटन करते हुये आयुर्वेद का उपदेश देते थे, एवं विद्वानों की सभाओं में भाग लेते थे। महर्षि भरद्वाज के द्वारा आयोजित एक ‘वैद्यक-सभा’ में यह उपस्थित थे ।
पुनर्वसु (आत्रेय) n. आत्रेय के कुल छः शिष्य थे, जिनके नाम इस प्रकार थेः--अग्निवेश, भेल, जतूकर्ण, पराशर, हारीत तथा क्षीरपाणि
[चरक.१.३०,३७] ।
पुनर्वसु (आत्रेय) n. इसका सुविख्यात ग्रन्थ ‘आत्रेयसंहिता’ हैं । इस ग्रन्थ के अनेक हस्तलेख विभिन्न् हस्तलेख संग्रहों में प्राप्त हैं । आजकाल प्रकाशित ‘हारीतसंहिता’ में पॉंच विभिन्न ‘आत्रेय संहिताओं’ के निर्देश प्राप्त हैं, जिनकी श्लोक संख्या क्रमशः चौवीस हजार, बारह हजार, छः हजार, तीन हजार एवं पंद्रह सौ दी गयी हैं । आत्रेय के नाम पर लगभग तीस ‘आयुर्वेदीय योग’ उपलब्ध हैं । इनमें से ‘बल तैल’ एवं ‘अमृताद्य तैल’ का निर्देश संहिता में प्राप्त है
[चरक.चि.२८.१४८-१५६,१५७-१६४] ।
पुनर्वसु II. n. दक्ष की कन्या, जो सोम की पत्नी थी ।