देव-पूजामें विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्प
पञ्चदेव-पूजामें गणपति, गौरी, विष्ण, सूर्य और शिवकी पूजा की जाती है । यहॉं इन देवी-देवताओंके लिये विहित और निषिद्ध पत्र-पुष्प आदिका उल्लेख किया जा रहा है-
गणपतिके लिये विहित पत्र-पुष्प
गणेशजीको तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय है । अतः सभी अनिषिद्ध पत्र-पुष्प इनपर चढ़ाये जाते है । गणपतिको दूर्वा अधिक प्रिय है । अतः इन्हे सफेद या हरी दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिये । दूर्वाकी फुनगीमें तीन या पॉंच पत्ती होनी चाहिये । गणपतिपर तुलसी कभी न चढ़ाये । पद्मपुराण, आचाररत्नमें लिखा है कि
'न तुलस्या गणाधिपम्'
अर्थात् तुलसीसे गणेशजीकी पूजा कभी न की जाय । कार्तिक-माहात्म्यमें भी कहा है कि
'गणेशं तुलसीपत्रैर्दुर्गां नैव तु दूर्वया'
अर्थात् गणेशजीकी तुलसीपत्रसे और दुर्गाकी दूर्वासे पूजा न करे । गणपतिको नैवेद्यमें लड्डू अधिक प्रिय है ।
देवीके लिये विहित पत्र-पुष्प
भगवान शङ्करकी पूजामें जो पत्र-पुष्प विहित है, वे सभी भगवती गौरीको भी प्रिय हैं ।
अपामार्ग उन्हे विशेष प्रिय है । शङ्करपर चढ़ानेके लिये जिन फूलोंका निषेध है तथा जिन फूलोंका नाम नहीं लिया गया है, वे भी भगवतीपर चढ़ाये जाते है । जितने लाल फूल है वे सभी भगवतीको अभीष्ट है तथा सुगन्धित समस्त श्वेत फूल भी भगवतीको विशेष प्रिय है ।
बेला, चमेली, केसर, श्वेत और लाल फूल, श्वेत कमल, पलश, तगर, अशोक, चंपा, मौलसिरी, मदार, कुंद, लोध, कनेर, आक, शीशम और अपराजित (शंखपुष्पी) आदिके फूलोंसे देवीकी भी पूजा की जाती है ।
इन फूलोंमे आक और मदार- इन दो फूलोंका निषेध भी मिलता है-
'देवीनामर्कमन्दारौ.....(वर्जयेत् )' (शातातप) ।
अतः ये दोनों विहित भी है और प्रतिषिद्ध भी है । जब अन्य विहित फूल न मिले तब इन दोनोंका उपयोग करे ।
दुर्गासे भिन्न देवियोंपर इन दोनोंको न चढ़ाये ।
किंतु दुर्गाजीपर चढ़ाया जा सकता है । क्योंकि दुर्गाकी पूजामें इन दोनोंका विधान है ।
शमी, अशोक, कर्णिकार (कनियार या अमलतास), गूमा, दोपहरिया, अगस्त्य, मदन, सिन्दुवार, शल्लकी, माधव आदि लताऍ, कुशकी मंजरियॉं, बिल्वपत्र, केवड़ा, कदम्ब, भटकटैया, कमल- ये फूल भगवतीको प्रिय है ।
देवीके लिये विहित-प्रतिषिद्ध पत्र-पुष्प
आक और मदारकी तरह दूर्वा, तिलक, मालती, तुलसी, भंगरैया और तमाल विहित-प्रतिषिद्ध है अर्थात ये शास्त्रोंसे विहित भी है और निषिद्ध भी है । विहित-प्रतिशिद्धके सम्बन्धके तत्त्वसागरसंहिताक कथन है कि जब शास्त्रोंसे विहित फूल न मिल पायें तो विहित-प्रतिषिद्ध फूलोंसे पूजा कर लेनी चाहिये ।
