अथ श्रीगायत्रीसहस्रनामस्तोत्रम्
श्रीगायत्री परां देवीं विप्रेभ्योऽभयदां मुदा ।
वन्दे ब्रह्मप्रदां साक्षात्सच्चिदानंदरूपिणीम् ॥
अनुक्रमणिका प्रमाणे वाचन करावे.
ॐकैलासे सुखमासीनं तुषारकरशेखरम् ॥ बद्धांजलिर्नमस्कृत्याभ्यर्च्य पृच्छति पार्वती ॥१॥
पार्वत्युवाच ॥ किं विन्यस्तं त्वया देव स्वशरीरे निरंतरम् ॥ कथमेतादृशी कांतिः कथं तेऽष्टौ समृद्धयः ॥२॥
सर्वतत्त्वप्रभुत्वं च कथं कथमथाश्रयेत् ॥ कृपया ब्रूहि देवेश प्रसन्नोऽसि यदि प्रभो ॥३॥
भगवन्विविधा विद्याः श्रोतुमिच्छामि ते प्रभो ॥ इदानीं श्रोतुमिच्छामि गायत्र्याश्च महोत्सवम् ॥४॥
नाम्नां सहस्रं देवेश कृपया वक्तुमर्हसि ॥ यद्यहं प्रेयसी भार्या यद्यहं प्राणवल्लभा ॥५॥
इति श्रुत्वा वचो देव्याः प्रसन्नः प्रभुरीश्वरः ॥ श्रूयतामिति चाभाष्य जगाद जगदंबिकाम् ॥६॥
ईश्वर उवाच ॥
शृणु देवि रहस्यं मे कस्याप्यग्रे न चोदितम् ॥ गोपितं सर्वतंत्रेषु सिद्धानां स्तोत्रमुत्तमम् ॥७॥
सर्वसौभाग्यजनकं सर्वसंपत्तिदायकम् ॥ सर्ववश्यकरं लोके सर्वप्रत्यूहनाशनम् ॥८॥
सर्ववादिमुखस्तंभि निग्रहानुग्रहक्षमम् ॥ त्वत्प्रीत्या कथयिप्यामि सुगोप्यमपि दुर्लभम् ॥९॥
सर्वपापक्षयकरं सर्वज्ञानमयं शिवम् ॥ पारायणानां परमा परब्रह्मस्वरूपिणी ॥१०॥
परा च परमेशानी परब्रह्मात्मिका मता ॥ सा देवी च वरारोहा चेतसा चिंतयाम्यहम् ॥११॥
ऐश्वर्यं च दशप्राप्तिर्वरदादित्वमेवच ॥ गायत्र्या दिव्यसाहस्रं स्वप्नें चाप्तं मयापि यत् ॥१२॥
ऋषिरस्य समाख्यातो महादेवो महेश्वरः ॥ देवता देवजननी छंदः सामादि कीर्तितम् ॥१३॥
धर्मार्थकाममोक्षार्थे विनियोग उदाहृतः ॥ सर्वभूतांतरीं ध्यात्वा पद्मासनगतां शुचिः ॥१४॥
ततः सहस्रनामेदं पठितव्यं मुमुक्षुभिः ॥ सर्वकार्यकरं पुण्यं महापातकनाशकम् ॥१५॥
ॐतत्काररूपा तद्रूपा तत्पदार्थस्वरूपिणी ॥ तपःस्वाध्यायनिरता तपस्वी वाग्विदांवरा ॥१॥
तत्कीर्तिगुणसंपन्ना तथ्यवादी तपोनिधिः ॥ तत्पदेशानुसंबंधा तपोलोकनिवासिनी ॥२॥
तरुणादित्यसंकाशा तप्तकांचनभूषणा ॥ तमोपहारिणी तंत्री तन्निपातनिवारिणी ॥३॥
तलादिभुवनांतःस्था तारिणी ताररूपिणी ॥ तर्करूपितकोषादितर्कशास्त्रविदारिणी ॥४॥
तर्कवादिमुखास्तंभा राज्ञां च परिपालिनी ॥ तंत्रसारा तंत्रमात्रा तंत्रमार्गप्रदर्शिनी ॥५॥
तंत्री तंत्रविधानज्ञा तंत्रस्था तंत्रसाक्षिणी ॥ तदेकध्याननिरता तत्त्वज्ञानप्रबोधिनी ॥६॥
तन्नाममंत्रसुप्रीता तपस्विजनसेविता ॥ ॐकाररूपा सावित्री सर्वरूपा सनातनी ॥७॥
संसारदुःखशमनी सर्वयागफलप्रदा ॥८॥
सफला सत्यसंकल्पा सत्या सत्यप्रदायिनी ॥ संतोषजननी सारा सत्यलोकनिवासिनी ॥९॥
समुद्रतनयाराध्या सामगानप्रिया सती ॥ समाना सामिधेनी च समस्तसुरसेविता ॥१०॥
सर्वसंपत्तिजननी संपदा सिंधुसेविता ॥ सर्वोत्तुंगा तुंगहीना सद्गुणा सकलेष्टदा ॥११॥
सनकादिमुनिध्येया समानाधिकवर्जिता ॥ साध्या सिद्धा सुधावासा सिद्धिः साध्यप्रदायिनी ॥१२॥
सम्यगाराध्यनिलया समुत्तीर्णा सदाशिवा ॥ सर्ववेदांतनिलया सर्वशास्त्रार्थवादिनी ॥१३॥
सहस्रदलपद्मस्था सर्वज्ञा सर्वतोमुखी ॥ समया समयाचारा सत्या षड्ग्रंथिभेदिनी ॥१४॥
सप्तकोटिमहामंत्रमाता सर्वप्रदायिनी ॥ सगुणा संभ्रमा साक्षी सर्वचैतन्यरूपिणी ॥१५॥
सत्कीर्तिः सात्त्विकी साध्वी सच्चिदानंदरूपिणी ॥ संकल्परूपिणी संध्या शालग्रामनिवासिनी ॥१६॥
सर्वोपाधिविनिर्मुक्ता सत्यज्ञानप्रबोधिनी ॥ विकाररूपा विप्रश्रीर्विप्राराधनतत्परा ॥१७॥
विप्रिणी विप्रकल्याणी विप्रवाक्यस्वरूपिणी ॥ विप्रकैवल्यशयनी विप्री विप्रप्रसादिनी ॥१८॥
विप्रमंदिरमध्यस्था विप्रवादविनोदिनी ॥ विप्रोपाधिविनिर्मुक्ता विप्रहत्याविमोचनी ॥१९॥
विप्रत्राता विप्रगोत्रा विप्रगोत्रविवर्धिनी ॥ विप्रभोजनसंतुष्टा विष्णुरूपा विनोदिनी ॥२०॥
विष्णुमाया विष्णुवंद्या विष्णुगर्भा विचित्रिणी ॥ वैष्णवी विष्णुभगिनी विष्णुमायाविलासिनी ॥२१॥
विकाररहिता वंद्या विज्ञानघनरूपिणी ॥ विश्वसाक्षी विश्वयोनिर्विश्वामित्रप्रसादिनी ॥२२॥
विबुधा विष्णुसंकल्पा विकल्पा विश्वसाक्षिणी ॥ विष्णुचैतन्यनिलया विष्णुस्था विश्ववादिनी ॥२३॥
विवेकी विविधानंदी विजया विश्वमोहिनी ॥ विद्याधरी विधानज्ञा विबुधार्थस्वरूपिणी ॥२४॥
विरूपाक्षी विराड्रूपा विक्रमा विश्वमंगला ॥ विश्वंभरा समाराध्या विश्वभ्रमणकारिणी ॥२५॥
विनायकी विनोदस्था वीरगोष्ठीविवर्द्धिनी ॥ विवाहरहिता वंद्या विंध्याचलनिवासिनी किंकसाक्षिणी ॥२७॥
वीरमध्या वरारोहा वितंत्रा विश्वनायका ॥ वीरहत्याप्रशमनी विनम्रजनपावनी ॥२८॥
वीरधा विविधाकारा विरोधजनवादिनी ॥ तुकारूपा तुतुर्यश्रीस्तुलसीवनवासिनी ॥२९॥
तुलस्या मातुला तुल्या तुल्यगोत्रा तुलेश्वरी ॥ तुरंगी तुरगारूढा तुरंगथमोदिनी ॥३०॥
तुरंगरदना मोहा तुलादानफलप्रदा ॥ तुलामाघस्नानतुष्टा तुष्टिपुष्टिप्रदायिनी ॥३१॥
तुंगमप्रसंतुष्टा तुलिता तुल्यमध्यगा ॥ तुंगोत्तुगा तुंगकुचा तुहिनाचलसंस्थिता ॥३२॥
