Dictionaries | References

पूरु

   { pūru }
Script: Devanagari

पूरु     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
PŪRU I   A celebrated king of Candravaṁśa.
1) Genealogy.
Descending in order from Viṣṇu are Brahmā- Atri--Candra--Budha--Purūravas--Āyus--Nahuṣa-- Yayāti--Pūru. Yayāti had two wives named Śarmiṣṭhā and Devayānī. Śarmiṣṭhā gave birth to Druhyu, Anu and Pūru. Devayānī gave birth to Yadu and Turvasu.
2) Pūru becomes king.
Yayāti, Pūru's father, was turned into an old man by a curse of Śukrācārya. The king called all his sons to his side and requested each to take his old age and give him their youth. All the elder sons refused to do it but Pūru agreed to do so. Taking the youth of Pūru, his father, Yayāti lived a sensuous life for a thousand years. Then the king gave back Pūru his youth and crowned him as the heir apparent to his kingdom. (See under Devayānī).
3) Other details.
(i) Pūru got of his wife Kausalyā alias Pauṣṭī three sons named Janamejaya (Pravīra), Īśvara and Raudrā- śva. [Chapter 94, Ādi Parva] .
(ii) After his death Pūru entered the court of Yama. Śloka 8, Chapter 8, Sabhā Parva).
(iii) Pūru along with Indra in the latter's Vimāṇa witnessed the war between Arjuna and the Kauravas. [Śloka 10, Chapter 56, Virāṭa Parva] .
(iv) A king called Māndhātā once defeated Pūru in a battle. [Śloka 10, Chapter 62, Droṇa Parva] .
PŪRU II   The name of the charioteer of Arjuna. [Śloka 30, Chapter 33, Sabhā Parva] .

पूरु     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
noun  एक राक्षस   Ex. पूरु का वर्णन पुराणों में मिलता है ।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
kasپُروٗ
kokपुरू
marपूरु
sanपूरुः
urdپُورُو
See : पुरु