शिव-पूजनके लिये विहित पत्र-पुष्प
भगवान् शंकरपर फूल चढ़ानेका बहुत अधिक महत्त्व है । बतलाया जाता है कि तपःशील सर्वगुणसम्पन्न वेदमें निष्णात किसी ब्राह्मणको सौ सुवर्ण दान करनेपर जो फल प्राप्त होता है, वह भगवान् शंकरपर सौ फूल चढ़ा देनेसे प्राप्त हो जाता है । कौन-कौन पत्र-पुष्प शिवके लिये विहित है और कौन-कौन निषिद्ध है, इनकी जानकारी अपेक्षित है । अतः उनका उल्लेख यहॉं किया जाता है-
पहली बात यह है कि भगवान विष्णुके लिये जो-जो पत्र और पुष्प विहित है, वे सब भगवान शंकरपर भी चढ़ाये जाते है । केवल केतकी-केवड़ेका निषेध है ।
शास्त्रोने कुछ फुलोके चढ़ानेसे मिलनेवाले फलका तारतम्य बतलाया है, जैसे दस सुवर्ण-मापके बराबर सुवर्ण-दानका फल एक आकके फूलको चढ़ानेसे मिल जाता है । हजार आकके फूलोंकी अपेक्षा एक कनेरका फूल, हजार कनेरके फूलोके चढ़ानेकी अपेक्षा एक बिल्वपत्रसे फल मिल जाता है और हजार बिल्वपत्रोंकी अपेक्षा एक गूमाफूल (द्रोण-पुष्प) होता है । इस तरह हजार गूमासे बढ़कर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ो (अपामार्गो) से बढ़कर एक कुशका फूल, हजार कुश-पुष्पोंसे बढ़कर एक शमीका पत्ता, हजार शमीके पत्तोंसे बढ़कर एक नीलकमल, हजार नीलकमलोंसे बढ़कर एक धतूरा, हजार धतूरोंसे बढ़कर एक शमीका फूल होता है । अन्तमें बतलाया है कि समस्त फूलोंकी जातियोंमें सबसे बढ़कर नीलकमल होता है ।
भगवान व्यासने कनेरकी कोटिमें चमेली, मौलसिरी, पाटला, मदार, श्वेतकमल, शमीके फूल और बड़ी भटकटैयाको रखा है । इसी तरह धतूरेकी कोटिमें नागचम्पा और पुंनागको माना है ।
शास्त्रोंने भगवान शंकरकी पूजामें मौलसिरी (बक-बकुल) के फूलको ही अधिक महत्त्व दिया है ।
भविष्यपुराणने भगवान शंकरपर चढ़ाने योग्य और भी फूलोंके नाम गिनायै है-
करवीर (कनेर), मौलसिरी, धतूरा, पाढर, बड़ी कटेरी, कुरैया, कास, मन्दार, अपराजिता, शमीका फूल, कुब्जक, शंखपुष्पी, चिचिड़ा, कमल, चमेली, नागचम्पा, चम्पा, खस, तगर, नागकेसर, किंकिरात (करंटक अर्थात् पीले फूलवाली कटसरैया), गूमा, शीशम, गूलर, जयन्ती, बेला, पलाश, बेलपत्ता, कुसुम्भ-पुष्प, कुङ्कुम अर्थात् केसर, नीलकमल और लाल कमल । जल एवं स्थलमें उत्पन्न जितने सुगन्धित फूल है, सभी भगवान शंकरको प्रिय है ।
शिवार्चामें निषिद्ध पत्र-पुष्प
कदम्ब, सारहीन फूल या कठूमर, केवड़ा, शिरीष, तिन्तिणी, बकुल (मौलसिरी), कोष्ठ, कैथ, गाजर, बहेड़ा, कपास, गंभारी, पत्रकंटक, सेमल, अनार, धव, केतकी, वसंत ऋतुमें खिलनेवाला कंद-विशेष, कुंद, जूही, मदन्ती, शिरीष सर्ज और दोपहरियाके फूल भगवान शंकरपर नहीं चढ़ाने चाहिये । वीरमित्रोदयमें इनका संकलन किया गया है ।
