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उठी तात मात भये प्रात रजनी सो तीमीर गई । मीलत बाल सकल ग्वाल सुंदर कान्हाई ॥१॥
जागों गोपाल लाल जागो गोविंदलाला जाननी बल जाई ॥धृ०॥
संगीत सब फीरत बयन तुमबीन नहीं छुटत नहीं दयन । त्यजो शयन कमलनयन सुंदर मुख भई ॥२॥
मुखती पट दूर किजो जननीकु दर्श दीजो । दधीं खीर मांगलीं जो खीर खांड मिठाई ॥३॥
जमत जमत शामराम सुंदरमुख सदा राम । थाथी कीं छुट कछु भानुदास पायीं ॥४॥