चौबीसवाँ अध्याय
गृहप्रवेश
( १ ) अकपाटमनाच्छन्नमदत्तबलिभोजनम् ।
गृहं न प्रविशेदेवं विपदामाकरं हि तत् ॥
( नारदपुराण, पूर्व० ५६। ६१९)
' बिना दरवाजा लगा, बिना छतवाला, बिना देवताओंको बलि ( नैवेद्य ) तथा ब्राह्मण - भोजन कराये हुए घरमें प्रवेश नहीं करना चाहिये; क्योंकि ऐसा घर विपत्तियोंका घर होता है ।'
( २ ) गृहप्रवेश माघ, फाल्गुन, वैशाख और ज्येष्ठमासमें करना चाहिये । कार्तिक और मार्गशीर्षमें गृहप्रवेश मध्यम है । चैत्र, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और पौषमें गृहप्रवेश करनेसे हानि तथा शत्रुभय होता है ।
माघमासमें गृहप्रवेश करनेसे धनका लाभ होता है ।
फाल्गुनमासमें गृहप्रवेश करनेसे पुत्र और धनकी प्राप्ति होती है ।
वैशाखमासमें गृहप्रवेश करनेसे धन - धान्यकी वृद्धि होती है ।
ज्येष्ठमासमें गृहप्रवेश करनेसे पशु और पुत्रका लाभ होता है ।
( ३ ) जिस घरका द्वार पूर्वकी ओर मुखवाला हो, उस घरमें पञ्चमी, दशमी और पूर्णिमामें प्रवेश करना चाहिये ।
जिस घरका द्वार दक्षिणकी ओर मुखवाला हो, उस घरमें प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथियोंमें प्रवेश करना चाहिये ।
जिस घरका द्वार पश्चिमकी ओर मुखवाला हो, उस घरमें द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी तिथियोंमें प्रवेश करना चाहिये ।
जिस घरका द्वार उत्तरकी ओर मुखवाला हो, उस घरमें तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी तिथियोंमें प्रवेश करना चाहिये ।
चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या - इन तिथियोंमें गृहप्रवेश करना शुभ नहीं है ।
( ४ ) रविवार और मंगलवारके दिन गृहप्रवेश नहीं करना चाहिये । शनिवारमें गृहप्रवेश करनेसे चोरका भय रहता है ।