आदि मध्य ऊर्ध्व मुक्त भक्त हरि । सबाह्य अभ्यंतरी हरि एकु ॥ १ ॥
नलगती तीर्थें हरिरूपें मुक्त । अवघेंचि सूक्त जपिनिलें ॥ २ ॥
ज्याचेनि नामें मुक्त पैं जडमूढ । तरले दगड समुद्रीं देखा ॥ ३ ॥
मुक्ताई हरिनामें सर्वदां पै मुक्त । नाहीं आदि अंत उरला आम्हां ॥ ४ ॥