कदम्ब, बकुल और कुन्दपर विशेष विचार
इन पुष्पोंका कहीं विधान और कहीं निषेध मिलता है । अतः विशेष विचारद्वारा निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है-
कदम्ब - शास्त्रका एक वचन है-
'कदम्बकुसुमैः शम्भुमुन्मतैः सर्वसिद्धिभाक् ।'
अर्थात् कदम्ब और धतूरेके फूलोंसे पूजा करनेसे सारी सिद्धियां मिलती है । शास्त्रका दूसरा वचन मिलता है-
अत्यन्तप्रतिषिद्धानि कुसुमानि शिवार्चने ।
कदम्बं फल्गुपुष्पं च केतकं च शिरीषकम् ॥
अर्थात कदम्ब तथा फल्गु (गन्धहीन आदि) के फूल शिवके पूजनमें अत्यन्त निषिद्ध है । इस तरह एक वचनसे कदम्बका शिवपूजनमें विधान और दूसरे वचनसे निषेध मिलता है, जो परस्पर विरुद्ध प्रतीत होता है ।
इसका परिहार वीरमित्रोदयकारने कालविशेषके द्वारा इस प्रकार किया है । इनके कथनका तात्पर्य यह है कि कदम्बका जो विधान किया गया है, वह केवल भाद्रपदमास- मास-विशेषमें । इस पुष्प-विशेषका महत्त्व बतलाते हुए देवीपुराणमें लिखा है-
'कदम्बैश्चम्पकैरेवं नभस्ये सर्वकामदा।'
अर्थात 'भाद्रपदमासमें कदम्ब और चम्पासे शिवकी पूजा करनेसे सभी इच्छाए पूरी होती है ।
इस प्रकार भाद्रपदमासमें 'विधि' चरितार्थ हो जाती है और भाद्रपदमाससे भिन्न मासोंमें निषेध चरितार्थ हो जाता है । दोनों वचनोंमें कोई विरोध नहीं रह जाता ।
'सामान्यतः कदम्बकुसुमार्चन यत्तद् वर्षर्तुविषयम् । अन्यदा तु निषेधः । तेन न पूर्वोत्तरवाक्यविरोधः ।'
बकुल (मौलसिरी) - यही बात बकुल-सम्बन्धी विधिनिषेधपर भी लागू होती है । आचारेन्दुमें 'बक' का अर्थ 'बकुल' किया गया है और 'बकुल' का अर्थ है- 'मौलसिरी' । शास्त्रका एक वचन है-
'बकपुष्पेण चैकेन शैवमर्चन्मुत्तमम् ।'
दूसरा वचन है-
'बकुलैर्नार्चयेद् देवम् ।'
पहले वचनमें मौलसिरीका शिवपूजनमें विधान है और दूसरे वचनमें निषेध । इस प्रकार आपाततः पूर्वापर-विरोध प्रतीत होता है । इसका भी परिहार कालविशेषद्वारा हो जाता है, क्योंकि मौलसिरी चढ़ानेका विधान सायंकाल किया गया है-
'सायाह्ने बकुलं शुभम्।'
इस तरह सायंकालमें विधि चरितार्थ हो जाती है और भिन्न समयमें निषेध चरितार्थ हो जाता है ।
कुन्द - कुन्द-फूलके लिये भी उपर्युक्त पद्धति व्यवहारणीय है । माघ महीनेमें भगवान शंकरपर कुन्द चढ़ाया जा सकता है, शेष महीनोंमें नही । वीरमित्रोदयने लिखा है-
कुन्दपुष्पस्य निषेधेऽपि माघे निषेधाभावः ।
विष्णु-पूजनमें विहित पत्र-पुष्प
