आदि मध्य अंतु न कळोनि प्रांतु । असे जो सततु निजतत्त्वें ॥ १ ॥
कैसेनि तत्त्वतां तत्त्व पैं अनंता । एकतत्त्वें समता आपेंआप ॥ २ ॥
आप जंव नाहीं पर पाहासी काई । विश्वपणें होई निजतत्त्वीं ॥ ३ ॥
माजि मजवटा चित्त नेत तटा । परब्रह्म वैकुंठा चित्तानुसारें ॥ ४ ॥
मुक्ताई सांगती मुक्तनामपंक्ति । हरिनामें शांति प्रपंचाचीं ॥ ५ ॥