हिंदुस्थानीं पदें - पदे ३६ ते ४०

वेदान्तशास्त्र हे नुसते बुध्दिगम्य व वाक्‍चातुर्यदर्शक शास्त्र नसून प्रत्यक्ष अनुभवगम्य शास्त्र आहे हे या ग्रन्थातून स्पष्ट होते.


पद ३६
वाहवा साई । ये दुनिया खब जमाई ॥धृ॥
अपहि जे रुखम दो हुव्वा । बिचमो येक बनाना छाया ।
सोनर बेद बखानत रावा । भातभातका किया पिलावा । सुरत छुपाई ॥१॥
आपहि आप देखके भूला । नानादेह झुलत है झुला ।
आपसुख आप मारणेवाला । आपहि बनागुपी रचेला । रहा बताई ॥२॥
आपहि चौपट आपहि सारी । आपहि खेल खिलत खिलारी ।
चौर्‍याशीलख फिरताफेरी । पक्की नरद घर आन उतारी । पलटन आई ॥३॥
आपहि लेकर मायाअंजन । झूटा जगद्देखता रंजन ।
आपहि अपना करिता पूजन । सबसे अलग साच निरंजन । भेदन कोई ॥४॥

पद ३७
सबसे भली फकीरी रे । दैलत क्या करना बुरी ॥धृ॥
दौलत पीछे सबका डरहै सदा रहे शरमिंदा ।
आखरकु दम बिकल चले जब जम मारेगा कुंदा ॥१॥
एक घकी भिक आट पहर सुह्म अप अखत्यारी बंदा ।
रामनाम जपमाल जली है गुरुध्यानका धंदा ॥२॥
मोठी छाटी फटी लंगोटी हातमो लकाज तुंबा ।
सूखी रोटी खाकर सोवे पाव सरकर लंबा ॥३॥
निरंजन करी फकेरी छोड देई दिलगीरी ।
अमन चमन दिनरयन बना सुख गुरुकी हिकमत न्यारी ॥४॥

पद ३८
साहेबके दरबार बीचमो अंदा धुंदी भारीरे ।
दुर्जन तो बैकुंठ चढे है संतनपर अफतारी रे ॥धृ॥
अजामेळ पापीका सजा हुवा मरा तब भारीरे ।
भरतसीरखे राजे उनकू तीन जनमकी फेरी रे ॥१॥
गणिका दासी पार उतारी द्रोपदिकू दुखदारी रे ।
न्याय नहि इस दरबारोमे हरजीकी अखत्यारी रे ॥२॥
नही किसीके हातमो बाजि राम करेसे होता रे ।
करम धरम फल उनके हतमो चाहे वैसा देता रे ॥३॥
बडे बडे तापसी बैठे है अबतग नहि है छुटी रे ।
निरंजन तो मगत हुवा अब माया हो यइ झूटी रे ॥४॥

पद ३९
मै तो गुरुका बंदाबे जम क्या करता रिंदा बे ॥धृ॥
गुरु कदम सिर छत्र बिराजे शांति बखतर पेहरा ।
सिले टोप चिन्मय है गहेरा किसका नहि दरारा ॥१॥
दिल घोडेपर चढे सवारी हम तो पंचहत्यारी ।
गुरु मेहरकी ढाल बिराजे जुगत लिई हात डूरी ॥२॥
आतम बोधका हतमो खांड चिन्मय कडर कटारी ।
माया मांगिन चिले पिलेसे ग्यान सक्ति ले मारी ॥३॥
गुरुदस्त सिर चमर बिराजे बेद बखानत बंदी ।
निर्भय तखत् निरंजन पाया चढगई निजसुख धुंदी ॥४॥

पद ४०
झटपट राम सुमरले भाई ॥धृ॥
जरामरणके ऊच फरारे रोग फौज जलआई ।
वातपित्त कफ नौबत वाजे जमने धूम मचाई ॥१॥
मातापिता और खैसकबीला सग्गे सोदर भाई ।
तेरे उपर आन बने जब साथी नही है कोई ॥२॥
माया नदी पूर चला है खल्कत सबही बहाई
संतसमागम जलदी करले नरतनु नौका पाई ॥३॥
नीरंजन रघुनाथ गुरूकी अग्या खूब सुनाई ।
बारबार करतार पुकारे तुजकू राम दुहाई ॥४॥

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Last Updated : November 25, 2016

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