भगवान विष्णुको तुलसी बहुत प्रिय । एक और रत्न, मणि तथा स्वर्णनिर्मित बहुत-से फूल चढ़ाये जायॅं और दूसरी और तुलसीदल चढाया जाय तो भगवान् तुलसीदलको ही पसंद करेंगे । सच पूछा जाय तो ये तुलसीदलकी सोलहवी कलाकी भी समता नहीं कर सकते । भगवानको कौस्तुभ भी उतना प्रिय नहीं है, जितना कि तुलसीपत्र मंजरी । काली तुलसी तो प्रिय है ही किंतु गौरी तुलसी तो और भी अधिक प्रिय है । भगवानने श्रीमुखसे कहा है कि यदि तुलसीदल न हो तो कनेर, बेला, चम्पा, कमल और मणि आदि से निर्मित फूल भी मुझे नहीं सुहाते । तुलसीसे पूजित शिवलिङ्ग या विष्णुकी प्रतिमाके दर्शनमात्रसे ब्रह्महत्या भी दूर हो जाती है । एक और मालती आदिकी ताजी मालाए हो और दूसरी ओर बासी तुलसी हो तो भगवान बासी तुलसीको ही अपनायेंगे ।
शास्त्रने भगवानपर चढ़ानेयोग्य पत्रोंका भी परस्पर तारतम्य बतलाकर तुलसीकी सर्वातिशायिता बतलायी है, जैसे कि चिचिड़ेकी पत्तीसे भॅंगरैयाकी पत्ती अच्छी मानी गयी है तथा उससे अच्छी खैरकी और उससे अच्छी शमीकी । शमीसे दूर्वा, उससे अच्छा कुश, उससे अच्छी दौनाकी, उससे अच्छी बेलकी पत्तीको और उससे भी अच्छा तुलसीदल होता है ।
नरसिंहपुराणमें फूलोंका तारतम्य बतलाया गया है । कहा गया है कि दस स्वर्ण-सुमनोंका दान करनेसे जो फल प्राप्त होता है, व एक गूमाके फूल चढ़ानेसे प्राप्त हो जाता है । इसके बाद उन फूलोंके नाम गिनाये गये हैं, जिनमे पहलेकी अपेक्षा अगला उत्तरोत्तर हजार गुना अधिक फलप्रद होता जाता है, जैसे-गूमाके फूलसे हजार गुना बढ़कर एक खैर, हजारों खैरके फूलोंसे बढ़कर एक शमीका फूल, हजारों कनेरके फूलोंसे बढ़कर एक सफेद कनेर, हजारों सफेद कनेरसे बढ़कर कुशका फूल, हजारो कुशके फूलोंसे बढ़कर वनवेला, हजारों वनवेलाके फूलोंसे एक चम्पा, हजारों चम्पाओंसे बढ़कर एक अशोक, हजारों अशोकके पुष्पोंसे बढ़कर एक माधवी, हजारों वासन्तियोंसे बढ़कर एक गोजटा, हजारों गोजटांओंके फूलोंसे बढ़कर एक मालती, हजारों मालती फूलोंसे बढ़कर एक लाल त्रिसंधि (फगुनिया), हजारों लाल त्रिसंधि फूलोंसे बढ़कर एक सफेद त्रिसंधि, हजारों सफेद त्रिसंधि फूलोंसे बढ़कर एक कुन्दका फूल, हजारों कुन्द-पुष्पोंसे बढ़कर एक कमल-फूल, हजारों कमल-पुष्पोंसे बढ़कर एक बेला और हजारों बेला-फूलोंसे बढ़कर एक चमेलीका फूल होता है ।
निम्नलिखित फूल भगवानको लक्ष्मीकी तरह प्रिय है । इस बातको उन्होने स्वयं श्रीमुख से कहा है-
मालती, मौलसिरी, अशोक, कालीनेवारी (शेफालिका), बसंतीनेवारी (नवमल्लिका), आम्रात (आमड़ा), तगर, आस्फोत, बेल, मधुमल्लिका, जूही (यूथिका), अष्टपद, स्कन्द,कदम्ब, मधुपिङ्गल, पाटला, चम्पा, ह्रद्य, लवंग, अतिमुक्तक (माधवी), केवड़ा, कुरब, बेल, सायंकालमें फूलनेवाला श्वेत कमल (कह्लार) और अडूसा ।
