अकृतव्रण n. हिमालयस्थ शान्त ऋषिका पुत्र । एक बार व्याघ्र के आक्रमण से भय भीत हो कर यह चिल्लाता हुआ भागने लगा । इसी समय परशुराम, शंकर को प्रसन्न कर के वापस आ रहे थे । इसे भागते हुए देख कर परशुराम ने इसे अभय दिया तथा व्याघ्र को मार डाला । व्याघ्र के द्वारा इस बालक के शरीर पर व्रण न किये जाने के कारण इसका नाम अकृतव्रण प्रचलित हुआ । बाद में परशुराम ने इसको अपना शिष्य बनाया । यह निरंतर परशुराम के साथ रहता था
[ब्रह्मांड. ३.२५.६६] ।
अकृतव्रण II. n. युधिष्ठिरद्वारा किये गये राजसूय यज्ञ में यह उपद्रष्टा था ।
[भा. १०.७४.९] । इसने रोमहर्षण से सब पुराणों का अध्ययन किया
[भा. १२.७.५-७] ; अंबा देखिये ।
अकृतव्रण III. n. कृतयुग का एक ब्राह्मण । यह एक बार , जब सरोवर में स्नान कर रहा था, तब एक नक्र ने इसको पैर पकडा तथा उसे जल में खींचने लगा । इस लिये इसने उस सरोवर के जल को एवं जलदेवता को शाप दिया कि, जो कोई इस पानी को स्पर्श करेगा वह तत्काल व्याघ्री हो जायेगा । अगे पांडवों का अश्वमेधीय अश्व इस सरोवर में जलपान के लिये उतरने के कारण व्याघ्री बन गया
[जै.अ.२१] ।