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मैं तोहि कैसे बिसरूँ देवा...

भजन - मैं तोहि कैसे बिसरूँ देवा...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


मैं तोहि कैसे बिसरूँ देवा !

ब्रह्मा बिस्नु महेसुर ईसा, ते भी बंछै सेवा ॥

सेस सहस मुख निसदिन ध्यावै आतम ब्रह्म न पावै ।

चाँद सूर तेरी आरति गावैं, हिरदय भक्ति न आवै ॥

अनन्त जीव तेरी करत भावना, भरमत बिकल अयाना ।

गुरु-परताप अखंड लौ लागी, सो तोहि माहि समाना ॥

बैकुंठ आदि सो अङ्ग मायाका, नरक अन्त अँग माया ।

पारब्रह्म सो तो अगम अगोचर, कोइ बिरला अलख लखाया ॥

जन दरिया, यह अकथ कथा है, अकथ कहा क्या जाई ।

पंछीका खोज, मीनका मारग, घट-घट रहा समाई ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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