नवाँ अध्याय
वास्तुपुरुष तथा उसके मर्म - स्थान
( १ ) वास्तुपुरुष ईशानकोणमें सिर करके अधोमुख होकर स्थित है । उसका सिर ' शिखी ' में है । बायाँ नेत्र ' दिति ' में तथा दायाँ नेत्र ' पर्जन्य ' में है । मुख ' आप ' में है । बायाँ कान ' अदिति' में तथा दायाँ कान 'जयन्त ' में है । बायाँ कन्धा ' भूजग ' में तथा दायाँ कन्धा ' इन्द्र ' में है । बायीं भुजा ' सोम ', ' भल्लाट ', ' मुख्य ', ' नाग ', और ' रोग ' में तथा दायीं भुजा ' सुर्य' , ' सत्य', ' भृश ', ' अन्तरिक्ष ', और ' अनिल ' में है । बायाँ मणिबंध ' पापयक्ष्मा ' में तथा दायाँ मणिबंध " पूषा ' में है । बायाँ हाथ ' रुद्र ' और ' राजयक्ष्मा ' में तथा दायाँ हाथ ' सावित्र ' और ' सविता ' में है । छाती ' आपवत्स ' में है । बायाँ स्तन ' पृथ्वीधर ' में और दायाँ स्तन ' अर्यमा ' में है । हदय ' ब्रह्मा ' में है । पेट ' मित्र ' तथा ' विवस्वान्' में है । बायीं बगल ' शोष ' तथा ' असुर ' में और दायीं बगल ' वितथ ' तथा ' बृहत्क्षत ' में है । बायाँ ऊरु ( घुटनेसे ऊपरका भाग ) ' वरुण ' में तथा दायाँ ऊरु ' यम ' में है । बायाँ घुटना ' पुष्पदन्त ' में तथा दायाँ घुटना ' गग्न्धर्व ' में है । बायीं जंघा । ( घुटनेसे नीचेका भाग ) ' सुग्रीव ' में तथा दायीं जंघा ' भृंगराज ' में है । लिंग ' इन्द्र ' तथा ' जय ' में है । बायाँ नितम्ब ' दौवारिक ' तथा दायाँ नितम्ब ' मृग ' में है । पैर ' पिता ' में हैं ।
( २ ) सिर, मुख, हदय, दोनों स्तन और लिंग - ये वास्तुपुरुषके मर्म - स्थान हैं ।
( ३ ) रोगसे अनिलतक, पितासे शिखीतक, वितथसे शोषतक, मुख्यसे भृशतक, जयन्तसे भृंगराजतक और अदितिसे सुग्रीवतक विस्तृत सूत्रोंका जो नौ स्थानोंमें स्पर्श होता हैं, वे वास्तुपुरुषके अतिमर्म - स्थान हैं । ये नौ अतिमर्म - स्थान ब्रह्मस्थानमें आते हैं ।
( ४ ) वास्तुपुरुषके जिस मर्म - स्थान ( अंग ) - में कोई शल्य हो अथवा वहाँ कील, खम्भी आदि गाड़ा जाय तो गृहस्वामीके उसी अंगमें पीड़ा या रोग उत्पन्न हो जायगा ।
( ५ ) यदि मर्म - स्थानमें लकड़ीका शल्य हो तो धनकी हानि होगी । हड्डीका शल्य हो तो रोगका भय होगा । लोहेका शल्य हो तो शस्त्रका भय होगा । कपाल या केश हो तो मृत्यु होगी । कोयला हो तो चोरसे भय होगा । भस्म हो तो अग्निभय होगा । भूसा हो तो धनका आना बन्द होगा ।
( ६ ) यदि वास्तुपुरुष दायीं भुजासे रहित हो तो धनका नाश एवं स्त्रीकृत दोष होता है । बायीं भुजासे रहित हो तो धन - धान्यका नाश होता है । सिरसे रहित हो तो धन, आरोग्य आदि सब गुणोंका नाश होता है । पैरसे रहित हो तो स्त्री - दोष, पुत्रनाश एवं दासत्वकी प्राप्ती होती है ।
( ७ ) घरके मध्यमेम स्थित ब्रह्मस्थान ( ब्रह्माके नौ पद ) - की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिये । उस जगह कोई निर्माण ( दीवार, खम्भा ) नहीं करना चाहिये । वहाँ जूठे बर्तन, अपवित्र पदार्थ भी नहीं रखने चाहिये । यदि ब्रह्मस्थानमें दीवार , खम्भा, दरवाजा आदि बनाया जाय अथवा जूठे बर्तन, अपवित्र वस्तु, हड्डी, भस्म आदि रखे जायँ या कील गाड़ी जाय तो धन - धान्यका नाश होता है और अनेक प्रकारके रोग तथा शोक उत्पन्न होते हैं ।
ब्रह्मस्थान निकालनेके लिये गृहभूमिकी लम्बाई और चौडा़ईके तीन - तीन बराबर भाग करें । बीचका भाग ब्रह्मस्थान होगा । जैसे -