आचमन और प्राणायाम

ईश्वरोन्मुख होनेके बाद मनुष्यको परमात्माके वास्तविक तत्वक परिज्ञान होने लगता है और फिर वह सदा सर्वदाके लिये जीवमुक्त हो जाता है, इसीलिये सारे कर्म शास्त्रकी आज्ञाके अनुसार होने चाहिये ।


पूजासे पहले पात्रोंको क्रमसे यथास्थान रखकर पूर्व दिशाकी ओर मुख करके आसनपर बैठकर तीन बार आचमन करना चाहिये -

ॐ केशवाय नमः ।

ॐ नारायणाय नमः ।

ॐ माधवाय नमः ।

आचमनके पश्चात् दाहिने हाथके अंगूठेके मूलभागसे

ॐ गोविंदाय नमः ।

ॐ विष्णवे नमः ।

ॐ मधुसूदनाय नमः ।

ॐ वामनाय नमः ।

ॐ श्रीधराय नमः ।

ॐ त्रिविक्रमाय नमः ।

ॐ ह्रषीकेशाय नमः ।

ॐ पद्मनाभाय नमः ।

ॐ संकर्षणाय नमः ।

ॐ वासुदेवाय नमः ।

ॐ दामोदराय नमः ।

ॐ प्रद्मुम्नाय नमः ।

ॐ अनुरुद्धाय नमः ।

ॐ पुरुषोत्तमाय नमः ।

ॐ अधोक्षजाय नमः ।

ॐ नरसिंहाय नमः ।

ॐ अच्युताय नमः ।

ॐ जनार्दनाय नमः ।

ॐ उपेंद्राय नमः ।

ॐ हरये नमः ।

ॐ श्रीकृष्णाय नमः ।

कहकर ओठोंको पोंछकर हाथ धो लेना चाहिये ।

तत्पश्चात् निम्नलिखित मन्तसे पवित्री धारण करे -

पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः । तस्य ते पवित्रपते

पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ।

पवित्री धारण करनेके पश्‍चात प्राणायाम करे ।

१. प्राणायामका विनियोग -

प्राणायाम करनेके पूर्व उसका विनियोग इस प्रकार पढ़े -

ॐकारस्य ब्रह्मा ऋषिर्दैवी गायत्री छन्दः अग्निः परमात्मा देवता शुक्लो वर्णः सर्वकर्मारम्भे विनियोगः ।

ॐ सप्तव्याह्रतीनां विश्‍वामित्रजमदग्निभरद्वाजगौतमात्रिवसिष्ठकश्यपा ऋषयो

गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहतीपङिक्तत्रिष्तुब्जगत्यश्‍छन्दांस्य्ग्निवाय्वादित्यबृहसप्तिवरुणेन्द्र्विष्णवो देवता

अनादिष्टप्रायश्‍चित्ते प्राणायामे विनियोगः ।

ॐ आपो ज्योतिरिति शिरसः प्रजापतिऋषिर्यजुश्छन्दो ब्रह्माग्निवायुसूर्या देवताः प्राणायामे विनियोगः ।

२. प्राणायामके मन्त्र -

फिर आखे बंद कर नीचे लिखे मन्त्रोंका प्रत्येक प्राणायाममें तीन-तीन बार (अथवा पहले एक बारसे ही प्रारम्भ करे, धीरे-धीरे

तीन-तीन बारका अभ्यास बढ़ावे) पाठ करे ।

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् । ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।

धियो यो नः प्रचोदयात् । ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ।

प्राणायामकी विधि -

प्राणायामके तीन भेद होते है-

. पूरक, २. कुम्भक, ३. रेचक ।

- अंगूठेसे नाकके दाहिने छिद्रको दबाकर बायें छिद्रसे श्‍वासको धीरे-धीरे खींचनेको 'पूरक प्राणायाम' कहते है । पूरक प्राणायाम

करते समय उपर्युक्त मन्त्रोंका मनसे उच्चारण करते हुए नाभिदेशमें नीलकमलके दलके समान नीलवर्ण चतुर्भुज भगवान

विष्णुका ध्यान करे ।

. जब सॉंस खींचना रुक जाय, तब अनामिका और कनिष्ठिका अंगुलीसे नाकके बायें छिद्रको भी दबा दे । मन्त्र जपता रहे ।

यह कुम्भक प्राणायाम हुआ । इस अवसरपर ह्रदयमें कमलपर विराजमान लाल वर्णवाले चतुर्मुख ब्रह्माका ध्यान करे ।

३ - अंगूठेको हटाकर दाहिने छिद्रसे श्वासको धीरे-धीरे छोड़नेको रेचक प्राणायाम कहते है । इस समय ललाट में श्‍वेतवर्ण

शंकरका धयन करना चाहिए । मनसे मन्त्र जपता रहे ।

प्राणायामके बाद आचमन - ( प्रातःकालका विनियोग और मन्त्र )

प्रातःकाल नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वीपर जल छोड़ दे-

सूर्यश्‍च मेति नारायण ऋषिः अनुष्टुपछन्दः सूर्यो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः ।

पश्‍चात् नीचे लिखे मन्त्रको पढ़कर आचमन करे-

ॐ सूर्यश्‍च मा मन्युश्‍च मन्युपतयश्‍च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम् ।

यद्रात्र्या पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्‌भ्यामुदरेण शिश्ना रात्रिस्तदवलुम्पतु ।

यत्किञ्ज दुरितं मयि इदमहमापोऽमृतयोनौ सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा ॥

इसके बाद बायें हाथमें जल लेकर दाहिने हाथसे अपने ऊपर और पूजासामग्रीपर छिड़कना चाहिये-

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥

ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।

तदनन्तर पात्रमें अष्टदल-कमल बनाकर यदि गणेश-अम्बिकाकी मूर्ति न हो तो सुपारीमें मौली लपेटकर अक्षतपर स्थापित कर

देनेके बाद हाथमें अक्षत और पुष्प लेकर स्वस्त्ययन पढ़ना चाहिये ।

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Last Updated : September 26, 2013

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