तुंबरादिस्तुतिप्रीता तुषारवपुषेश्वरी ॥ तुष्टा च तुष्टजननी तुष्टलोकनिवासिनी ॥३३॥
तुलाधारा तुलामध्या तुलस्था तुलरूपिणी ॥ तुरीयगुणगंभीरा तुर्य्यनामस्वरूपिणी ॥३४॥
तुर्य्यविद्वल्लास्यसंस्था तुर्य्यशास्त्रार्थवादिनी ॥ तुर्य्यशास्त्रार्थतत्त्वज्ञा तुर्य्यवादविनोदिनी ॥३५॥
तुर्य्यनादांनिलया तुर्य्यानंदस्वरूपिणी ॥ तुरीयभक्तिजननी तुर्य्यमार्गप्रदर्शिनी ॥३६॥
वकाररूपा बागीशी वरेण्या वरसंस्थिता ॥ वरा वरिष्ठा वैदेही वेदशास्त्रप्रदर्शिनी ॥३७॥
वैकल्पश्रमणी वाणी वांछितार्थफलप्रदा ॥ वयस्था वयमध्यस्था वयोवस्थाविवर्जिता ॥३८॥
वंदिनी वादिनी वार्य्या वाड्मयी वीरवंदिनी ॥ वानप्रस्थाश्रमस्थायी वनदुर्गा वनालया ॥३९॥
वनजाक्षी वनचरी वनिता वनमोदिनी ॥ वशिष्ठवामदेवादिवंद्या वंद्यस्वरूपिणी ॥४०॥
वाल्मीकी वाक्करी वाचा वारुणी वरुणप्रिया ॥ वैद्या वैद्यचिकित्सा च वषट्कारी वसुंधरा ॥४१॥
वसुमाता वसुत्राता वसुजन्मविमोचनी ॥ वसुप्रदा वासुदेवी वासुदेवमनोहरी ॥४२॥
वासवार्चितपादश्रीर्वासवारिविनाशिनी ॥ वागीशवाङ्मनःस्थायी वनवासवशा वशी ॥४३॥
वामदेवी वरारोहा वाद्यघोषणतत्परा ॥ वाचस्पतिसमाराध्या वागीशी वाचकीरवाक् ॥४४॥
रेकाररूपा रेवा च रेवातीरनिवासिनी ॥ रेकिणी रेवती रक्षा रुद्रजन्मा रजस्वला ॥४५॥
रेणुका रमणी रम्या रतिवृद्धा रतारती ॥ रावणादित्यदानंदा राजश्री राजशेखरा ॥४६॥
रणमध्या रथारूढा रविकोटिसमप्रभा ॥ रविमंडलमध्यस्था रजनी रविलोचना ॥४७॥
रथांगपाणी रक्षोघ्नी रागिणी रावणार्चिता ॥ रंभादिकन्याकाराध्या राज्यदा राज्यवर्धिनी ॥४८॥
रजताद्रीश्वरोरुस्था रम्या राजीवलोचना ॥ रमा वाणी रमाराध्या राज्यदात्री रथोत्सवा ॥४९॥
रतोवती रथोत्साहा राजहृद्रोगहारिणी ॥ रंगप्रवृद्धमधुरा रंगमंडपमध्यगा ॥५०॥
रंजिता राजजननी रमा रेवा रती रणा ॥ राविणी रागिणी राज्या राजराजेश्वरार्चिता ॥५१॥
राजन्वती राजनीतिस्तथा रजतवासिनी ॥ राघवार्चितपादश्री राघवाराधनप्रिया ॥५२॥
रत्नसागरमध्यस्था रत्नद्वीपनिवासिनी ॥ रत्नप्राकारमध्यस्था रत्नमंदपमध्यगा ॥५३॥
रत्नाभिषेकसंतुष्टा रत्नांगी रत्नदायिनी ॥ निकाररूपिणी नित्या नित्यतृप्ता निरञ्जना ॥५४॥
निद्रात्ययविशेषज्ञा नीलजीमूतसन्निभा ॥ नीवारशूकवत्तन्वी नित्यकल्याणरूपिणी ॥५५॥
नित्योत्सवा नित्यनित्या नित्यानंदस्वरूपिणी ॥ निर्विकल्पा निर्गुणस्था निश्चिंता निरुपद्रवा ॥५६॥
निःसंशया संशयघ्नी निर्लोभा लोभनाशिनी ॥ निर्भवा भवपाशघ्नी नीतिशास्त्रविचारिणी ॥५७॥
