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ऐसा साधू करम दहै ॥ अपना...

भजन - ऐसा साधू करम दहै ॥ अपना...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


ऐसा साधू करम दहै ॥

अपना राम कबहुँ नहिं बिसरै, बुरी-भली सब सीस सहै ।

हस्ती चलै भूकै बहु कूकर, ताका औगुन उर न गहै;

वाकी कबहूँ मन नहिं आनै, निराकारकी ओट रहै ।

धनको पाय भया धनवन्ता, निरधन मिल उन बुरा कहै;

वाकी कबहुँ न मनमें लावै, अपने धन सँग जाय रहै ॥

पतिको पाय भई पतिबरता, बहु बिभचारिन हाँसि करै;

वाकै संग कबहुँ नहिं जावै, पतिसे मिलकर चिता जरै ।

'दरिया' राम भजै सो साधू, जगत भेष उपहास करै;

वाको दोष न अन्तर आनै, चढ़ नाम-जहाज भव-सिन्धु तरै ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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