वैशाख शुक्लपक्ष व्रत - नृसिंह जयन्तीव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


नृसिंह - जयन्तीव्रत ( वराह और नृसिंहपुराण ) -

यह व्रत वैशाख शुक्ल चतुर्दशीको किया जाता है । इसमें प्रदोषव्यापिनी चतुर्दशी लेनी चाहिये । यदि दो दिन ऐसी चतुर्दशी हो अथवा दोनों ही दिन न हो तो भी ( मदनतिथी ) त्रयोदशीका संसर्ग बचानेके विचारसे दूसरे दिन ही उपवास करना चाहिये । यह अवश्य स्मरण रहे कि दैवयोग अथवा सौभाग्यवश किसी दिन पुर्वविद्धामें शनि, स्वाती, सिद्धि और वणिजका संयोग हो तो उसी दिन व्रत करना चाहिये । व्रतके दिन प्रातःकालमें सूर्यादिको व्रत करनेकी भावना निवेदन करके ताँबेके पात्रमें जल ले और

' नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे । उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जितः ॥'

इस मन्त्रसे संकल्प करके मध्याह्नके समय नदी आदिपर जाकर क्रमशः तिल, गोमय, मृत्तिका और आँवले मलकर पृथक् - पृथक् चार बार स्त्रान करे । इसके बाद शुद्ध स्त्रान करके वहीं नित्यकृत्य करे । फिर घर आकर क्रोध, लोभ, मोह, मिथ्याभाषण, कुसङ्ग और पापाचार आदिका सर्वथा त्याग करके ब्रह्मचर्यसहित उपवास करे । सायंकालमें एक वेदीपर अष्टदल बनाकर उसपर सिंह, नृसिंह और लक्ष्मीकी सोनेकी मूर्ति स्थापित करके वेदमन्त्रोंसे प्राण - प्रतिष्ठापूर्वक उनका षोडशोपचारसे ( अथवा पौराणिक मन्त्रोंसे पञ्चोपचारसे ) पूजन करे । रात्रिमें गायन - वादन, पुराणश्रवण या हरिसंकीर्तनसे जागरण करे । दूसरे दिन फिर पूजन करे और ब्राह्मणोंको भोजन कराकर स्वजनोंसहित स्वयं भोजन करे । इस प्रकार प्रतिवर्ष करते रहनेसे नृसिंहभगवान उसकी सब जगह रक्षा करते हैं और यथेच्छ धन - धान्य देते है । नृसिंहपुराणमें इस व्रतकी कथा है । उसका सारांश यह है - जब हिरण्यकशिपुका संहार करके नृसिंहभगवान कुछ शान्त हुए, तब प्रहादजीने पूछा कि ' भगवन ! अन्य भक्तोंकी अपेक्षा मेरे प्रति आपका आधिक स्नेह होनेका क्या कारण है ?' तब भगवानने कहा कि ' पूर्वजन्ममें तू विद्याहीन आचारहीन वासुदेव नामका था । एक बार मेरे व्रतके दिन ( वैशाख शुक्ल चतुर्दशीको ) विशेष कारणवश तूने न जल पिया, न भोजन किया, न सोया और ब्रह्मचर्यसे रहा । इस प्रकार स्वतःसिद्ध उपवास और जागरण हो जानेके प्रभावसे तू भक्तराज प्रल्हाद हुआ ।'

१. स्वातीनक्षत्रसंयोगे शनिवारे महद्वतम् ।

सिद्धियोगस्य संयोगे वणिजे करणे तथा ॥

पुंसां सौभाग्ययोगेन लभ्यते दैवयोगतः ।

सर्वेरेतैस्तु संयुक्तं हत्याकोटिविनाशम् ॥ ( नृसिंहपुराणे )

२. चन्दनं शीतलं दिव्यं चन्द्रकुडकुममिश्रितम् ।

ददामि तव तुष्टर्थं नृसिंह परमेश्वर ॥ ( इति गन्धम् )

कालोद्भवानि पुष्पाणि तुलस्यादीनि वै प्रभो ।

पूजयामि नृसिंह त्वां लक्ष्म्या सह नमोऽस्तु ते ॥ ( इति पुष्पम् )

३. कालागरुमयं धूपं सर्वदेवसुवल्लभम् ।

करोमि ते महाविष्णो सर्वकामसममृद्धये ॥ ( इति धूपम् )

४. दीपः पापहरः प्रोक्तस्तमोराशिविनाशनः ।

दीपेन लभ्यते तेजस्तस्माद् दीपं ददामि ते ॥ ( इति दीपम् )

५. नैवेद्यं सौख्यदं चारुभक्ष्यभोज्यसमान्वितम् ।

ददामि ते रमाकान्त सर्वपापक्शयं कुरु ॥ ( इति नैवेद्यम् )

६. उक्तप्रकारेण पञ्चोपचारविधिना देवं सम्पूज्य -

नृसिंहाच्युत देवेश लक्ष्मीकान्त जगत्पते ।

अनेनार्घ्यप्रदानेन सफलाः स्युर्मनोरथाः ॥ ( इति विशेषार्घ्यं दद्यात् )

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Last Updated : January 17, 2009

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