गृहारम्भ
( १ ) गृहारम्भ और गृहप्रवेशके समय कुलदेवता, गणेश, क्षेत्रपाल, वास्तुदेवता और दिक्पतिकी विधिवत् पूजा करे । आचार्य, द्विज और शिल्पीको विधिवत् सन्तुष्ट करे । शिल्पीको वस्त्र और अलंकार दे । ऐसा करनेसे घरमें सदा सुख रहता है ।
जो मनुष्य सावधान होकर गृहारम्भ या गृहप्रवेशके समय वास्तुपूजा करता है, वह आरोग्य, पुत्र, धन और धान्य प्राप्त करके सुखी होता है । परन्तु जो मनुष्य वास्तुपूजा करता है, वह आरोग्य, पुत्र, धन और धान्य प्राप्त करके सुखी होता है । परन्तु जो मनुष्य वास्तुपूजा न करके नये घरमें प्रवेश करता है, वह नाना प्रकारके रोग, क्लेश और संकट प्राप्त करता है ।
( २ ) मेष, वृष, कर्क, सिंह, तुला, वृश्चिक, मकर और कुम्भ - इन राशियोंके सूर्यमें गृहारम्भ करना चाहिये । मिथुन, कन्या, धनु और मीन - इन राशियोंके सूर्यमें गृह - निर्माण आरम्भ नहीं करना चाहिये ।
मेष राशिके सूर्यमें गृहारम्भ करनेसे शुभ फलकी प्राप्ति होती है ।
वृष राशिके सूर्यमें गृहारम्भ करनेसे धनकी वृद्धि होती है ।
मिथुन राशिके सूर्यमें गृहारम्भ करनेसे मृत्यु होती है ।
कर्क राशिके सूर्यमें गृहारम्भ करनेसे शुभ फलकी प्राप्ति होती है ।
सिंह राशिके सूर्यमें गृहारम्भ करनेसे सेवकोंकी वृद्धि होती है ।
कन्या राशिके सूर्यमें गृहारम्भ करनेसे रोग होता है ।
तुला राशिके सूर्यमें गृहारम्भ करनेसे सुख होता है ।
वृश्चिक राशिके सूर्यमें गृहारम्भ करनेसे धनकी वृद्धि होती है ।
धनु राशिके सूर्यमें गृहारम्भ महान् हानि होती है ।
मकर राशिके सूर्यमें गृहारम्भ करनेसे धन प्राप्त होता है ।
कुम्भ राशिके सूर्यमें गृहारम्भ करनेसे रत्नलाभ होता है ।
मीन राशिके सूर्यमें गृहारम्भ करनेसे रोग तथा भय होता है ।
( ३ ) अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुण्य, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, उत्तराषाढा़, श्रवण, उत्तराभाद्रपद और रेवती - ये नक्षत्र गृहारम्भमें श्रेष्ठ माने गये हैं ।
( ४ ) शुक्लपक्षमें गृहारम्भ करनेसे सुख और कृष्णपक्षमें गृहारम्भ करनेसे चोर - डाकुओंसे भय होता है ।
(५ ) चैत्र, ज्येष्ठ, आषाढ़, भाद्रपद, आश्विन, पौष और माघ - ये मास गृहारम्भके लिये निषिद्ध कहे गये हैं । वैशाख, श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्श और फाल्गुन - ये मास गृहारम्भके लिये उत्तम कहे गये हैं ।
चैत्र मासमें गृहारम्भ करनेसे रोग और शोककी प्राप्ति होती है ।
वैशाख मासमें गृहारम्भ करनेसे धन - धान्य, पुत्र तथा आरोग्यकी प्राप्ति होती है ।
ज्येष्ठ मासमें गृहास्थ करनेसे मृत्यु तथा विपत्ति प्राप्त होती है ।
आषाढ़ मासमें गृहारम्भ करनेसे पशुओंकी हानि होती है ।
श्रावण मासमें गृहारम्भ करनेसे पशु धन और मित्रोकी वृद्धि होती है ।
भाद्रपद मासमें गृहारम्भ करनेसे मित्रोंका ह्लास, दरिद्रता तथा विनाश होता है ।
आश्विन मासमें गृहारम्भ करनेसे पत्नीका नाश, कलह तथा लड़ाई - झगड़ा होता है ।
कार्तिक मासमें गृहारम्भ करनेसे पुत्र, आरोग्य एवं धनकी प्राप्ती होती है ।
मार्गशीर्ष मासमें गृहारम्भ करनेसे उत्तम भोज्य - पदार्थोंकी तथा धनकी प्राप्ति होती है ।
पौष मासमें गृहारम्भ करनेसे चोरोंका भय होता है ।
माघ मासमें गृहारम्भ करनेसे अग्निका भय होता है ।
फाल्गुन मासमें गृहारम्भ करनेसे धन तथा सुखकी प्राप्ति और वंशकी वृद्धि होती है ।
( कुछ ग्रन्थोंमें गृहारम्भके लिये आषाढ़ एवं पौषको शुभ और कार्तिकको अशुभ बताया गया है । )
ईंट - पत्थरके घरमें मासदोषका विचार करना चाहिये । घास - फूस एवं लकड़ीका घर बनानेमें मासदोष नहीं लगता ।
( ६ ) द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी और पूर्णिमा - ये तिथियाँ गृहारम्भके लिये शुभ फल देनेवाली हैं ।
प्रतिपदा दरिद्रताकारक, चतुर्थी धननाशक, अष्टमी उच्चाटन करनेवाली, नवमी धान्यनाशक तथा शस्त्रसे चोट पहुँचानेवाली, चतुर्दशी पुत्र व स्त्रियोंका नाश करनेवाली और अमावस्या राजभय देनेवाली है ।
( ७ ) सोम, बुध, गुरु, शुक्र, और शनि - ये वार गृहारम्भके लिये उत्तम हैं । रविवार और मंगलवारको गृहारम्भ ( भूमि खोदनेका कार्य ) कदापि नहीं करना चाहिये, अन्यथा अनिष्ट होनेकी सम्भावना है ।
( ८ ) घर, देवालय और जलाशय ( कुआँ, तालाब ) बनाते समय नींव खोदनेके लिये राहुकी दिशाका विचार करना आवश्यक होता है । किस राशिके सूर्यमें राहुका मुख, पुच्छ तथा पृष्ठ ( पीठ ) किस दिशामें रहता है - इसे निम्र तालिकासे जानना चाहिये -
उदारणार्थ - सिंह, कन्या अथवा तुला - राशिके सूर्यमें घरका निर्माण आरम्भ करना हो तो इस समय राहुका मुख ईशानमें तथा पुच्छ नैऋत्य है । मुख तथा पुच्छको छोड़कर पीठमें अर्थात् आग्नेय दिशामें नींव खोदना शुभ होगा । इसी प्रकार देवालय तथा जलाशयके निर्माणमें भी राहुकी पीठमें नींव खोदनी चाहिये ।
( ९ ) मार्गशीर्ष, पौष और माघ मासमें राहु पूर्वमें रहता है । फाल्गुन, चैत्र और वैशाख मासमें राहु दक्षिणमें रहता है । ज्येष्ठ, आषाढ़ और श्रावण मासमें राहु पश्चिममें रहता है । भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मासमें राहु उत्तरमें राहता है । राहुकी दिशामें स्तम्भ रखनेसे वंशका नाश, द्वार बनानेसे अग्निका भय, गमन करनेसे कार्यकी हानि और गृहारम्भ करनेसे कुलका क्षय होता है ।
( १० ) नींव खोदते समय भूमिके भीतरसे यदि पत्थर मिलें तो धन तथा आयुकी वृद्धि होती है । ईंट मिले तो धनप्राप्ति तथा समृद्धि होती है । धातु मिले तो वृद्धि होती है । लकड़ी मिले तो अग्निसे भय होता है । राख या कोयला मिले तो रोग होता है । भूसी मिले तो धनका नाश होता है । हड्डी मिले तो कुलका नाश होता है । कौड़ी मिले तो लड़ाई - झगड़ा एवं दुःख होता है । कपास मिले तो रोग व दुःखकी प्राप्ति होती है । खर्पर मिले तो कलह, लड़ाई - झगड़ा होता है । लोहा मिले तो मृत्यु होती है । भूमिमेंसे चींटी, मेंढक, साँप, बिच्छू आदिका निकलना अशुभ है ।
( ११ ) शिलान्यास सर्वप्रथम आग्नेय दिशामें करना चाहिये । फिर शेष निर्माण प्रदक्षिण - क्रमसे करना चाहिये । गृह - निर्माणकी समाप्ति दक्षिणमें नहीं होनी चाहिये, अन्यथा धनका नाश, स्त्रीमें दोष एवं पुत्रकी मृत्यु सम्भव है ।
( १२ ) ध्रुवतारेको देखकर या स्मरण करके नींव रखनी चाहिये । मध्याह, मध्यरात्रि तथा सन्ध्याकालमें नींव नहीं रखनी चाहिये । मध्याह्ल तथा मध्यरात्रिमें शिलान्यास करनेसे कर्ताका और धनका नाश होता है ।
( १३ ) शिलान्यासके लिये चौकोर एवं अखण्ड शिला लेनी चाहिये । लम्बी, छोटी, टेढ़ी - मेढ़ी, खण्डित, काले रंगकी एवं टूटी - फूटी शिला अशुभ तथा भयप्रद है ।
( १४ ) गृहारम्भके समय कठोर वचन बोलना, थूकना और छींकना अशुभ है ।