हिंदुस्थानीं पदें - पदे १ ते ५

वेदान्तशास्त्र हे नुसते बुध्दिगम्य व वाक्‍चातुर्यदर्शक शास्त्र नसून प्रत्यक्ष अनुभवगम्य शास्त्र आहे हे या ग्रन्थातून स्पष्ट होते.


पद १
सबसे खूब बना खूब बना । फकत फकीरी बाना ॥धृ॥
किसका नहि शरमिंदा । सबदिन आखत्यारि बंदा ॥१॥
झाडोकि फल खावे । गहेरा नदीका जल पीवे ॥२॥
छय्या लाकूल पटावे । ज्याकर जंगल म्यान सोवे ॥३॥
सदा मगन दिल म्याने । हारदम निरंजनकू जानें ॥४॥

पद २
फकिर वो कहेना वो कहेना । सदा मगन मस्ताना ॥धृ॥
दुजेकूं नहि जाने । हारदम आपआपकु चिने ॥१॥
रावरंक सम देखे । सुन्ना खाक बराबर लेखे ॥२॥
सहज मिले तो खावे । कोई दिन फाकेसबी ज्यावे ॥३॥
छोडी सबकोइ अरसा । हुवा निरंजन का बासा ॥४॥

पद ३
हारबिन नहि ठिकानाबे । भुला जगत दिवानाबे ॥धृ॥
बाहेर भीतर राम बिराजे । पैठा सबघट म्याने ॥
उसके ऊपर चलते फिरते । कोइ नहि उनफू ज्याने ॥१॥
पानीसे तन पयदा होकर । पानीमो रहबासी ।
पानी भीतर पानी धुंडे । मच्छी होकर प्यासी ॥२॥
आगमनीगम देते है । साखि ब्रह्मरूप जगसारा ।
उसका कहेना कोइ नहि माने झूटा करत खिसारा ॥३॥
नीरंजन रघुनाथ हुकुमसे करता खूप इसारा ।
गगन जगनसे लगन लगा है । क्या कहुं बारेबारा ॥४॥

पद ४
ब्रह्मरसायन पीयो भाई । दुर्धर हा भव बाधत नाहीं ॥धृ॥
चिन्मय बनके भीतर ज्यावो । पेट भराकर चिद्रस पीवो ॥१॥
आगमनीगम बाड निकालो । अनुभव लेकर बात न बोलो ॥२॥
शुकसनकादिक येह रस पीवे । ब्याद मिटाकर साचे जीवे ॥३॥
नीरंजन रघुनाथ दवागू । ब्रह्मदवा खुब होगई लागू ॥४॥

पद ५
जोगि भया बो दोसो बेसे । छोडी तनकी आसा बे ॥धृ॥
आपने तनकी सूध नही है हुवा अस्थिपंजर ।
उसके आगे घास फुसे है अच्छी अंबर सुंदर ॥१॥
आशा तृष्णा छेदन कालि मन किया है हाजर ।
उसके देखे हाथी घोडे दौलत पसन् बराबर ॥२॥
आलख पलखसे धुंद लगी है हुवा मस्त दीवाना ।
उसके लेखे कछु नहि है खट्टामीठा खाना ॥३॥
निरंजन रघुनाथकदमसे लगकर बारोबारा ।
आतमग्यानका प्याला पीकर दशईंद्रीयकूं मारा ॥४॥

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Last Updated : November 25, 2016

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