वैशाखशुक्लैकादशी ( कूर्मपुराण ) -
इस व्रतके नियम - विधान और निर्णय कृष्ण एकादशीकी भाँति हैं । इसका नाम मोहिनी है । इससे मोहजाल और पापसमूह दूर होते हैं । भगवान श्रीरामचन्द्रजीने इस व्रतको सीताजीकी खोज करते समय किया था । उनके पीछे कौण्डिन्यके कहनेसे धृष्टबुद्धिने और श्रीकृष्णके कहनेसे युधिष्ठिरादिने किया । इस समय भी सनातनधर्मावलम्बी इस व्रतको बड़ी श्रद्धासे करते है । इसकी एक कथा है, उससे ज्ञात होता है कि मनुष्यका किस प्रकार कुसङ्गसे पतन और सुसङ्गसे सुधार हो जाता है । प्राचीन कालमें सरस्वतीके तटवर्ती भद्रावती नगरीमें द्युतिमान् राजाके १ सुमन, २ सुद्युम्र, ३ मेधावी, ४ कृषाती और ५ धृष्टबुद्धि - ये पाँच पुत्र हुए थे । इनमें धृष्टबुद्धिका वेश्या आदिके कुसङ्गसे पतन हो गया और वह धन - धान्य - सम्मान तथा गृह आदिसे हीन होकर हिंसावृत्तिमें लग गया । इस दुर्गतिसे उसने अनेक अनर्थ किये । अन्तमें कौण्डिन्यने बतलाया कि तुम मोहिनी एकादशीका व्रत करो, उससे तुम्हारा उद्धार होगा । यह सुनकर उसने वैसा ही किया और इस व्रतके प्रभावसे पुर्ववत सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर अन्तमें स्वर्गमें गया ।