पूरु     

पूरु n.  ऋग्वेदकालीन एक जातिसमूह । अनु, द्रुहयु, तुर्वसु, एवं यदु लोगों के साथ, इनका निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है [ऋ.१.१०८.८] । दाशराज्ञ युद्ध में, सुदास राजा के हाथों पूरु लोगों को पराजित होना पडा [ऋ.७.८.४] । ऋग्वेद के एक सूक्त में, पूरु लोगों के एक राजा का, एवं सुदास की पराजय के लिए असफल रुप में प्रार्थना करनेवाले राजपुरोहित विश्वामित्र का निर्देश प्राप्त है [ऋ.७.१८.३] । यद्यपि दाशराज्ञ युद्ध में पूरुओं का पराजय हुआ, फिर भी ऋग्वेदकाल में ये लोग काफी सामर्थ्यशाली प्रतीत होते हैं । इन लोगों ने अनेक आदिवासी लोगों पर विजय प्राप्त किया था । [ऋ.१.५९.६,१३१.४,४. २१.१०] । तृत्सु एवं भरत जातियों से इन लोगों का अत्यंत घनिष्ठ संबंध था, एवं उन जातियों के साथ, पूरु लोग भी सरस्वती नदी के किनारे रहते थे [ऋ.७.९६.२] । कई विद्वानों के अनुसार, पूरु लोग सर्वप्रथम दिवोदास राजा के साथ सिन्धु नदी के पश्चिम में रहते थे, और बाद को ये सरस्वती नदी के किनारे रहने लगे । सिकंदर को एक पौरव राजा ‘उस हयदस्पीस’ नामक स्थान के समीप मिला था [अरियन-इंडिका ८.४] । यह स्थान सरस्वती नदी एवं पश्चिम प्रदेश के बीच में कहीं स्थित था । पूरु लोगों के अनेक राजाओं का निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है, जिससे इन लोगों का महत्त्व प्रस्थापित होता है । ऋग्वेद में प्राप्त पूरु राजाओं की वंशावलि इस प्रकार हैः
पूरु (आत्रेय) n.  एक वैदिक सूक्तद्रष्टा [ऋ.५.१६-१७]
पूरु II. n.  ‘पौरववंश’ की स्थापना करनेवाला सुविख्यात राजा, जो महाभारत के अनुसार, ययाति राजा के पॉंच पुत्रों में से एक था । ययाति राजा के शेष चार पुत्रों के नाम इस प्रकार थेः---अनु, द्रुहयु, यदु एवं तुर्वशु [म.आ.१.१७६२] । ययाति राजा एवं उनके पॉंच पुत्रों का निर्देश ऋग्वेद में भी प्राप्त है, किन्तु वहॉं ययाति एक ऋषि एवं सूक्तद्रष्टा बताया गया है, एवं अनु, द्रुह्या, यदु, तुर्वशु तथा पूरु का निर्देश स्वतंत्र जातियों के नाते से किया गया है । ‘वैदिक इंडेक्स’ के अनुसार, ऋग्वेद की जानकारी अधिक ऐतिहासिक है, एवं महाभारत तथा पुराणों में दी गयी जानकारी गलत है [वै.इ.२.१८७] । महाभारत के अनुसार, यह ययाति राजा को शर्मिष्ठा के गर्भ से उत्पन्न हुआ था [म.आ.७०.३१] । इसकी राजधानी प्रतिष्ठान नगर में थी । यह अपने पिता के सभी पुत्रो में कनिष्ठ था । किंतु इसने ययाति की जरावस्था लेकर उसे अपनी तारुण्य प्रदान किया था [म.आ.७०.४१] । इस उदारता एवं पितृभक्ति से प्रसन्न होकर, कनिष्ठ होकर भी, ययाति ने इसे अपना समस्त राज्य दे दिया, एवं इसे ‘सार्वभौम राज्यभिषेक’ करवाया । इसके राज्याभिषेक के समय, समाजनों से दृढतापूर्वक कहा, ‘जो पिता की आज्ञा का पालन करता है वहीं उसका वास्तविक पुत्र है, एवं उसे ही राज्याधिकार मिलना चाहिये’। अन्त में ययाति के आदेशानुसार, पूरु का राज्याभिषेक किया गया । इसके अन्य भाइयों को भी राज्य प्रदान किये गये, पर अपने पिता का ‘सार्वभौत्त्व’ पूरु को ही प्राप्त हुआ [भा.९.१९,२३] । सुविख्यात ‘पूरुवंश’ की स्थापना इसने की । इस कारण इसे ‘वंशकर’ भी कहा गया है [म.आ.७०.४५] । कालांतर में, विषयोपभोग से ऊबकर, ययाति ने पूरु का तारुण्य वापस कर दिया [ह.वं.१.३.३६] ;[मत्स्य. ३२] ;[ब्रह्म.१२] ;[वायु.९३.७५] ;[विष्णु.४.१०-१६] । महाभारत में पूरु को ‘पुण्यश्लोक’ राजा कहा गया है । यह मॉंसभक्षण का निषेध कर, परावर-तत्त्व का ज्ञान प्राप्त कर चुका था [म.अनु.११५.५९] । यह यमसभा में रहकर यम की उपासना करता था [म.स.८.८]
पूरु II. n.  पूरु के कौसल्या तथा पौष्टी नामक दो पत्नियॉं थी । कौसल्या से इसे जनमेजय, तथा पौष्टी से प्रवीर, ईश्वर, तथा रोदाश्व नामक पुत्र हुए । इसके पुत्रो में से जनमेजय वीर एवं प्रतापी था, अतएव वही इसके पश्चात् राजगद्दी का अधिकारी हुआ [म.आ.९०.११] । महाभारत में अन्यत्र, ‘पौष्टी’ कौसल्या का ही नामांतर माना गया है, एवं जनमेजय तथा प्रवीर एक ही व्यक्ति मान कर प्रवीर को ‘वंशकर’ कहा गया है [म.आ.८९.५] । भागवत में प्रवीर को पूरु का नाती कहा गया है [भा.९.२०.२]
पूरु II. n.  पूरु ने सुविख्यात पूरुवंश की स्थापना की । इसलिये इसके वंशज ‘पौरव’ कहलाते है, एवं उनकी विस्तृत जानकारी आठ पुराणों एवं महाभारत में प्राप्त है । [वायु.९९.१२०] ;[ब्रह्म. १३.२-८] ;[ह.वं.१.२०.३१-३२] ;[मस्त्य ४९.१] ;[विष्णु.४.१९.] ;[भा.९.२०-२१] ;[अग्नि.२७८. १] ;[गरुड. १.१३९] ;[म.आ.८९-९०] । पूरुवंश के तीन प्रमुख विभाग माने जाते हैः---१ (सो.पूरु)-पूरु से लेकर अजमीढ तक के राजा इस विभाग में समाविष्ट किये जाते हैः २. (सो. ऋक्ष) अजमीढ से लेकर कुरु तक के राजा इस विभाग में समाविष्ट होते हैः ३. (सो.कुरु)---कुरु से ले कर पांडवों तक के राज इस विभाग में आते हैं । पूरुवंश के अजमीढ राजा को नील, बृहद्विषु एवं ऋक्ष नामक तीन पुत्र थे । इनमें से ऋक्ष हस्तिनापुर के राजगद्दी पर बैठा । नील एवं बृहदिषु ने उत्तर एवं दक्षिण पांचाल के स्वतंत्र राज्य स्थापित किये । ऋक्ष राजा के वंश में से कुरु राजा ने सुविख्यात कुरु वंश की स्थापना की । कुरु राजा को जह्रु, परीक्षित् एवं सुधन्वन् नामक तीन पुत्र । उनमें से जह्रु, कुरु राजा का उत्तराधिकारी बना, एवं उसने हस्तिनापुर का कुरुवंश आगे चलाया । सुधन्वन् का वंशज वसु ने चेदि एवं मगध में स्वतंत्र राजवंश की स्थापना की । परिक्षित् का पुत्र जनमेजय (दूसरा) ने गार्ग्य ऋषि के पुत्र का अपमान किया, जिस कारण गार्ग्य ने उसे शाप दिया । उस शाप के कारण, उसका एवं उसके श्रुतसेन, उग्रसेन एवं भीमसेन नामक पुत्रों का राज्याधिकार नष्ट हो गया । जह्रु राजा का पुत्र सुरथ था सुरथ से ले कर अभिमन्यु तक की वंशावलि पुराणों एवं महाभारत में विस्तार से दी गयी है ।
पूरु III. n.  अर्जुन का सारथि, जिसे राजसूय यज्ञ के लिये अन्नसंग्रह के काम पर जुट जाने का आदेश मिला था [म.स.३०.३०]
पूरु IV. n.  (स्वा. उत्तान.) एक राजा । यह चक्षुर्मनु की नडवला से उत्पन्न पुत्रों में से ज्येष्ठ था । इसे ‘पूरष’ नामांतर भी प्राप्त था [भा८.५.७] । भागवत में इसे ‘पुरु’ भी कहा गया है [भा.४.१३.१६]
पूरु V. n.  (सो. अमा.) एक राजा । भागवत के अनुसार यह जह्रु का पुत्र था । इसे अज एवं अजमीढ नामांतर भी प्राप्त थे । इसका पुत्र बलाकाश्व था ।

