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श्रीमत् कमलापुर कनकधराधरव...

श्री राजराजेश्वरी चूर्णिका - श्रीमत् कमलापुर कनकधराधरव...

देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे. स्तोत्रे स्तुतीपर असल्याने, त्यांना कोणतेही वैदिक नियम नाहीत. स्तोत्रांचे पठण केल्याने इच्छित फल प्राप्त होते.
In Hinduism, a Stotra is a hymn of praise, that praise aspects of Devi and Devtas. Stotras are invariably uttered aloud and consist of chanting verses conveying the glory and attributes of God.

श्रीमत् कमलापुर कनकधराधरवर निरुपम परम पावन मनोहर प्रान्ते, सरसिजभवोपम विश्वंभरामरवर्ग निर्गलत्संभ्रम पुंखानुपुंख निरन्तर पठ्यमान निखिल निगमागम शास्त्रपुराणेतिहास कथानिर्मल निनादसमाक्रान्ते [१]
तत्र प्रवर्द्धित मन्दार-मालूर-कर्णिकार-सिन्धुवार-खर्जुर-कोविदार-जंबीर-जंबू-निंब-कदंबोदुंबर-साल-रसाल-तमाल-तक्कोल-हिन्ताल-नारिकेल-कदली-क्रमुक-मातुलंग-नारंग-लवंग-बदरी-चंपकाशोक-मधूक-पुन्नागागरुचन्दन-नागकुरुवक-मरुवक-एला-द्राक्षा-मल्लिका-मालती-माधवीलता-शोभायमान-पुष्पित-फलित-ललित विविधवनतरुवाटिका मद्ध्यप्रदेशे [२]
शुक-पिक-शारिका निकर-चकोर-मयूरचक्रवाक-बलाक-भरद्वाज-पिंगल-टिट्टिभ-गरुड-विहंग-कलायन कोलाहलाराव परिपूरिताशे तत्र सुधारसोपमपानीय
परिपूर्णकासार तटाकस्फुटितारविन्द पुण्डरीक कुमुदेन्दीवर-षण्ड सन्ञ्चरन्मराल चक्रवाक कारण्डक प्रमुख जलजाण्डजमण्डली शोभायमाने, नन्दनवनकृतबहुमाने [३]
चारुचामीकर रत्नगोपुर प्राकारवलयिते, सुललिते, सुस्निग्धविराजित वज्रस्तंभ सहस्र- पद्मरागोपलफलक जात नूतननिर्मित-प्रथममण्डप-द्वितीयमण्डप –अन्तरालमण्डप मूलमहामण्डपस्थाने, शिल्पिशास्त्रप्रधाने, खचित वज्र-वैडूर्य-माणिक्य-गोमेदक-पद्मराग-मरकत-नील-मुक्ता-प्रवालाख्य नवरत्न तेजोविराजित बिन्दु-त्रिकोण-षट्कोण-वसुकोण
दशारयुग्म मन्वन्तराष्टदल षोडशदल चतुर्द्वारयुत भूपुरत्रय श्रीचक्रस्वरूप भद्रसिंहासनासीने, सकलदेवताप्रधाने ! [४]
चरणांगुलिनखमुखरुचिनिचयपराभूततारके, श्रीमन्माणिक्य मञ्जीर रञ्जित श्रीपदांबुजद्वये,अद्वये,मीनकेतनमणितूणीरविलासविजयिजंघायुगले, कनकरंभास्तंभजृंभितोरुद्वये, कन्दर्प-स्वर्णस्यन्दनपटुतर शकटसन्निभनितंबबिंबे कुचभारनम्रदृष्टावलग्न विभूषित कमनीय काञ्चीकलापे [५]
दिनकरोदयावसर –अर्धविकसितारविन्द-कुड्मलतुल्यनाभिप्रदेशे, रोमराजीविराजित-वलित्रयी भासुरकरभोदरे, जंभासुररिपु कुंभिकुंभ-
समुज्जृंभित शातकुंभायमान संभावित पयोधरद्वये,
गोप्लूत कुचकलशकक्षद्वयारुणारुणित सूर्यपुटाभिधान परिधान निर्मित मुक्तामणिप्रोत कञ्चुकविराजमाने, कोमलतर कल्पवल्लीसमानपाशांकुश वराभय मुद्रामुद्रित कङ्कण झणझणत्कार विराजित
चतुर्भुजे ! [६]
त्रैलोक्यजैत्रयात्रागमन-समनन्तर- संगत- सुरवर-
कनकगिरीश्वर- करबद्ध- मंगलसूत्र-त्रिरेखाशोभित
कन्धरे, नवप्रवाल-पल्लव-पक्वबिंबफलाधरे,
निरन्तरकर्पूरतांबूलचर्वणारुणित रदनपंक्तिद्वये,