निखिलागममध्यस्था निखिलागमसंस्थिता ॥ नित्योपाधिविनिर्मुक्ता नित्यकर्मफलप्रदा ॥५८॥
नीलग्रीवा निरीहा च निरञ्जनवरप्रदा ॥ नवनीतप्रिया नारी नरकार्णवतारिणी ॥५९॥
नारायणी निराहारा निर्मला निर्गुणप्रिया ॥ निर्मलानिर्गमाचारा निखिलागमवेदिनी ॥६०॥
निमिषा निमिषोत्पन्ना निमिषांडविधायिनी ॥ निर्वातदीपमध्यस्था निश्चिंता चिन्तनाशिनी ॥६१॥
नीलवेणी नीलखंडा निर्विषा विषनाशिनी ॥ नीलांशुकपरीधाना निंदिता निर्विरीश्वरी ॥६२॥
निःस्वासाश्वासमध्यस्था मिथोयाननिवासिनी ॥ यंकाररूपा यंत्रेशी यंत्रयंत्रा यशस्विनी ॥६३॥
यंत्रारा धनसंतुष्टा यजमानस्वरूपिणी ॥ यशस्विनी यकारस्था यूपस्तंभनिवासिनी ॥६४॥
यमघ्नी यमकल्पा च यशःकामा यतीश्वरी ॥ यमादियोगनिरता यतिनिद्रापहारिणी ॥६५॥
याता यज्ञा यज्ञिया च यज्ञेश्वरपतिव्रता ॥ यज्ञयज्ञा यजुर्यज्वा यज्ञीनिकरकारिणी ॥६६॥
यज्ञसूत्रप्रदा ज्येष्ठा यज्ञकर्मफलप्रदा ॥ यवांकुरप्रिया यामा यावनी यवनाधिपा ॥६७॥
यज्ञकर्त्री यज्ञभोक्त्री यज्ञांगी यज्ञवाहिनी ॥ यज्ञसाक्षी यज्ञमुखी यजुषी यज्ञरक्षकी ॥६८॥
भकाररूपा भद्रेशी भद्रकल्याणदायिनी ॥ भक्तप्रिया भक्तसखी भक्ताभीष्टस्वरूपिणी ॥६९॥
भक्तिनी भक्तिसुलभा भक्तिदा भक्तवत्सला ॥ भक्तचैतन्यानिलया भक्तबंधविमोचनी ॥७०॥
भक्तस्वरूपिणी भर्ग्या भाग्यारोग्यप्रदायिनी ॥ भक्तमाता भक्तगम्या भक्ताभीष्टप्रदायिनी ॥७१॥
भास्वरी भैरवी भोगी भवानी भयनाशिनी ॥ भद्रात्मिका भद्रदायी भद्रकाली भयंकरी ॥७२॥
भगनिष्यंदिनी भाग्या भवबंधविमोचिनी ॥ भीमा भीमनभा भंगी भंगुरा भीमदर्शिनी ॥७३॥
भल्ली भल्लीधरा भेरुर्भेरुंडा भीमपापहा ॥ भावज्ञा भोग्यदात्री च भवघ्नी भूतिभूषणा ॥७४॥
भूतिदा भूतिदात्री च भूपतित्वप्रदायिनी ॥ भ्रामरी भ्रमरी भारी भवसंसारतारिणी ॥७५॥
भंडा सुरवधोत्साहा भांडवा भाविनोदिनी ॥ गोकाररूपा गोमाता गुरुपत्नी गुरुर्गिरा ॥७६॥
गोरोचनप्रिया गौरी गोविंदगुणवर्धिनी ॥ गोपालचेष्टासंतुष्टा गोवर्धनविवर्द्धिनी ॥७७॥
गोविंदरूपिणी गोप्ता गोप्तागोत्रविवर्धिनी ॥ गीता गीतप्रिया गेया गोका गोकुलवर्द्धिनी ॥७८॥
गोपी गोहत्यशमनी गुणा च गुणविग्रहा ॥ गोविंदजननी गोष्ठा गोपदा गोकुलोत्सवा ॥७९॥
गोचरी गौतमी गोप्त्री गोमुखी गुरुवासिनी ॥ गोपाली गोमयी गुंठा गोष्ठी गोपुरवासिनी ॥८०॥
गरुडी गरुडश्रेष्ठा गारुडी गरुडध्वजा ॥ गंभीरा गंडकी गंगा गरुडध्वजवल्लभा ॥८१॥
गगनस्था गयावासा गुणवृत्तिर्गुडोद्भवा । देकाररूपा देवेशी दृशिनी देवतार्चिता ॥८२॥
