श्री हर्यष्टकम् - जगज्जालपालं कनत्कण्ठमालम्...
देवी देवतांची अष्टके आजारपण किंवा कांही घरगुती त्रास होत असल्यास घरीच देवासमोर म्हणण्याची ईश्वराची स्तुती होय.Traditionally,the ashtakam is recited in homes, when some one has health or any domestic problems.
जगज्जालपालं कनत्कण्ठमालम्
शरच्चन्द्रफालं महादैत्यकालम् ।
तमोनीलकायं दुरावारमायम्
सुपद्मासहायं भजेऽहं भजेऽहम् ॥१॥
सदांभोधिवासं गले पुष्पहासम्
जगत्सन्निवासं शतादित्यभासम् ।
गदाचक्रहस्तं लसत्पीतवस्त्रम्
हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहम् ॥२॥
रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारम्
जलान्तर्विहारं धराभारहारम् ।
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपम्
धृतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहम् ॥३॥
जराजन्महीनं परानन्दपीनम्
समाधानलीनं सदैवानवीनम् ।
जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुम्
त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहम् ॥४॥
कृताम्नायगानं खगाधीशयानम्
विमुक्तेर्निदानं हतारातिमानम् ।
स्वभक्तानुकूलं जगद्वृक्षमूलम्
निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहम् ॥५॥
समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशम्
जगद्बिम्बलेशं हृदाकाशदेशम् ।
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहम्
सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहम् ॥६॥
सुरालीबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठम्
गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठम् ।
सदा युद्धधीरं महावीरधीरम्
भवांभोधितीरं भजेऽहं भजेऽहम् ॥७॥
रमावामभागं तलानग्ननागम्
कृताधीनयागं गतारागरागम् ।
मुनीन्द्रैस्सुगीतं सुरैस्संपरीतम्
गुणौघैरतीतं भजेऽहं भजेऽहम् ॥८॥ इदं यस्तु
नित्यं समाधाय चित्तम्
पठेदष्टकं कष्टहारं मुरारेः ।
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकम्
जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो ॥९॥
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Last Updated : February 13, 2018
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