चंपकप्रसूनतिलपुष्पसमान नासापुटाग्रोदन्ञ्चित-
मौक्तिकाभरणे, कर्णावतंसीकृतेन्दीवर-विराजित-
कपोलभागे, अरविन्ददलसदृशदीर्घलोचने [७]
कुसुमशर-कोदण्डलेखालंकारकारि मनोहारि भ्रूलतायुगले, बालप्रभाकर- शशिकरपद्मरागमणिनिकराकार- सुरुचिर- रुचिमण्डल कर्णकुण्डलमण्डित गण्डभागे, सुललिताष्टमी चन्द्रलावण्य ललाट फलके, कस्तूरिकातिलके,
हरिनीलमणि द्विरेफावलि प्रकाशकेशपाशे,
कनकांगद-हारकेयूर-नानाविधायुध-भूषाविशेषाद्ययुत-
स्थिरीभूतसौदामिनी तुलित ललित नूतन तनूलते ! [८]
काश्यपात्रि भरद्वाज-व्यास-पराशर-मार्कण्डेय-
विश्वामित्र-कण्व-कपिल-गौतम-गर्ग-पुलस्त्यागस्त्यादि
सकल मुनिध्येय-ब्रह्मतेजोमये, चिन्मये! [९]
सेवार्थागत अंग-वंग-कलिंग-कांभोज-काश्मीर-
कारूप-सौवीर-सौराष्ट्र-महाराष्ट्र-मागध-विराट-
गुर्ज्जर-मालव-निषध-चोल-चेर-पाण्ड्य-पाञ्चाल-
गौड-बृंहल-द्रवड-द्राविड-घोट-लाट-मराट-वराट-
कर्णाटक-आन्ध्र-हूण-भोज-कुरु-गान्धार-
विदेह-विदर्भ-विजृंभ-बाह्लीक-बर्बर-केरल-
केकय-कोसल-शूरसेन-च्यवन-टंकण-कोंकण-
मत्स्य-माध्व-सैन्धव-बल्हूक-भूचक्रयुग-
गान्धार-काशी-भद्राशी-ऐन्द्रगिरि-नागपुरी-
घंटानगरी-उत्तरगिरि- आख्य षट्पञ्चाशत्
देशाधीशादि गन्धर्वहेषारव सिन्धुसिन्धूर-
हीत्काररव रथांग क्रैंकारभेरी झंकार-
मद्दलध्वनि हुंकारयुक्त चतुरंगसमेत-
जित-राजसुर-रजाधिराज पुंखानुपुंख गमनागमनविशीर्णाभरणाद्ययुत
समुत्पन्नपरागपाटली वालुकायमान
प्रथम मण्डप सन्निधाने ! [१०]
तत्तत् पूजाकालक्रियमाण- पाद्य-
अर्घ्य-आचमनीय-स्नान-वस्त्र-आभरण-
गन्ध-पुष्प-अक्षत-धूप-दीप-नैवेद्य-
तांबूल-मंत्रपुष्प-स्वर्णपुष्प-प्रदक्षिण-
नमस्कार-स्तोत्रपारायण-सन्तोषित-
सन्तत-वरप्रदानशीले, सुशीले ! [११]
रंभोर्वशी-मेनका-तिलोत्तमा-हारिणी-घृताची-
मञ्जुघोषा, अलंबुसाद्ययुताप्सरस्त्री धिमिन्धिमित
चित्रोपचित्रनर्तनोल्लासावलोकनप्रिये, कृत्तिवासप्रिये,
भण्डासुर प्रेषिताखण्डबलदोर्द्दण्डरक्षोमण्डली खण्डने,
निजकरांगुलीयकात् मत्स्य- कूर्म-वराह-नृसिंह-वामन-
परशुराम-श्रीराम-बलराम-श्रीकृष्ण-कल्क्याख्य-नारायण
दशावतार हेतुभूते, हिमवत्कुलाचल राजकन्ये,
सर्वलोकमान्ये, कोटिकन्दर्पलावण्य तारुण्य कनकगिरीश्वर त्यागराजवामपार्श्वद्वये, त्रिभुवनेश्वरि
सर्वप्रदायिनि! [१२]
 श्रीविद्याधीशरचित चूर्णिका श्रवण-पठनानन्दिनां
संप्रार्थित-आयुरारोग्य-सौन्दर्य-विद्या-बुद्धि-पुत्र-पौत्र-
कलत्रैश्वर्यादि सकल सौख्य प्रदे
त्रिभुवनेश्वरि ! श्रीमत् कमलांबिके पराशक्ते!
मातः ! नमस्ते! नमस्ते! नमस्ते!
पाहि मां! पाहि मां!पाहि मां!
मुक्ताविद्रुमहेमकुण्डलधरा सिंहाधिरूढा शिवा
रक्तांभोजसमानकान्तिवदना श्रीमत्किरीटान्विता ।
मुक्ताहेमविचित्रहारकटकैः पीतांबरा शंकरी
भक्ताभीष्टवरप्रदानचतुरा मां पातु हेमांबिका ॥

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Last Updated : January 03, 2019

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