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स्तु mfn. 1.cl. 2. Ā. P. ( [Dhātup. xxiv, 34] ; cf. [Pāṇ. 7-3, 95] ) स्तौ॑ति or स्तवीति, स्तुते or स्तुवीते (in, [RV.] also स्त॑वते, 3. sg. स्तवे [with pass. sense], 1. 3. sg. स्तुषे॑Impv. स्तोषि, p. [mostly with pass. sense] स्तुवान॑, स्त॑वान or स्तवान॑, स्त॑वमान; in [BhP.] स्तुन्वन्ति, in [Up.] p. स्तुन्वान; pf. तुष्टाव, तुष्टुवु॑स्, तुष्टुवे॑, [RV.] &c. &c.; aor. अस्तावीत् or अस्तौषीत्, [Br.] &c.; स्तोषत्, स्तोषाणि, [RV.] ; अ॑स्तोष्ट, ib. &c.; Prec. स्तूयात्Gr. ; fut. स्तविता or स्तोता, [Vop.] ; fut. स्तविष्य॑ति, °ते, [RV.] ; स्तोष्यति, °ते, [Br.] &c.; Cond. अस्तोष्यत्, [Bhaṭṭ.] ; inf. स्तोतुम्, ib. &c.; स्तवितुम्, [Vop.] ; स्तो॑तवे, स्तव॑ध्यै, [RV.] ; ind.p. स्तुत्वा॑, [AV.] &c.; -स्तु॑त्य, [Br.] &c.; -स्तूय, [MBh.] &c.), to praise, laud, eulogize, extol, celebrate in song or hymns (in ritual, ‘to chant’, with loc. of the text from which the सामन् comes), [RV.] &c. &c.: Pass. स्तूय॑ते ( aor. अस्तावि), to be praised or celebrated; स्तायमानmfn. being praised, ib. : Caus. स्तावयति ( aor. अतुष्टवत्, [RV.] ; °टुवत्, [JaimBr.] ), to praise, celebrate; ( स्तावयते), to cause to praise or celebrate, [BhP.] : Desid. तुष्टूषति, °ते ( p.p. तुष्टूषित), to wish to celebrate, [Śaṃk.] : Intens. तोष्टूयते, तोष्टोतिGr. स्तु 2. See सु-ष्टु॑p. 1238, col. 1. स्तु 3. ( prob. invented to serve as a root for the words below), to be clotted or conglomerated; to trickle. स्तु 4. (= स्तु॑का) in पृथु-ष्टुq.v.
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