बृहद्रथ n. एक राजा, जिसका निर्देश ऋग्वेद में ‘नवावास्त्व’ राजा के साथ प्राप्त है
[ऋ.१.३६.१८] । वैकुंठ नामक इण्द्र ने इसका वध किया
[ऋ.१०.४९.६] । संभव है कि, बृहद्रथ स्वतंत्र राजा का नाम न हो कर, ‘नवावास्त’ राजा की ही उपाधि हो ।
बृहद्रथ II. n. (सो. ऋक्ष.) मगध देश का राजा, जो चेदिराज सम्राट उपरिचर वसु का पुत्र, एवं जरासंध का पिता था
[म.आ.५७.२९] । यह मगध देश का बलवान् राजा तीन अक्षौहिणी सेना का स्वामी, एवं अत्यंत पराक्रमी योद्धा था
[म.स.१६.१२] । काशिराज की दो जुडवी कन्याए इसकी पत्नियॉं थी । इसने एकांत में अपनी दोनो पत्नियों के साथ प्रतिज्ञा की थी, ‘मैं तुम दोनों के साथ कभी विषम व्यवहार न करुँगा।’ इसे दुनिया के सारे सुख एवं भोग इसे प्राप्त थे, किंतु पुत्र न था । पुत्रप्राप्ति के लिये इसने पुत्रकामेष्टि यज्ञ भी किया, किंतु कुछ लाभ न हुआ । अंत में यह अपनी दोनों पत्नियों के साथ चंडकौशिक नामक मुनि के पास गया, एवं अनेक प्रकार के रत्नों से इसने उसे संतुष्ट किया । पश्चात् ऋषि ने इसे बन में आने का कारण पूछने पर, इसने अपनी निपुत्रिक अवस्था उसे कथन की । पुत्रप्राप्ति के लिये चंडकौशिक मुनि ने इसे आम का फल दिया, एवं उसे अपने दो पत्नियों को समविभाग में देने के लिये कहा । ऋषि के आदेशानुसार राजा ने वह फल दो भागों में विभक्त कर के, एक एक भाग पत्नियों को खिलाया । पश्चात् दोनों को गर्भ रहा । प्रसवकाल आने पर दोनों के गर्भ से शरीर का आधाआधा भाग उत्पन्न हुआ । उन दो टुकडो को रानियों ने बाहर फेंक दिया । जरा नामक राक्षसी ने उन दोनों टुकडों को जोड दिया, जिससे एक बलवान् कुमार सजीव हो उठा । राक्षसी ने वह बालक राजा को अर्पित कर दिया । राजा उस बालक को ले कर महले में आया । इसने बालक का जातकर्म आदि किया, एवं उसका नाम जरासंध रखा गया । पश्चात् इसने मगध देश में राक्षसीपूजन का महान् उत्सव मनाने की आज्ञा दी
[म.स.१६-१७] । जरासंध बडा होने पर, इसने उसे अपने राज्य पर अभिषिक्त किया, एवं अपनी दोनों पत्नियों के साथ वह तपोवन चला गया
[म.स.१७.२५] । इसने ऋषभ नामक राक्षस का वध कर के उसकी खाल से तीन नगाडे बनवाये थे, जिनपर चोट करने से महिने भर आवाज होती रहती थी । ये नगाडे इसने अपनी गिरिव्रज नामक राजधानी के महाद्वार प रखे थे
[म.स.१९.२५-१६] । बृहद्रथ राजा को ‘बार्हद्रथ’ राजवंश का आद्य पुरुष माना जाता है । इसीसे आगे चल कर उस वंश का विस्तार हुआ (बार्हद्रथ देखिये) ।
बृहद्रथ III. n. (सू. निमि.) विदेह देश का एक राजा, जो देवरात जनक का पुत्र था । विष्णु के अनुसार इसे बृहदुक्थ, एवं वायु के अनुसार बृहदुच्छ तथा दैवराति नामान्तर भी प्राप्त है । अध्यात्मज्ञान के प्राप्ति के लिये इसने शाकल्य, याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों को अपने राज्य में निमंत्रित किया था । उपस्थित सारे ऋषियों में से याज्ञवल्क्य ही अत्यंत ब्रह्मनिष्ठ है, यह जान कर इसने उससे अध्यात्मज्ञान का उपदेश प्राप्त किया