देवराजेश्वरार्द्धांगी दीनदैन्यविमोचनी ॥ देशकालपरिज्ञाना देशोपद्रवनाशिनी ॥८३॥
देवमाता देवमोहा देवदानवमोहिनी ॥ देवेंद्रार्चितपादश्रीर्देवदेवप्रसादिनी ॥८४॥
देशांतरी देवरूपा देवालयनिवासिनी ॥ देशप्रमनकृद्देवी देशस्वास्थ्यप्रदायिनी ॥८५॥
देवयाना देवता च देवसैन्यप्रपालिनी ॥ वकाररूपा वाग्देवी वाचा मानसगोचरी ॥८६॥
वैकुंठदेशिनी वेद्या वायुरूपा वरप्रदा ॥ वक्रतुंडार्चितपदा वक्रतुंडप्रदायिनी ॥८७॥
वैचित्री च वसुमतिर्वसुस्थाना वसुप्रिया ॥ वषट्कारा च चामुंडा वरारोहा वरावरी ॥८८॥
वैदेहीजननी वैद्या वैदेहीशोकनाशिनी ॥ वेदमाता वेदकन्या वेदरूपा विनोदिनी ॥८९॥
वेदान्तवादिनी वेदा वेदांत निलयामरा ॥ वेदश्रवा वेदघोषा वेदगानी विनोदिनी ॥९०॥
वेदशास्त्रार्थतत्त्वज्ञा वेदमार्गप्रदर्शिनी ॥ वेदोक्तकर्मफलदा वेदसागरतारिणी ॥९१॥
वेदवादी वेदगृह्या वेदाश्वरथवाहिनी ॥ वेदचक्रा वेदवंद्या वेदांगी वेदवित्कविः ॥९२॥
श्यकाररूपा श्यामांगी श्यामा श्यामसरोरुहा ॥ श्यामाका श्यालवृक्षा च शतपत्रनिकेतना ॥९३॥
सर्वदृक्संनिविष्टा च सर्वसंप्रेमणी सदा ॥ सव्यापसव्यदा सव्या सध्रीची च सहायिनी ॥९४॥
भूकला सागरासारा सार्वभौमस्वभाविनी ॥ संतोषजननी सेव्या सर्वेशी सर्वरंजनी ॥९५॥
सरस्वती समाराध्या समदा सिंधुसेविनी ॥ सन्मोहनी सदामोहा सर्वमांगल्यदायिनी ॥९६॥
समस्तभुवनेशानी सर्वकामफलप्रदा ॥ सर्वसिद्धिप्रदा साध्वी सर्वज्ञानप्रदायिनी ॥९७॥
सर्वदारिद्र्यशमनी सर्वदुःखविमोचनी ॥ सर्वरोगप्रशमनी सर्वपापविमोचनी ॥९८॥
समदृष्टिः समगुणा सर्वसाक्षी सहायिनी ॥ सामर्थ्यवाहिनी संख्या सांद्रानंदपयोधरी ॥९९॥
संकीर्तमंदिरस्थायी साकेतकुलपालिनी ॥ संहारी शंकरी गौरी साकेतपुरवासिनी ॥१००॥
संबोधनी समुत्तिष्ठा सम्यग्ज्ञानस्वरूपिणी ॥ सम्पत्करी समानांगी सर्वभावसुसंस्थिता ॥१०१॥
संबोधिनी समानंदा सन्मार्गकुलपालिनी ॥ संजीवनी सर्वमेधा सभ्या संपत्प्रदायिनी ॥१०२॥
समिद्धा समिधासीना सामान्या सामवेदिनी ॥ समुत्तीर्णा सदाचारा संहारा सर्वपावनी ॥१०३॥
सर्पिणी सर्पमाता च सर्पदष्टविमोचनी ॥ सर्पयागमशमनी सर्वज्ञत्वफलप्रदा ॥१०४॥
संक्रमासंक्रमा सिंधुः सर्गा संग्रामपूजिता ॥ संकटा संकटाहारी सकुंकुमविलेपना ॥१०५॥
सुमुखा सुमुखस्थायी सांगोपांगार्चनप्रिया ॥ संस्तुता संस्तुतिः प्रीतिः सत्यवादी सदासुखी ॥१०६॥
धीकाररूपा धीमाता धीरा धीरप्रसादिनी ॥ धीरोत्तमा धीरधीरा धीरस्था धीरशेखरा ॥१०७॥
