तेरी पार करैगो नैया, भज मन कृष्ण कन्हैया ॥
निशि-दिन भज गोपाल पियारे, मोर-मुकुट पीताम्बर-बारे ।
भक्तोंके रखवैया, भज मन कृष्ण कन्हैया ॥१॥
स्वाँस-स्वाँस भज नन्द-दुलारे, वोही बिगड़े काज सँवारे ।
नटवर चतुर रिझैया, भज मन कृष्ण कन्हैया ॥२॥
अर्जुनके हित रथको हाँका, साँवरिया गिरधारी बाँका ।
भारत युध्द जितैया, भज मन कृष्ण कन्हैया ॥३॥
ग्वाल-बाल सँग धेनु चरावै, लूट-लूट दधिमाखन खावै ।
कालीनाग नथैया, भज मन कृष्ण कन्हैया ॥४॥
भक्त सुदामा चावल लाये, गले लगाकर भोग लगाये ।
कहकर भैय-भैया, भज मन कृष्ण कन्हैया ॥५॥
नरसीजीने टेर लगाई, साँवलशाह नहिं देर लगाई ।
ऐसे भात भरैया, भज मन कृष्ण कन्हैया ॥६॥
सकटसे प्रह्लाद उबार् यो, खंभ फाड़ हिरनाकुश मार् यो ।
नरसिंह-रुप धरैया, भज मन कृष्ण कन्हैया ॥७॥
जल-डूबत गज हरिहिं पुकार् यो, छड़ि गरुड़ प्रभु तुरत सिधार् यो ।
गजकी टेर सुनैया, भज मन कृष्ण कन्हैया ॥८॥
आरत हो गजराज पुकारा, मैं हूँ भगवन् दास तुम्हारा ।
पहुँचे गरुड़ चढ़ैया , भज मन कृष्ण कन्हैया ॥९॥
अबलाको दे शरण न कोई, भरी सभामें द्रौपदी रोई ।
पहूँचे चीर बढ़ैया, भज मन कृष्ण कन्हैया ॥१०॥
वनमें एक शिला थी भारी, चरण छुवाय अहिल्या तारी ।
ऐसे स्वर्ग पठैया, भज मन कृष्ण कन्हैया ॥११॥
दीनानाथ सर्व हितकारी, संकट-मोचन कृष्ण मुरारी ।
जनका पत रखवैया, भज मन कृष्ण कन्हैया ॥१२॥