कन्याभं वरमाद्नण्यं वधूभाद्वरभं तथा ।
नवहृच्छेषभे नेष्टे सप्तपंचत्रिसंख्यके ॥७४॥
शुभा चेदेकतस्तारा तदा सार्धगुणोदय : ।
शुभा चेत्स्युस्त्रय : शून्यं चोभयोश्चेत्रयोऽशुभा : ॥७५।
वरच्या जन्मनक्षत्रापासून वधूच्या जन्मनक्षत्रापर्यंत नक्षत्रें मोजावीं ; त्यांस नवांनीं भागावें ; बाकी ३।५।७ राहिली तर अशुभ आणि १।२।४।६।८।० म्हणजे ९ राहिली तर शुभताराबल आहे , असें समजावें . तसेंच , वधूनक्षत्रापासून वरनक्षत्रापर्यंत नक्षत्रें मोजून नवांनीं भागावें आणि वरच्याप्रमाणेंच शुभाशुभ समजावें . दोघांची शुभ तारा आली तर गुण तीन . एक शुभ व दुसरी अशुभ असतां , गुण दीड व दोन्ही ठिकाणीं बाकी ३।५।७ असतां , शून्य गुण धरावा .
तारागुणांचे कोष्टक
कन्या |
वर |
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५ |
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७ |
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९ |
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