स्थितिधैर्य्या स्थविष्ठा च स्थपतिः स्थलविग्रहा ॥ धीरा धारा धीरवंद्या धीपतिर्धीरमानसा ॥१०८॥
धीपदा धीपदस्थायी धीशाना धीप्रदा सखी ॥ मकाररूपी मैत्रेयी महामंगलदेवता ॥१०९॥
मनोवैकल्यशमनी मलयाचलवासिनी ॥ मलयध्वजराजश्रीर्मानाक्षी मधुरालया ॥११०॥
महादेवी महारूपा महाभैरवपूजिता ॥ मनुविद्या मंत्रमाता मंत्रवश्या महेश्वरी ॥१११॥
मत्तमातंगगमना मधुरा मेरुमंडपा ॥ महागुप्ता महाभूता महाभयविनाशनी ॥११२॥
महागौरी महामंत्री महावैरिविनाशनी ॥ महालक्ष्मीर्महागौरी महिषासुरमर्दिनी ॥११३॥
महेशमंडलस्था च मधुगगमवर्जिता ॥ मेधा मेधाकरी मेध्या माधवी मधुमर्दिनी ॥११४॥
मंत्रा मंत्रमयी मान्या माया महिममंत्रिणी ॥ मायारूपी मायधारी मायस्था मायवादिनी ॥११५॥
मायासंकल्पजननी माया मायविनोदिनी ॥ मायाप्तपंचजननी मायासंहाररूपिणी ॥११६॥
मायामंत्रप्रसादा च मायाजनविमोहिनी ॥ महापरा महारूपा महाविघ्नविनाशनी ॥११७॥
महानुभावा मंत्रेशी महामंगलदेवता ॥ हिकारस्था हृषीकेशी हितकार्यप्रवर्द्धिनी ॥११८॥
हीनोपाधिविनिर्मुक्ता हीनलोकविमोचनी ॥ ह्रींकारा ह्रींमती ह्रींह्रींह्रींदेवी ह्रींस्वभाविनी ॥११९॥
ह्रीमती ह्रींवती हृत्स्वा ह्रींशिवा ह्रींकुलोद्भवा ॥ हितवादी हितप्रीता हितकारुण्यवर्द्धिनी ॥१२०॥
हिताशनी हितक्रोधा हितकर्मफलप्रदा ॥ हिमा हिमसुता हेमा हेमाचलनिवासिनी ॥१२१॥
हेती हिमप्रदा हारा होत्रा होतृहुतप्रदा ॥ हिमस्था हिमजा हेमा हितकर्मस्वभाविनी ॥१२२॥
धीकाररूपा धीषणा धर्मरूपा धनेश्वरी ॥ धनुर्धराचरा धारा धर्मकर्मफलप्रदा ॥१२३॥
धर्माचारा धर्मसारा धर्ममध्यनिवासिनी ॥ धनुर्वेदी धनुर्वादी धन्या धूर्तविनाशिनी ॥१२४॥
धनधान्या धेनुरूपा धनाढ्या धनदायिनी ॥ धनेशी धर्मनिरता धर्मराजप्रसादिनी ॥१२५॥
धर्मस्वरूपा धर्मेशी धर्माधर्मविचारिणी ॥ धर्मसूक्ष्मा धर्मसाक्षी धर्मिष्ठा धर्मगोचरा ॥१२६॥
योकाररूपा योगेशी योगस्था योगरूपिणी ॥ योगा योगोपमाराध्या योगमार्गनिवासिनी ॥१२७॥
योगासनस्था योगेशी योगमायाविलासिनी ॥ योगायोगेपमाराध्या योगांगी योगविग्रहा ॥१२८॥
योगवासी योगभोगी योगमार्गप्रदर्शिनी ॥ योधा योधवती योग्याऽयोग्यायोधनतत्परा ॥१२९॥
योधिनी योधिनीसेव्या योधज्ञानप्रबोधिनी ॥ योगेश्वरप्राणनाथा योगीश्वरहृदिस्थिता ॥१३०॥
योगायोगक्षेमकर्त्री योगक्षेमविहारिणी म्योगराजेश्वराराध्या योगानंदस्वरूपिणी ॥१३१॥
नवसिद्धिसमाराध्या नारायणमनोहरी ॥ नारायणी नवाधारा नवब्रह्मार्चिता सदा ॥१३२॥
