सुखमनी साहिब - अष्टपदी ७

हे पवित्र काव्य म्हणजे शिखांचे पांचवे धर्मगुरू श्री गुरू अरजनदेवजी ह्यांची ही रचना.
दहा ओळींचे एक पद, आठ पदांची एक अष्टपदी व चोविस अष्टपदींचे सुखमनी साहिब हे काव्य बनलेले आहे.


( गुरु ग्रंथ साहिब पान क्र. २७१ )

श्लोक

अगम अगाधि पारब्रहमु सोइ जो जो कहै सु मुकता होइ ।
सुनि मीता नानकु बिनवंता साध जना की अचरज कथा ॥१॥

पद १ ले

साध कै संगि मुख ऊजल होत ।
साध संगि मलु सगली खोत ॥
साध कै संगि मिटें अभिमानु ।
साध कै संगि प्रगटै सुगिआनु ॥
साध कै संगि बुझै प्रभु नेरा ।
साध संगि संभु होत निबेरा ॥
साध कै संगि पाए नाम रतनु ।
साध कै संगि एक ऊपरि जतनु ॥
साध की महिमा बरनै कउनु प्रानी ।
नानक साध की सोभा प्रभ माहि समानी ॥१॥

पद २ रे

साध कै संगि अगोचरु मिलै ।
साध कै संगि सदा परफुलै ॥
साध कै संगि आवहि बसि पंचा ।
साध संगि अंम्रित रसु भुंचा ॥
साध संगि होइ सभ की रेन ।
साध के संगि मनोहर बैन ॥
साध कै संगि न कतहूं धावै ।
साध संगि असथिति मनु पावै ॥
साध कै संगि माइआ ते भिंन ।
साध संगि नानक प्रभ सुप्रसंन ॥२॥

पद ३ रे

साध संधि दुसमन सभि मीत ।
साधू कै संगि महा पुनीत ॥
साध संगि किस सिउ नही बैरु ।
साध कै संगि न बीगा पैरु ॥
साध कै संगि नाही को मंदा ।
साध संगि जाने परमानंदा ॥
साध कै संगि नाही हउ तापु ।
साध कै संगि तजै सभु आपु ॥
आपे जानै साद बडाई ।
नानक साध प्रभू बनि आई ॥३॥

पद ४ थे

साध कै संगि न कबहू धावै ।
साध कै संगि सदा सुखु पावै ॥
साध संगि सदा सुखु लहै ।
साधू कै संगि अजरू सहै ॥
साध कै संगि बसै थानि ऊचै ।
साधू कै संगि महलि पहूचै ॥
साध कै संगि द्रिड़ै सभि धरम ।
साध कै संगि केवल पारब्रहम ॥
साध कै संगि पाए नाम निधान ।
नानक साधू कै कुरबान ॥४॥

पद ५ वे

साध कै संगि सभ कुल उधारै ।
साध संगि साजन मीत कुटंब निसतारैं ॥
साधू कै संगि सो धनु पावै ।
जिसु धन ते सभु को वरसावै ॥
साध संगि धरमराइ करे सेवा ।
साध कै संगि सोभा सुर देवा ॥
साधू कै संगि पाप पलाइन ।
साध संगि अंम्रित गुन गाइन ॥
साध कै संगि स्त्रब थान गंमि ।
नानक साध कै संगि सफल जनंम ॥५॥

पद ६ वे

साध कै संगि नही कछु घाल ।
दरसनु भेटत होत निहाल ॥
साध कै संगि कलूखत हरै ।
साध कै संगि नरक परहरै ॥
साध कै संगि ईहा ऊहा सुहेला ।
साध सांगि बिछुरत हरि मेला ॥
जो इछै सोई फलु पावै ।
साध कै संगि न बिरथा जावै ॥
पारब्रहमु साध रिद बसै ।
नानक उधरै सुनि रसै ॥६॥

पद ७ वे

साध कै संगि सनुउ हरि नाउ ।
साध संगि हिर के गुन गाउ ॥
साध कै संगि न मन ते बिसरै ।
साध संगि सरपर निसतरै ॥
साध कै संगि लगै  प्रभु मीठा ।
साधू कै संगि घटि घटि डीठा ॥
साध संगि भए आगिआकारी ।
साध संगि गति भई हमारी ॥
साध कै संगि मिटे सभि रोग ।
नानक साध भेटे संजोग ॥७॥

पद ८ वे

साध की महिमा बेद न जानहि ।
जेता सुनहि तेता बखिआनहि ॥
साध की महिमा तिहु गुण ते दूरि ।
साध की उपमा रही भरपूरि ॥
साध की सोभा का नाही अंत ।
साध की सोभा सदा बेसंत ॥
साध की सोभा ऊच ते ऊची ।
साध की सोभा मूच ते मूची ॥
साध की सोभा साध बनि आई ।
नानक साध प्रभ भेदु न भई ॥८॥

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Last Updated : December 28, 2013

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