कमलका फूल तो भगवानको बहुत ही प्रिय है । विष्णुरहस्यमें बतलाया गया है कि कमलका एक फूल चढ़ा देनेसे करोड़ो वर्षके पापोंका भगवान नाश कर देते है । कमलके अनेक भेद है । उन भेदोके फल भी भिन्न-भिन्न है । बतलाया गया है कि सौ लाल कमल चढ़ानेका फल एक श्वेत कमलके चढ़ानेसे मिल जाता है तथा लाखों श्वेत कमलोका फल एक नीलकमलसे और करोड़ो नीलकमलोंका फल एक पद्मसे प्राप्त हो जाता है । यदि कोई भी किसी प्रकार एक भी पद्म चढ़ा दे, तो उसके लिये विष्णुपुरीकी प्राप्ति सुनिश्चित है ।
बलि के द्वारा पूछे जानेपर भक्तराज प्रल्हादने विष्णुके प्रिय कुछ फूलोंके नाम बतलाये है- सुवर्णजाती (जाती), शतपुष्पा (शताह्वा), चमेली (सुमनाः), कुंद, कठचंपा (चारुपट), बाण, चम्पा, अशोक, कनेर, जूही, पारिभद्र, पाटला, मौलसिरी, अपराजिता (गिरिशालिनी), तिलक, अड़हुल, पीले रंगके समस्त फूल (पीतक) और तगर ।
पुराणोंने कुछ नाम और गिनाये है, जो नाम पहले आ गये है, उनको छोड़कर शेष नाम इस प्रकार है-
अगस्त्य आमकी मंजरी, मालती, बेला, जूही, (माधवी) अतिमुक्तक, यावन्ति, कुब्जई, करण्टक (पीली कटसरैया), धव (धातक), वाण (काली कटसरैया), बर्बरमल्लिका (बेलाका भेद) और अडूसा ।
विष्णुधर्मोत्तरमें बतलाया गया है कि भगवान विष्णुकी श्वेत पीले फूलकी प्रियता प्रसिद्ध है, फिर भी लाल फूलोंमें दोपहरिया (बन्धूक), केसर, कुङ्कुम और अड़हुलके फूल उन्हें प्रिय है, अतः इन्हे अर्पित करना चाहिये । लाल कनेर और बर्रे भी भगवानको प्रिय है । बर्रेका फूल पीला-लाल होता है ।
इसी तरह कुछ सफेद फूलोंको वृक्षायुर्वेद लाल उगा देता है । लाल रंग होनेमात्रसे वे अप्रिय नही हो जाते, उन्हे भगवानको अर्पण करना चाहिये । इसी प्रकार कुछ सफेद फूलोंके बीच भिन्न-भिन्न वर्ण होते है । जैसे पारिजातके बीचमें लाल वर्ण । बीचमें भिन्न वर्ण होनेसे भी उन्हे सफेद फूल माना जाना चाहिये और वे भगवानके अर्पण योग्य है ।
विष्णुधर्मोत्तरके द्वारा प्रस्तुत नये नाम ये है- तीसी, भूचम्पक, पुरन्ध्रि, गोकर्ण और नागकर्ण ।
अन्तमें विष्णुधर्मोत्तरने पुष्पोंके चयनके लिये एक उपाय बतलाया है । कहा है कि जो फूल शास्त्रसे निषिद्ध न हो और गन्ध तथा रंग-रूपसे संयुक्त हो उन्हे विष्णुभगवानको अर्पण करना चाहिये ।
विष्णुके लिये निषिद्ध फूल
विष्णु भगवानपर नीचे लिखे फूलोंको चढ़ाना मना है -
आक, धतूरा, कांची, अपराजिता (गिरिकर्णिका), भटकटैया, कुरैया, सेमल, शिरीष, चिचिड़ा (कोशातकी), कैथ, लाङ्गुली, सहिजन, कचनार, बरगद, गूलर, पाकर, पीपर और अमड़ा (कपीतन) ।