नगेंद्रतनयाराध्या नामरूपविवर्जिता ॥ नारसिंहार्चितपदा नवबंधविमोचनी ॥१३३॥
नवग्रहार्चितपदा नैमिषारण्यवासिनी ॥ नवपीठस्थिता देवी नवर्षिगणसेविता ॥१३४॥
नवसूत्रविधानज्ञा नैमिषारण्यवासिनी ॥ नवपीठस्थिता देवी नवर्षिगणसेविता ॥१३५॥
नवचन्दनदिग्धांगी नवकुंकुमधारिणी ॥ नववस्त्रपरीधाना नवरत्नविभूषणा ॥१३६॥
नवभस्मविदिग्धांगी नवचंद्रकलाधरा ॥ प्रकाशरूपा प्राणेशी प्राणसंरक्षणी सदा ॥१३७॥
प्राणसंजीवनी प्राणा प्राणाप्राणप्रबोधिनी ॥ प्रज्ञा प्रज्ञाप्रभा प्राच्या प्रतीची प्रबुधाप्रिया परायणा ॥१३८॥
प्राचीरा प्रणयांतःस्था प्रभातज्ञानरूपिणी ॥ प्रभातकर्मसंतुष्टा प्राणायामपरायणा ॥१३९॥
प्रायज्ञा प्रणवा प्रपता प्रवृत्तिः प्रकृतिः परा ॥१४०॥
प्रबंधा प्रबुधासाक्षी प्राज्ञा प्रारब्धनाशिनी ॥ प्रबोधनिरता प्रेक्षा प्रबंधप्राणसाक्षिणी ॥१४१॥
प्रयागतीर्थनिलया प्रत्यक्षा परमेश्वरी ॥ प्रणवाद्यंतनिलया प्रणवादिप्रचोदयात् ॥१४२॥
चोकाररूपा चोरघ्नी चोरबाधाविनाशिनी ॥ चेतनाचेतनाशीता चौराचौर्या चमत्कृतिः ॥१४३॥
चक्रवर्तित्वधारी च चक्रिणी चक्रधारिणी ॥ चिरंजीवी चिदानंदा चिद्रूपा चिद्विलासिनी ॥१४४॥
चिंता चिंत्तप्रशमनी चिंतितार्थफलप्रदा ॥ चांपेयी चंपकप्रीता चंडी चंडाट्टहासिनी ॥१४५॥
चंडेश्वरी चंडमाता चंडमुंडवि नाशिनी ॥ चकोराक्षी चिरप्रीता चिकुरा चिकुरप्रिया ॥१४६॥
चैतन्यरूपिणी चैत्री चेतना चित्तसाक्षिणी ॥ चित्रा चित्रविचित्रांगी चित्रगुप्तप्रसादिनी ॥१४७॥
चलना चलसंस्थायी चापिनी चलचित्रिणी ॥ चंद्रमंडलमध्यस्था कोटीचंद्रसुशीतला ॥१४८॥
चंद्रानुजसमाराध्या चंद्रचंद्रमहोदरी ॥ चर्चितारिश्चन्द्रमाता चन्द्रकांता चलेश्वरी ॥१४९॥
चराचरनिवासा च चक्रपाणिसहोदरी ॥ दकाररूपा दत्तश्रीर्दारिद्र्यच्छेदकारिणी ॥१५०॥
दंतिनी दंडिनी दीना दरिद्रा दीनवत्सला ॥ दक्षाराध्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ॥१५१॥
दक्षा दाक्षायणी दाक्षा दीक्षादक्षवरप्रदा ॥ दक्षिणा दक्षिणाराध्या दक्षिणामूर्तिरूपिणी ॥१५२॥
दयावती दमवती दनुजादिर्दयानिधिः ॥ दंतशोभानिभा दैवदमना दाडीमस्तनी ॥१५३॥
दंडा दमयता दंडी दंडादंडप्रसादिनी ॥ दंडकारण्यनिलया दंडकारिविनाशिनी ॥१५४॥
दंष्ट्राकरालप्रवृषी दंडशोभादलादली ॥ दरिद्रारिष्टशमनी दमादमनपूजिता ॥१५५॥
दानवार्चितपादश्रीर्द्रविणा द्रविणोदया ॥ दामोदरी दानवारिर्दामोदरसहोदरी ॥१५६॥
