मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष व्रत - मित्रसप्तमी

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


मित्रसप्तमी

( निर्णयामृत ) -

मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमीके पहले दिन वपन ( मुण्डन ) करावे, फिर स्त्रान करके उपवास करे । सप्तमीको सूर्यका आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके ब्राह्मणोंको भोजन करवाकर शहदमें भीगे हुए मधुरात्रका स्वयं भोजन करे । इस विषयमें ( ब्रह्मपुराणका ) यह मत है कि सूर्यनारायण किसीके बनाये हुए नहीं हैं । यह विष्णुके दक्षिण नेत्र और अदिति एवं कश्यपके पुत्र हैं । मित्र इनका नाम है । इस कारण इनकी मित्रसप्तमीको उपवास करके फलाहार करे और अष्टमीको ब्राह्मणों और नट - नर्तकादिको भोजन करवाकर मधुप्लावित अन्नका स्वयं भोजन करे ।

N/A

References : N/A
Last Updated : January 22, 2009

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP