राम-नाम नहि हिरदै धरा, जैस पसुवा तैसा नरा ॥
पसुवा-नर उद्यम कर खावै, पसुवा तो जंगल चर आवै ।
पसुवा आवै पसुवा जाय, पसुवा चरै औ पसुवा खाय ॥
राम-नाम ध्याया नहिं माईं, जनम गया पसुवाकी नाईं ।
राम-नामसे नाहीं प्रीत, यह सब ही पशुओंकी रीत ॥
जीवत सुख-दुखमें दिन भरै, मुवा पछे चौरासी परै ।
जन 'दरिया' जिन राम न ध्याया, पसुवा ही ज्यों जनम गँवाया ॥