दाता दानप्रिया दार्वी दानश्रीर्दीनदंडपा ॥ दम्पतीदम्पती दूर्वा दधिदुग्धा दया दमा ॥१५७॥
दाडिमीबीजसंदोहदन्तपंक्तिविराजिता ॥ दर्पणा दर्पणस्वच्छा द्रुममंडलवासिनी ॥१५८॥
दशावतारजननी दशदिग्दीपपूजिता ॥ दया दशदिशादश्या दशदासी दयानिधिः ॥१५९॥
देशकालपरिज्ञाना देशकालावशोधिनी ॥ दशम्यादिकलाराध्या दशग्रीवप्रदर्पहा ॥१६०॥
दशापराधशमनी दशवृत्तिफलप्रदा ॥ यात्काररूपिणी याज्ञी यादवी यादवार्चिता ॥१६१॥
ययातिपूजनप्रीता याज्ञिकी याजकप्रिया ॥ यादवीयातनायाता यामपूजाफलप्रदा ॥१६२॥
यशस्विनी यमाराध्या यमकन्या यतीश्वरी ॥ यमादियोगसंतुष्टा योगींद्रहृदिसंगमा ॥१६३॥
यमोपाधिविनिर्मुक्ता यशस्यविधिरच्युता ॥ यातनायातनादेहा यात्रापापादिवर्जिता ॥१६४॥
इत्येतत्कथितं देवीरहस्यं सर्वकामदम् ॥ सर्वपापप्रशमनं सर्वतीर्थफलप्रदम् ॥१६५॥
सर्वरोगहरं पुण्यं सर्वज्ञानमयं शिवम् ॥ सर्वसिद्धिप्रदं देवि सर्वसौभाग्यवर्द्धनम् ॥१६६॥
आयुष्यं वर्द्धते नित्यं लिखितं यत्र तिष्ठति ॥ न चौराग्निभयं तस्य न च भूतभयं क्कचित् ॥१६७॥
किपुनर्बहुनोक्तेन तथापि च वदाम्यहम् ॥ सकृच्छ्र्वणमात्रेण कोटीजन्माघनाशनम् ॥१६८॥
महापातककोटिनां भंजनं स्मृतिमात्रतः ॥ अपवादकदौर्भाग्यशमनं मुक्तिमुक्तिदम् ॥१६९॥
विषरोगादिदारिद्र्यमृत्युसंहारकारणम् ॥ सप्तकोटिमहामंत्रपारायणफलप्रदम् ॥१७०॥
शतरुद्रीयकोटीनां जपं यज्ञफलप्रदम् ॥ चतुःसमुद्रपर्य्यंतभूदानं तत्फलं शिवे ॥१७१॥
सहस्रकोटिगोदानफलदं स्मृतिमात्रतः ॥ कोट्यश्वमेध्यफलदं जरामृत्युनिवारणम् ॥१७२॥
कन्याकोटिप्रदानेन यत्फलं लभते नरः ॥ तत्फलं लभते सम्यङ्नाम्नां दशशतीजपात् ॥१७३॥
यः श्रृणोति महाविद्यां श्रावयेद्वा समाहितः ॥ सोपि मुक्तिमवाप्नोति यत्र गत्वा न शोचति ॥१७४॥
ब्रह्महत्यादिपापानां नाशः स्याच्छ्र्वणेन च ॥ किं पुनः पठनादस्य मुक्तिः स्यादनपायिनी ॥१७५॥
इदं रहस्यं परमं पुण्यं स्वस्त्ययनं महत् ॥ यः सकृद्वा पठेत्स्तोत्रं शृणुयाद्वा समाहितः ॥१७६॥
लभते च ततः कामानन्ते ब्रह्मपदं व्रजेत् ॥ स च शत्रूञ्जयेत्सद्यो मातंगानिव केसरी ॥१७७॥
इति श्रीमद्रुद्रयामले शिवपार्वतीसंवादे ब्रह्मप्रोक्तं श्रीगायत्र्या मत्रवर्णात्मकं दिव्यसहस्रनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ शुभं भूयात् ॥ मंगलमस्तु ॥
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Last Updated : December 14, 2016
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