पूरु     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
noun  एक राक्षस   Ex. पूरुचे वर्णन पुराणांत आढळते.
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
kasپُروٗ
kokपुरू
sanपूरुः
urdپُورُو

पूरु     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
पूरु  m. m. (orig.= पुरु, and connected with पुरुष, पूर्व्ष) a man, people, [RV.]
N. of a tribe (associated with the यदुs, तुर्वशs, द्रुह्युs), ib.
of a class of demons, [ŚBr.]
of an ancient prince (the son of ययाति and शर्मिष्ठा), [MBh.] ; [Śak.] ; [Pur.] (cf.[Pāṇ. 4-1, 165] , Vārtt. 3, [Pat.] )
of a descendant of अत्रि and author of [RV. v, 16; 17] ; [RAnukr.]
of a son of मनु and नड्वला, [Hariv.]
of a son of जह्नु, [BhP.]

Related Words

पूरु   پُروٗ   پُورُو   पूरुः   પૂરુ   पुरू   পুরু   ପୁରୁ   अश्वजित   अंतिदेव   उभक्षय   अविन्द्र   दुःषन्त   भुवन्मन्यु   जयद   योगसू   सुजन्तु   कुक्षेयु   पीतायुध   त्रिचक्षु   पौरवीय   वक्षेयु   कुंतीभोज   अयुतानायिन्   पौष्टी   अनश्वन   कविरथ   अराचीन   कृतेयु   नृचक्षु   युगदत्त   रजेयु   बहुगव   भार्गभूमि   नमस्यु   चारुपद   प्रचिन्वत्   संततेयु   अक्रोधन   अहंयाति   इलिन   अमूर्तरयस   ऋतेयु   प्रवसु   प्राचीन्वत्   दुरितक्षय   भवन्मन्यु   धर्मेयु   अधिसामकृष्ण   अरिह   अविद्ध   प्रतिरथ   भल्लाट   मूर्तिमत्   जलेयु   तंसु   रंतिनार   पुष्करिन्   प्रवीर   जह्रु   ऋचेयु   बृहत्कर्मन्   बृहन्मनस्   त्रय्यारुणि   देवमीढ   द्रह्यु   मतिनार   बाह्रीक   कृष्टि   भुमन्यु   मिश्रकेशी   जंतु   त्रय्यारुण   धर्मनेत्र   नेमिचक्र   मनस्यु   पौर   त्रसदस्यु   बलाक   पौरव   अनाधृष्टि   उर्व   अमित   क्षेमक   क्षेम्य   व्युषिताश्व   बिन्दुमती   रौद्राश्व   बृहत्क्षत्र   बृहन्त   पुरंजय   निरमित्र   निषध   तिमि   विष्वक्सेन   महाबल   पुरुमीढ   मन्यु   ययाति   ऋक्ष   
Folder  Page  Word/Phrase  Person

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP