वेन n. (स्वा. उत्तान.) अंग देश का एक दुष्टकर्मा राजा, जो अंग एवं मृत्यु की मानसकन्या सुनीथा का पुत्र था । भागवत में इसे तेईसवाँ वेदव्यास कहा गया है । महाभारत में कर्दमपुत्र अनंग को इसका पिता कहा गया है
[म. शा. ५९.९६-९९] ।
वेन n. यह शुरू से ही दुर्वत्त था । यह अपने मातामह मृत्यु (अधर्म) के घर में पालपोस कर बड़ा हुआ था । इसके दुष्ट कर्मों के कारण, त्रस्त हो कर इसका पिता अंगदेश छोड़ कर चला गया। राज्यपद प्राप्त होते ही इसने यज्ञयागादि सारे कर्म बंद करवाये। यह स्वयं को ईश्र्वर का अवतार कहलाता था । इसके दुश्र्चरित्र के कारण, ऋषियों ने इसका वध किया
[म. शां. ५९.१००] ।
वेन n. इसकी मृत्यु के पश्र्चात्, अंगवंश निर्वेश न हो इस हेतु इसकी माता सुनीथा ने इसके मृतशरीर का दोहन करवाया। इसके दाहिनी जाँध की मंथन से निषाद नामक एक कृष्णवर्णीय नाटा पुरुष उत्पन्न हुआ, जिससे आगे चल कर निषाद जाति-समूह के लोग उत्पन्न हुए। आगे चल कर ऋषियोंने इसके दाहिने हाथ का मंथन किया, जिससे पृथु वैन्य नामक चक्रवर्ति राजा उत्पन्न हुआ, जो साक्षात् विष्णु का अवतार था
[म. शां. ५९.१०६] । ऋषियों के द्वारा वेन का वध होने की, एवं इसके दाहिने हाथ के मंथन से पृथु वैन्य का जन्म होने की कथा सभी पुराणों में प्राप्त है
[ह. वं. १.५.३-१६] ;
[वायु. ६२.१०७-१२५] ;
[भा. ४.१४] ;
[विष्णुधर्म. १.१०८, १.१३, ७.२९] ;
[ब्रह्म. ४] ;
[मत्स्य. १०.१-१०] । महाभारत के अनुसार, इसकी दाहिनी जाँध की मंथन से निषाद, एवं विंध्यगिरिवासी म्लेच्छों का निर्माण हुआ था
[म. शां. ५९.१०१-१०३] । पद्म के अनुसार, यह ऋषियों के द्वारा मृत नही हुआ, बल्कि एक वल्मीक में छिप गया था
[पद्म. भू. ३६-३८] ।
वेन n. इस ग्रंथ में वेन के शरीर के दोन की कथा कुछ अलग प्रकार से प्राप्त है । दुष्टप्रकृति वेन ने मरीचि आदि ऋषियों का अपमान किया, जिस कारण ऋषियों ने इसके हाथ एवं पाव पकड़ कर इसे नीचे गिराया। पश्र्चात् उन्होंने इसके हाथ एवं पाव खुब घुमाये, जिस कारण इसके दाहिने एवं बाये हाथ से क्रमशः पृथु वैन्य एवं निषाद का निर्माण हुआ। इनमें से निषाद का जनम होते ही ऋषियों ने ‘निषाद’ कह कर अपना निषेध व्यक्त किया, जिस कारण इस कृष्णवर्णीय पुत्र को निषाद नाम प्राप्त हुआ। इस मंथन के बाद वेन मृत हुआ
[वायु. ६१.१०८-१९३] । इसके दो पुत्रों में से, पृथु इसके पिता अनंग के अंश से उत्पन्न हुआ था, एवं निषाद की उत्पत्ति इसके स्वयं के पापों से हुई थी । निषाद के रूप में इसका पाप इसके शरीर से निकल जाते ही यह पापरहित हुआ। पश्र्चात् तृणबिंदु ऋषि के आश्रम में इसने विष्णु की उपासना की, जिस कारण इसे स्वर्लोक की प्राप्ति हुई
[पद्म. भू. ३९-४०, १२३-१२५] । महाभारत के अनुसार, अपनी मृत्यु के पश्र्चात् यह यमसभा में सूर्यपुत्र यम की उपासना करने लगा
[म. स. ८.१८] ।
वेन (पार्थ) n. एक राजा, जिसके औदार्य की प्रशंसा तान्व पृथुपुत्र नामक आचार्य के द्वारा की गयी है
[ऋ. १०.९३.१४] । ‘पृथा’ का वंशज होने से इसे ‘पार्थ’ मातृक नाम प्राप्त हुआ होगा
[ऋ.१०.९३.१५] । लो. तिलकजी के अनुसार, वेन एक व्यक्ति का नाम न हो कर, आकाशस्थ ग्रह का नाम था
[ऋ. १०.१२३] । किन्तु इस संबंध में निश्र्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं है ।
वेन (भार्गव) n. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा
[ऋ. ९.८५, १०.१२३] ।
वेन (वाज्रश्रवस) n. एक ऋषि, जो बाईसवाँ व्यास था (व्यास देखिये) ।
वेन II. n. एक राजा, जो वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में से एक था
[म. आ. ७०.१३] ।