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राम -नाम नहि हिरदै धरा , ...

भजन - राम -नाम नहि हिरदै धरा , ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


राम-नाम नहि हिरदै धरा, जैस पसुवा तैसा नरा ॥

पसुवा-नर उद्यम कर खावै, पसुवा तो जंगल चर आवै ।

पसुवा आवै पसुवा जाय, पसुवा चरै औ पसुवा खाय ॥

राम-नाम ध्याया नहिं माईं, जनम गया पसुवाकी नाईं ।

राम-नामसे नाहीं प्रीत, यह सब ही पशुओंकी रीत ॥

जीवत सुख-दुखमें दिन भरै, मुवा पछे चौरासी परै ।

जन 'दरिया' जिन राम न ध्याया, पसुवा ही ज्यों जनम गँवाया ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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