[म.शां.२९८] ;
[भा.९.१३] ; याज्ञवल्क्य देखिये । इसे महावीर्य नामक पुत्र था, जो इसके पश्चात् विदेह देश का राजा बन गया ।
बृहद्रथ IV. n. (सो. अनु.) एक अनुवंशीय राजा, जो भागवत के अनुसार पृथुलाक्ष का, वायु के अनुसर बृहत्कर्मन् का, एवं विष्णु के अनुसार भद्ररथ राजा का पुत्र था । इसे बृहत्कर्मन एवं बहद्भानु नामक दो भाई थे ।
बृहद्रथ IX. n. अंगदेश का एक दानशूर राजा, जिसके द्वारा किये गये दान का वर्णन स्वयं श्रीकृष्ण ने किया था । महाभारत में निर्दिष्ट सोलह श्रेष्ठ राजाओं में इसका निर्देश प्राप्त है, जहॉं इसे ‘अंग बृहद्रथ’ कहा गया हैं
[म.शां.२९.२८-३४] । परशुराम के द्वारा किये गये क्षत्रिय संहार से इसे गोलांगूल नामक वानर ने बचाया, एवं गृध्रकृट नामक पर्वत पर इसे छिपा कर रख दिया । पश्चात् परशुराम के द्वारा सारी पृथ्वी कश्यप को दान दिये जाने पर, यह अपने राज्य में लौट आया, एवं पहले की तरह राज्य करने लगा
[म.शां.४९.७३] ।
बृहद्रथ V. n. (सो. अनु.) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार जयद्रथ का पुत्र था ।
बृहद्रथ VI. n. एक तत्वज्ञानी जिसका नामोल्लेख मैत्रायणी उपनिषद में प्राप्त है
[मै.उ.१.२,२.१] ।
बृहद्रथ VII. n. (सि. द्विमीढ.) द्विमीढवंशीय बहुरथ राजा का नामान्तर (बहुरथ देखिये) ।
बृहद्रथ VIII. n. एक राजा, जिसकी पत्नी का नाम इंदुमती था (इंदुमती ३ देखिये)।
बृहद्रथ X. n. ०. एक राजा, जो सूक्ष्म नामक दैत्य के अंश से उत्पन्न हुआ था
[म.आ.६१.१९] । यह द्रौपदी के स्वयंवर में उपस्थित था
[म.आ.१७७.१९] । पाठभेद (भांडारकर संहिता)---बृहन्त ।
बृहद्रथ XI. n. १. एक अग्नि, जो वसिष्ठपुत्र होने के कारण, ‘वासिष्ठ’ भी कहलाता है । इसके पुत्र का नाम प्रणिधि था
[म.व.२११.८] ।
बृहद्रथ XII. n. २. दुर्योधनपक्षीय एक राजा
[म.उ.१९६.१०] । पाठभेद (भांडारकर संहिता)---‘बृहद्वल’ ।
बृहद्रथ XIII. n. ३. (सो. पूरु. भविष्य.) एक राजा, जो भविष्य के अनुसार तिग्मज्योति का, मत्स्य एवं विष्णु के अनुसार तिग्म का, तथा भागवत के अनुसार तिमि राजा का पुत्र था ।
बृहद्रथ XIV. n. ४. (मौर्य. भविष्य.) एक राजा, जो भागवत, विष्णु एवं मत्स्य के अनुसार शतधन्वन् का, एवं ब्रह्मांड के अनुसार शतधनु का पुत्र था । मत्स्य के अनुसार इसने ७० वर्षो तक, एवं ब्रह्मांड के अनुसार इसने ७ वर्षो तक राज्य किया । मत्स्य के अतिरिक्त बाकी सारे पुराणों में इसे मौर्यवंश का अंतीम राजा माना गया है ।
बृहद्रथ XV. n. ५. दक्षसावर्णि मनु के पुत्रों में से एक । शाकायन्य को इसन कहा, ‘अत्यंत गहरे कुएँ में गिरे हुए जानवर के समान मनुष्यप्राणि की स्थिति है । अतएव आप ही मुझे मुक्ति का रास्ता बताने की कृपा करें’। फिर शाकायन्य ने ब्रह्मज्ञान एवं पुनर्जन्म का विवेचन कर इसे मुक्ति का मार्ग बता दिया
[मैत्रा.उ.१.१-७] ।