मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|श्री गुरू ग्रंथ साहिब|सुखमनी साहिब| अष्टपदी २ सुखमनी साहिब अष्टपदी १ अष्टपदी २ अष्टपदी ३ अष्टपदी ४ अष्टपदी ५ अष्टपदी ६ अष्टपदी ७ अष्टपदी ८ अष्टपदी ९ अष्टपदी १० अष्टपदी ११ अष्टपदी १२ अष्टपदी १३ अष्टपदी १४ अष्टपदी १५ अष्टपदी १६ अष्टपदी १७ अष्टपदी १८ अष्टपदी १९ अष्टपदी २० अष्टपदी २१ अष्टपदी २२ अष्टपदी २३ अष्टपदी २४ सुखमनी साहिब - अष्टपदी २ हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे. Tags : granthasahibsikhsukhamani sahibग्रंथसाहिबसिखसुखमनी साहिब अष्टपदी २ Translation - भाषांतर ( गुरु ग्रंथ साहिब पान २६४ )श्लोकदीन दरद दुख भंजना, घटि घटि नाथ अनाथ ॥सरणि तुमारी आइओ , नानक के प्रभ साथ ॥१॥पद १ लेजह मात पिता सुत मीत न भाई ।मन ऊहा नामु तेरै संगि सहाई ॥जह महा भइआन दूत जम दलै ।तह केवल नामु संगि तेरै चलै ॥जह मुसकल होवै अति भारी ।हरी को नामु खिन माहि उधारी ॥अनिक पुनहचरन करत नही तरै ।हरि कोनामु कोटि पाप परहरै ॥गुरमुखि नामु जपहु मन मेरे ।नानक पावहु सूख घनेरे ॥१॥पद २ रेसगल स्त्रिसटि को राजा दुखीआ ।हरि का नामु जपत होइ सुखीआ ॥लाख करोरी बंधु न परै ।हरि का नामु जपत निसतरै ॥अनिक माइआ रंग तिख न बुझावै ।हरि का नामु जपत आघावै ॥हरि का नामु जपत आघावे ॥जिह मारगि इहु जात इके ला ।तह हरि नामु संगि होत सुहेला ॥ऐसा नामु मन सदा धिआईऐ ।नानक गुरमुखि परम गति पाईऐ ॥२॥पद ३ रेछूटत नही कोटि लख बाही ।नामु जपत तह पारि पराही ॥अनिक बिघन जह आइ संघारै ।हरि का नामु ततकाल उधारै ॥अनिक जोनि जनमै मरि जाम ।नामु जपत पावै बिस्त्राम ॥हउ मैला मलु कबहु न धोवै ।हरि का नामु कोटि पाप खोवै ॥ऐसा नामु जपु मन रंगि ।नानक पाईऐ साध कै संगि ॥३॥पद ४ थे जिह मारग के गने जाहि न कोसा ।हरि का नामु ऊहा संगि तोसा ॥जिह पैडै महा अंध गुबारा ।हरि का नामु संगि उजीआरा ॥जहा पंथि तेरा को न सिञानू ।हरि का नामु तह नालि पछानू ॥जह महा भइआन तपति बहु घाम । तह हरि के नाम की तुम ऊपरि छाम ॥जहा त्रिखा मन तुझु आकरखै ।तह नानक हरि हरि अंम्रितु बरखै ॥४।पद ५ वे भगत जना की बस्तनि नामु ।संत जना कै मनि बिस्त्रामु ॥हरि का नामु दास की ओट ।हरि कै नामि उधरे जन कोटी ॥हरि जसु करत संत दिनु राति ।हरि हरि अउखधु साध कमाति ॥हरि जन कै हरि नामु विधानु ।पारब्रहमि जन कीनो दान । मन तन रंगि रते रंग एकै ।नानक जन कै बिरति बिबेकै ॥५॥पद ६ वेहरि का नामु जन कउ मुकति जुगति ।हरि कै नामि जन कउ त्रिपति भुगति ॥हरि का नामु जन का रुप रंगु ।हरि नामु जपत कब परै न भंगु ॥हरि का नामु जन की वडिआई ।हरि कै नामि जन सोभा पाई ॥हरि का नामु जन कउ भोग जोग ।हरि नामु जपत्त कछु नाहि बिओगु ॥जनु राता हरि नाम की सेवा ।नानक पूजै हरि हरि देवा ॥६॥पद ७ वेहरि हरि जन कै मालु खजीना । हरि धनु जन कउ आपि प्रभि दीना ॥हरि हरि जन कै ओट सताणी ।हरि प्रतापि जन अवर न जाणी ॥ ओति पोति जन हरि रस राते ।सुंन समाधि नाम रस माते ॥आठ पहर जनु हरि हरि जपै ।हरि का भगतु प्रगट नही छपै ॥हरि की भगति मुकति बहु करे ।नानक जग संगि केते तरे ॥७॥पद ८ वे पारजातु इहु हरि को नाम ।कामधेन हरि हरि गुण गाम ॥सभ ते ऊतम हरि की कथा ।नामु सुनत दरद दुख लथा ॥नाम की महिमा संत रिद वसै ।संत प्रतापि दुरतु सभु नसै ॥संत का संगु वडभागी पाईऐ ।संत की सेवा नामु धिआईऐ ॥नाम तुलि कछु अवरु न होइ ।नानक गुरुमुखि नामु पावै जनु कोइ ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : December 28, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP