पचीसवाँ अध्याय
वास्तुदोष - निवारणके उपाय
( १ ) घरमें वास्तुदोष होनेपर उचित यही है कि उसे यथासम्भव वास्तुशास्त्रके अनुसार ठीक कर ले अथवा उसे बेचकर दूसरा मकान अथवा जमीन खरीद ले ।
जहाँतक हो सके, निर्मित मकानमें तोड़ - फोड़ नहीं करना चाहिये । तोड़ - फोड़ करनेसे वास्तुभङ्गका दोष लगता है । इसलिये वास्तुशास्त्रमें आया है -
जीर्णं गेहं भित्तिभग्नं विशीर्णं तत्पातव्यं स्वर्णनागस्य दन्तैः ।
गोश्रृडैवां शिल्पिना निश्चयेन पूजां कृत्वा वास्तुदोषो न तस्य ॥
( वास्तुराज० ५। ३८)
' घरके पुराना होनेपर, दीवारके गिर जानेपर अथवा छिन्नभिन्न होनेपर उसे सोनेसे बने हुए नागदन्त ( हाथीदाँत ) अथवा गोश्रूड ( गायके सींग ) - से वास्तुपूजनपूर्वक गिरवानेसे वास्तुभडका दोष नहीं लगता ।'
( २ ) घरमें अखण्डरुपसे श्रीरामचरितमानसके नौ पाठ करनेसे वास्तुजनित दोष दूर हो जाता है ।
( ३ ) घरमें नौ दिनतक अखण्ड भगवन्नाम - कीर्तन करनेसे वास्तुजनित दोषका निवारण हो जाता है ।
( ४ ) स्कन्दपुराणमें आया है कि कात्यायन ॠषिन्हे हाटकेश्वर - क्षेत्रमें ' वास्तुपद ' नामक तीर्थका निर्माण किया और विश्वकर्माके साथ वहाँ वास्तुपूजन किया । उस तीर्थमें अड़तालीस देवताओंकी पूजा होती है । घरमें जो शिला, कुत्सित पद और कुवास्तुजनित दोष होते हैं वे उस तीर्थके दर्शनसे मिट जाते हैं । शिल्प आदिकी दृष्टिसे दोषयुक्त और उपद्रवपूर्ण घरको पाकर भी यदि मनुष्य उस तीर्थका संयोग प्राप्त कर ले तो उसी दिनसे उसके घरमें अभ्युदय होने लगता है ( स्कन्द०, नागर० १३२ ) ।
[ वर्तमानमें इस ' वास्तुपद ' तीर्थकी स्थितिके विषयमें हमें जानकारी नहीं मिल सकी । कोई सज्जन जानते हों तो अवगत करानेकी कृपा करें । ]
( ५ ) मुख्य द्वारके ऊपर सिन्दूरसे स्वस्तिकका चिह्न बनायें । यह चिह्न नौ अंगुल लम्बा तथा नौ अंगुल चौड़ा होना चाहिये । घरमें जहाँ - जहाँ वास्तुदोष हो, वहाँ - वहाँ यह चिह्न बनाया जा सकता है ।
स्वस्तिकका चिन्ह -
॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