अमृत नीका, कहै सब कोई, पिये बिना अमर नहिं होई ।
कोइ कहै, अमृत बसै पताल, नर्क अन्त नित ग्रासै काल ॥
कोइ कहै, अमृत समुन्दर माहीं, बड़वा अगिनि क्यों सोखत ताहीं?
कोइ कहै, अमृत ससिमें बास, घटै-बढ़ै क्यों होइहै नास ?
कोइ कहै, अमृत सुरगाँ, माहिं, देव पियें क्यों खिर-खिर जाहिं ?
सब अमृत बातोंका बात, अमृत है संतनके साथ ।
'दरिया' अमृत नाम अनंत, जाको पी-पी अमर भये संत ॥