घरपर रोपे गये कनेर और दोपहरियोके फूलका भी निषेध है ।
सूर्यके अर्चनके लिये विहित पत्र-पुष्प
भविष्यपुराणमे बतलाया गया है कि सूर्यभगवानको यदि एक आकका फूल अर्पण कर दिया जाय तो सोनेकी दस अशर्फिया चढ़ानेका फल मिल जाता है । फूलोंका तारतम्य इस प्रकार बतलाया गया है -
हजार अड़हुलके फूलोंसे बढ़कर एक कनेरका फूल होता है, हजार कनेरके फूलोंस बढ़कर एक बिल्वपत्र, हजार बिल्वपत्रोंसे बढ़कर एक 'पद्म; (सफेद रंगसे भिन्न रंगवाला), हजारों रंगीन पद्म-पुष्पोंसे बढ़कर एक मौलसिरी, हजारों मौलसिरियोंसे बढ़कर एक कुशका फूल, हजार कुशके फूलोंसे बढ़्कर एक शमीका फूल, हजार शमीके फूलोंसे बढ़कर एक नीलकमल, हजारों नील एवं रक्त कमलोंसे बढ़कर 'केसर और लाल कनेर' का फूल होता है ।
यदि इनके फूल न मिले तो बदलेमें पत्ते चढ़ाये और पत्ते भी न मिलें तो इनके फल चढ़ाये ।
फूलकी अपेक्षा मालामें दुगुना फल प्राप्त होता है ।
रातमें कदम्बके फूल और मुकुरको अर्पण करे और दिनमें शेष समस्त फूल । बेला दिनमें और रातमे भी चढ़ाना चाहिये ।
सूर्यभगवानपर चढ़ाने योग्य कुछ फूल ये है - बेला, मालती, काश,माधवी, पाटला, कनेर, जपा, यावन्ति,कुब्जक, कर्णिकार, पीली कटसरैया (कुरण्टक), चम्पा, रोलक, कुन्द, काली कटसरैया (वाण), बर्बरमल्लिका, अशोक, तिलक, लोध, अरूषा, कमल, मौलसिरी, अगस्त्य और पलाशके फूल तथा दूर्वा ।
कुछ समकक्ष पुष्प
शमीका फूल और बड़ी कटेरीका फूल एक समान माने जाते है । करवीरकी कोटिमें चमेली, मौलसिरी और पाटला आते है । श्वेत कमल और मन्दारकी श्रेणी एक है । इसी तरह नागकेसर, चम्पा, पुन्नाग और मुकुर एक समान माने जाते है ।
विहित पत्र
बेलका पत्र, शमीका पत्ता, भॅंगरैयाकी पत्ती, तमालपत्र, तुलसी और काली तुलसीके पत्ते तथा कमलके पत्ते सूर्यभगवानकी पूजामें गृहीत है ।
सूर्यके लिये निषिद्ध फूल
गुंजा (कृष्णला), धतूरा, कांची, अपराजिता (गिरिकर्णिका), भटकटैया, तगर और अमड़ा- इन्हे सूर्यपर न चढ़ाये ।
'वीरमित्रोदय' ने इन्हे सूर्यपर चढ़ानेका स्पष्ट निषेध किया है, यथा-
कृष्णलोन्मत्तकं काञ्ची तथा च गिरिकर्णिका ।
न कण्टकारिपुष्पं च तथान्यद् गन्धवर्जितम ॥
देवीनामर्कमन्दारौ सूर्यस्य तगरं तथा ।
न चाम्रातकजैः पुष्पैरर्चनीयो दिवाकरः ॥
फूलोंके चयनकी कसौटी - सभी फूलोंका नाम गिनाना कठिन है । सब फूल सब जगह मिलते भी नही । अतः शास्त्रने योग्य फूलोंके चुनावके लिये हमें एक कसौटी दी है कि जौ फूल निषेध कोटिमें नही है और रंग-रूप तथा सुगन्धसे युक्त है उन सभी फूलोंको भगवानको चढ़ाना चाहिये ।
येषां न प्रतिषेधोऽस्ति गन्धवर्नान्वितानि च ।
तानि पुष्पाणि देयानि भानवे लोकभानवे ॥