मैं तोहि कैसे बिसरूँ देवा !
ब्रह्मा बिस्नु महेसुर ईसा, ते भी बंछै सेवा ॥
सेस सहस मुख निसदिन ध्यावै आतम ब्रह्म न पावै ।
चाँद सूर तेरी आरति गावैं, हिरदय भक्ति न आवै ॥
अनन्त जीव तेरी करत भावना, भरमत बिकल अयाना ।
गुरु-परताप अखंड लौ लागी, सो तोहि माहि समाना ॥
बैकुंठ आदि सो अङ्ग मायाका, नरक अन्त अँग माया ।
पारब्रह्म सो तो अगम अगोचर, कोइ बिरला अलख लखाया ॥
जन दरिया, यह अकथ कथा है, अकथ कहा क्या जाई ।
पंछीका खोज, मीनका मारग, घट-घट रहा समाई ॥